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म्यांमार में IAF एयरक्राफ्ट की स्पूफिंग, पायलट्स जानते हैं क्या करना है, बोली वायुसेना

म्यांमार में भारतीय वायुसेना के एयरक्राफ्ट के जीपीएस को हैक करने को लेकर इंडियन एयर फोर्स (आईएएफ) ने जारी किया है बयान. वायुसेना ने स्पूफिंग को लेकर अपने आधिकारिक बयान में कहा है, कि “हमारे क्रू ने ऐसी स्थितियों से निपटने की पूरी तैयारी की थी. वायुसेना के पायलट ऐसे हालात में भी पूरी सुरक्षा के साथ मिशन को अंजाम देने में सक्षम हैं.”

दरअसल म्यांमार में चलाए गए ऑपरेशन ब्रह्मा के दौरान आसमान में ही जीपीएस स्पूफिंग का सनसनीखेज मामला सामने आया था, लेकिन राहत बचाव कार्य में लगे सी-130जे सुपर हरक्यूलिस और सी-17 ग्लोबमास्टर जैसे अत्याधुनिक विमानों के पायलट्स ने स्पूफिंग से निपटते हुए अपने ऑपरेशन को बखूबी निभाया.

क्या है म्यांमार राहत कार्य में स्पूफिंग का पूरा मामला?

28 मार्च को म्यांमार में भयंकर भूकंप आया था, जिससे म्यांमार को भारी नुकसान पहुंचा है. म्यांमार की मदद के लिए भारत ने सबसे पहले कदम बढ़ाते हुए एयरफोर्स के साथ-साथ नेवी और आर्मी को भी लगा दिया. लेकिन राहत-बचाव कार्य के दौरान वायुसेना के विमानों को जीपीएस स्पूफिंग से जूझना पड़ा. बताया जा रहा है कि म्यांमार की एयर-स्पेस में जब भारतीय विमान दाखिल हुए तो उनकी जीपीएस हैक करने की कोशिश की गई. इस तरह की हैकिंग को एविएशन में स्पूफिंग के नाम से जाना जाता है. हैकिंग से ये होता है कि विमान रास्ता भटक जाता है.

नेविगेशन न मिलने के कारण पायलट कन्फ्यूज होते हैं और कई बार हादसे का शिकार भी हो जाते हैं. इस दौरान पायलट विमान वहां उतार देते हैं, जो खतरनाक जगह होती हैं. अक्सर ऐसा कुछ युद्ध के मैदान में देखा जाता है. लेकिन भारतीय वायुसेना को म्यांमार के रेस्क्यू ऑपरेशन के दौरान स्पूफिंग से जूझना पड़ा.

एयरफोर्स के क्रू ने हालांकि, जीपीएस के कमजोर पड़ने या गुमराह करने की स्थिति में तुरंत इनर्शियल नेविगेशन सिस्टम (आईएनएस), जो कि एक पारंपरिक तरीका है, उसपर विमान को  स्विच कर लिया. आईएनएस एक ऐसी तकनीक है जो बिना जीपीएस के भी दिशा का निर्धारण कर सकती है. आईएनएस सिस्टम के जरिए ही भारतीय विमानों ने म्यांमार के मैंडले में लैंड किया. एयरफोर्स की सूझबूझ के कारण कोई भी हादसा नहीं हुआ और ऑपरेशन ब्रह्मा सफलतापूर्वक किया गया. 

एयरफोर्स ने स्पूफिंग पर जारी किया बयान

भारतीय वायुसेना ने स्पूफिंग शब्द से बचते हुए सिग्नल में गड़बड़ी बताते हुए कहा है कि, “वायुसेना ने राहत मिशन के दौरान हर संभव सावधानी बरती और सभी उड़ानें सुरक्षित रूप से पूरी हुईं.” वायुसेना ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा कि, “मैंडले अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे ने पहले ही जीपीएस सिग्नल कमजोर होने की सूचना एनओटीएम (नौटेम) के जरिए जारी कर दी थी. हमारे क्रू ने ऐसी स्थितियों से निपटने की पूरी तैयारी की थी. वायुसेना के पायलट ऐसे हालात में भी पूरी सुरक्षा के साथ मिशन को अंजाम देने में सक्षम हैं.” (https://x.com/IAF_MCC/status/1911794299609686024)

स्पूफिंग के पीछे साजिश, या सेटेलाइट गड़बड़ी?

शुरुआत में ये कयास लगाए जा रहे थे कि स्पूफिंग के पीछे कौन है. गृहयुद्ध ग्रस्त म्यांमार से चीन की सीमा भी सटी है. चीन को इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर का खिलाड़ी माना जाता है. ऐसे में आशंका इस बात की थी कि इसके पीछे चीन हो सकता है. वहीं कहा ये भी जा रहा था कि विद्रोहियों को चकमा देने के लिए खुद म्यांमार की जुंटा (सेना) भी किसी हमले को भटकाने के लिए जीपीएस सिग्नल कमजोर करने की रणनीति अपनाती है. वायुसेना के कुछ एयरक्राफ्ट अभी भी म्यांमार में हैं.

स्पूफिंग के चक्कर में अजरबैजान का विमान हुआ था हादसे का शिकार

इस तरह की स्पूफिंग को जंग के दौरान एयरस्पेस में इस्तेमाल होती है. जिसका उदाहरण कुछ महीने पहले रूसी एयरस्पेस में हुआ. अजरबैजान के यात्री विमान का हादसा था. बताया जा रहा है कि यूक्रेन ने ड्रोन और लड़ाकू विमानों को भटकाने के लिए रूस ने जैमर या स्पूफिंग की थी, और उस दौरान अजरबैजान के एक विमान का जीपीएस जाम हो गया और वो रूसी एयरस्पेस में आ गया. इधर रूसी सेना को लगा कि विमान दुश्मन सेना का है तो उन्होंने उसे मिसाइल से टारगेट कर लिया. जिससे यात्री विमान हादसे का शिकार हो गया. हादसे में 38 से ज्यादा यात्रियों की मौत हो गई थी, जबकि कुछ लोगों को बचा लिया गया था. हालांकि बाद में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अजरबैजान के राष्ट्रपति से घटना पर खेद जताया था. 

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