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समंदर से गहरे क्यों है भारत-रूस संबंध !

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने रूस दौरे के आखिरी दिन राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात की तो पूरी दुनिया की निगाहें लगी थी. राजनाथ सिंह ने भी कह दिया कि दोनों देशों की दोस्ती सबसे ऊंची पर्वत श्रृंखला से ऊंची है. है भी क्यों नहीं पिछले तीन साल से युद्ध से जूझ रहे रूस ने आईएनएस तुशिल युद्धपोत को बनाकर ना केवल भारत को सौंपा बल्कि नए हथियारों के ऑफर का इशारा भी कर दिया है.

राजनाथ सिंह के दौरे से महज कुछ दिन पहले ही पुतिन ने एक बिजनेस फोरम की मीटिंग में भारत के साथ मेक इन इंडिया प्रोजेक्ट के तहत मैन्युफैक्चरिंग की घोषणा की थी. ऐसे में जब राजनाथ सिंह ने अपनी रूसी समकक्ष आंद्रेई बेलौसोव से मुलाकात की तो चर्चा एविएशन उपकरण से लेकर स्टील्थ फाइटर जेट और ऐसी रडार पर होने लगी जो 8000 किलोमीटर दूर से आ रहे खतरों को भांप सकती है.

खुद रक्षा मंत्री ने भी बेलौसोव से कहा कि भारत और रूस अब नए क्षेत्रों में सहयोग करने के लिए तैयार हैं. साफ है कि दोनों देशों के रक्षा मंत्रियों ने अगले साल के शुरुआत में पुतिन और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मीटिंग के लिए ग्राउंड तैयार कर दिया है. अगले साल के शुरुआत में पुतिन के भारत दौरे की तारीख का ऐलान किया जाएगा.

अमेरिका की वादाखिलाफी के चलते भारत का स्वदेशी लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एलसीए) प्रोजेक्ट ग्राउंडेड होने के कगार पर है. हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) को एलसीए-तेजस के मार्क-1ए वर्जन के लिए अमेरिका एविएशन इंजन (एफ-404) के करार के बावजूद पिछले डेढ़ साल से लटकाए हुए है. (Kremlin में राजनाथ-पुतिन मुलाकात, हमेशा साथ खड़े रहने का किया वादा)

माना जा रहा है कि खालिस्तानी आतंकी गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या की कोशिश के मामले के चलते एविएशन इंजन के लिए अमेरिका देरी कर रहा है.

ऐसे में भारत, एविएशन इंजन और मार्क-1ए के उपकरणों के लिए रूस का रुख कर सकता है. ऐसा इसलिए क्योंकि एचएएल ने हाल ही में सुखोई फाइटर जेट के एविएशन इंजन के लिए रूस से करार किया है.

एचएएल, रूस की मदद से भारत में बने सुखोई लड़ाकू विमानों के इंजनों को बदलने जा रही है. इसके लिए रूस से 240 एविएशन इंजन लिए जा रहे हैं. इस सौदे की कुल कीमत 21 हजार करोड़ है.

हालांकि, यूक्रेन जंग के चलते रूस से हथियारों की सप्लाई को लेकर संशय पैदा हो रहे हैं. वर्ष 2018 में रूस से हुए एस-400 मिसाइल सिस्टम को लेकर हुए करार के तहत अभी तक तीन बैटरी ही भारतीय वायुसेना को मिल पाई हैं. बाकी दो बैटरियों अगले साल तक मिल पाएंगी.

इस बीच रूस ने नवंबर के महीने में चीन में हुए एयर-शो में अपने स्टील्थ फाइटर जेट सु-57 को प्रदर्शित कर पूरी दुनिया को चौंका दिया है. एयरोशो में चीन ने अपने दूसरे स्टील्थ फाइटर जेट जे-35 को मैदान में उतार दिया तो पाकिस्तान को भी देने का ऐलान कर दिया है.

अगले 24 महीनों में पाकिस्तान के पास भी जे-35 स्टील्थ फाइटर जेट होगा. जबकि भारत का स्टील्थ फाइटर जेट प्रोजेक्ट, एमका 2035 से पहले पूरा होता नहीं दिखाई पड़ रहा है. ऐसे में सुखोई की तरह रूस, भारत के साथ मिलकर सु-57 के प्रोडक्शन का ऑफर दे सकता है.

