चीन के खिलाफ पूर्व सीडीएस (स्वर्गीय) जनरल बिपिन रावत के मास्टर-प्लान में ब्यूरोक्रेसी का रोड़ा आ गया है. ऐसे में अगर इस साल तक रक्षा मंत्रालय ने जनरल रावत की बेहद खास युद्ध-नीति, इंटीग्रेटेड बैटल ग्रुप (आईबीजी) को मंजूरी नहीं दी तो सेना हमेशा के लिए ठंडे बस्ते में डाल देगी.
थलसेना प्रमुख जनरल उपेंद्र ने साफ कर दिया है कि अगर 2025 में आईबीजी को सरकार से मंजूरी नहीं मिली तो प्लान को रद्द कर दिया जाएगा.
सिक्किम से सटे चीन बॉर्डर पर डोकलाम विवाद (2017) के बाद तत्कालीन थलसेना प्रमुख (बाद में सीडीएस) जनरल रावत ने सेना की रणनीति में बदलाव लाने की कोशिश की थी. इसके तहत, दुश्मन के खिलाफ पूरी स्ट्राइक कोर को सीमा पर भेजने के बजाए छोटे-छोटे ग्रुप (आईबीजी) में बदलकर स्थायी तौर से तैनात कर दिया जाएगा.
क्या होता है आईबीजी
ये आईबीजी, सेना के एक ब्रिगेड से बड़ी फॉर्मेशन है. लेकिन इसमें इंफैन्ट्री के साथ-साथ टैंक, आर्टिलरी, एविएशन (अटैक हेलीकॉप्टर) और एयर-डिफेंस भी शामिल होगी. जनरल रावत आईबीजी इसलिए बनाना चाहते थे, क्योंकि शांति-काल में स्ट्राइक कोर सीमा से दूर तैनात रहती हैं. युद्ध की परिस्थितियों में उन्हें बॉर्डर पर भेजने में एक लंबा समय लग जाता है.
आईबीजी अपने छोटे स्वरूप के चलते तेजी से बॉर्डर पर दुश्मन के खिलाफ लोहा लेने के लिए तैयार रह सकती है.
जनरल रावत ने वर्ष 2019 में पहली बार चीन के खिलाफ वास्तविक नियंत्रण रेखा पर ऐसे आईबीजी ग्रुप को तैनात करने का मसौदा तैयार किया था. लेकिन पांच साल बाद भी इसे अमली-जामा नहीं पहनाया गया है.
ब्यूरोक्रेसी ने क्यों लगाया अड़ंगा
77वें थलसेना दिवस के मौके पर इसी हफ्ते जनरल द्विवेदी ने मीडिया को बताया कि आईबीजी को जमीन पर उतारने के लिए “फाइनेंशियल (वित्तीय) खर्च के साथ सैनिकों और सैन्य उपकरणों की रीस्ट्रक्चरिंग यानी पुनर्गठन भी करना होगा.” ऐसे में रक्षा मंत्रालय से इजाजत लेने की जरूरत है.
जनरल द्विवेदी ने हालांकि साफ कह दिया है कि “जैसा हम जानते हैं कि जहां ब्यूरोक्रेसी किसी प्लान में शामिल होती है, तो वो समय लेती है.” ऐसे में आईबीजी के गठन में भी देरी हो रही है. लेकिन थलसेनाध्यक्ष ने दो टूक कहा है कि “अगर 2025 तक आईबीजी के बारे में कोई निर्णय नहीं लिया गया तो, प्लान को हमेशा हमेशा के लिए पूरी तरह रद्द कर दिया जाएगा.”
डोकलाम विवाद से ली थी सीख
उल्लेखनीय है कि जनरल रावत के कार्यकाल में ही पहली बार भारतीय सेना ने कई दशक बाद सीमा पर चीन की सेना की ‘सलामी-स्लाइसिंग’ पर रोक लगा दी थी. वर्ष 2017 में भारत और भूटान के ट्राई-जंक्शन (डोकलाम में) चीन की सेना ने सड़क बनाकर घुसपैठ करने की कोशिश की थी. लेकिन जनरल रावत के नेतृत्व में भारतीय सेना ने चीन को रोक दिया था. 72 दिन के लंबे गतिरोध और तनातनी के बाद चीन को आखिरकार अपने सड़क बनाने का काम रोकना पड़ा था.
डोकलाम विवाद से सीख लेते हुए है जनरल रावत ने आईबीजी के जरिए चीन को सबक सिखाने का प्लान तैयार किया था. गलवान घाटी की झड़प (जून 2020) में भी भारत को अपनी पूरी एक स्ट्राइक कोर को एलएसी पर तैनात करना पड़ा था. इस बीच दिसंबर 2021 में जनरल रावत की हेलीकॉप्टर क्रैश में मौत हो गई थी. उस वक्त, जनरल रावत चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) के पद पर थे.
जनरल रावत की मौत के बाद भी सेना ने आईबीजी प्लान को जिंदा रखा था और जरूरी मंजूरी के लिए रक्षा मंत्रालय भेजा था. (https://youtu.be/wf87OiuRy_0?si=9logdsh9q0ZKy0dk)