खबर तो इस बात की भी है कि रूस ने भारत को 8000 किलोमीटर रेंज वाली ‘वोरोनेझ’ रडार देने के लिए तैयार है. दुनिया में ऐसी कम ही रडार है जिनकी इतनी लंबी रेंज हैं.

यूक्रेन युद्ध के बावजूद तूशिल की कमीशनिंग सेरेमनी में रूस नौसेना प्रमुख ने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और चीफ ऑफ नेवल स्टाफ एडमिरल दिनेश कुमार त्रिपाठी को भरोसा दिया कि अगले साल गर्मियों से पहले दूसरे युद्धपोत आईएनएस तामल को बनाकर भारत को सौंप देंगे.

रूस अगर विपरीत परिस्थितियों में भारत को हथियारों और सैन्य उपकरण से मदद कर रहा है तो इसके पीछे एक बड़ा कारण है. कारण है यूक्रेन जंग (‘स्पेशल मिलिट्री ऑपरेशन’). फरवरी 2022 में जब पुतिन ने यूक्रेन पर आक्रमण किया तो कम ही देश थे जो रूस के साथ खड़े थे.

भारत ने भले ही रूस के यूक्रेन आक्रमण का समर्थन नहीं किया, लेकिन साथ भी नहीं छोड़ा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री एस जयशंकर ने 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध और ‘कोल्ड वॉर’ के दौरान रूस (पूर्ववर्ती सोवियत संघ) के एहसान को नहीं भुलाया. भारत ने रूस के साथ व्यापार जारी रखा और तेल भी खरीद रहा है. नतीजा ये हुआ कि भारत की अर्थव्यवस्था मजबूत हुई तो रूस भी तीन साल लंबे युद्ध को आर्थिक तौर पर झेल पाया.

भारत ने रूस से ऐसे समय में मित्रता जारी रखी जब अमेरिका और पूरी पश्चिमी दुनिया भारत के खिलाफ खड़ी हुई थी. रूस के ‘तेल पर खून’ लगा होने के कटाक्ष किए जा रहे थे. खुद राजनाथ सिंह ने मॉस्को दौरे के दौरान इन ‘भारी दबावों’ का खुलकर जिक्र किया.

भारत के रूस का साथ ना छोड़ने का नतीजा ये हुआ कि दुनिया के विकासशील देश (खासतौर से ग्लोबल साउथ) भी समझ गए कि अमेरिका के विपरीत मॉस्को ‘अनप्रिडिक्टेबल’ कतई नहीं है.

सीरिया में मौजूदा हालात और (पूर्व) राष्ट्रपति बशर अल असद को राजनीतिक शरण देकर रूस ने दुनिया को दिखा दिया है कि मुश्किल परिस्थितियों में भी पुतिन अपने दोस्तों का साथ नहीं छोड़ते हैं.

रूस के उलट, जो बाइडेन के नेतृत्व में अमेरिका (‘डीप स्टेट’) ने पिछले डेढ़ साल में जिस तरह भारत के राजनीतिक-नेतृत्व के खिलाफ मुहिम छेड़ी है, वो दुनिया से छिपा नहीं है.

एक (खालिस्तानी) आतंकी, जो भारत-विरोधी गतिविधियों में लिप्त है, उसके समर्थन में जिस तरह अमेरिका का डीप-स्टेट पीएम मोदी से लेकर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोवाल और अरबपति कारोबारी गौतम अडानी के पीछे पड़ा है, उससे अमेरिका की सुपर-पावर की छवि धूमिल जरूर हुई है.

चीन भले ही आज एक आर्थिक ताकत बनकर जरूर उभरा है, लेकिन शी जिनपिंग की बीआरआई परियोजना और लोन के जरिए विकासशील देशों को गिरवी बनाना, दुनिया को थोड़ा नापसंद है.

ऐसे में विकासशील देश (यूरेशियाई) रूस के साथ खड़े दिखाई पड़ रहे हैं. हाल ही में रूस के कजान में हुई ब्रिक्स देशों का शिखर सम्मेलन इसका साक्षी है, जिसमें 35 देशों ने हिस्सा लिया. ब्रिक्स का पार्टनर बनने के लिए दर्जनों देशों की एक लंबी सूची है. क्योंकि ब्रिक्स में दो ऐसे अहम देश हैं जिनकी दोस्ती पृथ्वी के सबसे ‘ऊंचे पर्वत से ऊंची’ है और जिन पर ग्लोबल साउथ भरोसा कर सकता है.