ईरान और इजरायल के बीच आखिरकार 12 दिन बाद युद्धविराम हो गया है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस सीजफायर में अहम भूमिका निभाई. लेकिन सवाल ये खड़ा होता है कि एक दूसरे के जानी दुश्मन, ईरान और इजरायल को इस युद्धविराम से क्या हासिल हुआ. साथ ही बड़ा सवाल ये कि क्या ट्रंप का नोबेल शांति पुरस्कार पाने का सपना पूरा हो पाएगा.
सोमवार की रात ईरान ने जब कतर स्थित यूएस एयरबेस को निशाना बनाने की कोशिश की तो, महज कुछ घंटों के भीतर ही ट्रंप ने सीजफायर का ऐलान कर दिया. ईरान और इजरायल, दोनों की तरफ से अमेरिकी राष्ट्रपति ने युद्धविराम की घोषणा कर दी. इस युद्धविराम में कतर ने भी अहम भूमिका निभाई.
अमेरिका के युद्धविराम की घोषणा के साथ ही ईरान में जश्न मनाया जाने लगा. कतर में अमेरिकी एयरबेस पर मिसाइल अटैक भले ही विफल हो गया हो लेकिन ईरान ने इस मिशन को नाम दे दिया गुड न्यूज ऑफ विक्ट्री यानी इजरायल और अमेरिका के खिलाफ जंग में जीत की अच्छी खबर. लेकिन क्या वाकई ईरान ने ये जंग जीत ली है. जिस देश के परमाणु ठिकानों पर पिछले 12 दिनों में दो बार बड़ी स्ट्राइक हो, जिसके आर्मी और एयरफोर्स चीफ सहित बेहद मजबूत आईआरजीसी (इस्लामिक रिवूलेशनरी गार्ड कोर) के आधा दर्जन से ज्यादा टॉप कमांडर प्रेशसियन स्ट्राइक में ढेर हो गए हैं, न्यूक्लियर साइंटिस्ट मार गिराए हैं, जिसका सुप्रीम लीडर (अली खामेनेई) बंकर में शरण लेने के लिए मजबूर है. क्या ऐसे देश की जीत मानी जा सकती है.
13 जून को ईरान के खिलाफ जंग शुरू करने वाले इजरायल ने भी ट्रंप के युद्धविराम को थोड़ा इंतजार करने के बाद स्वीकार कर लिया. हालांकि, ट्रंप के ऐलान के बाद ईरान ने इजरायल पर फिर मिसाइल अटैक कर दिए थे. लेकिन ये हमले, ट्रंप के चरणबद्ध तरीके से युद्धविराम को लागू करने के चलते हुआ. यही वजह है कि सीजफायर लागू होने के बाद भी इजरायल ने आईआरजीसी के कमांडर्स को मार गिराने का सिलसिला जारी रखा.
दरअसल, इजरायल के लिए युद्धविराम को स्वीकार करना बुद्धिमत्ता तो थी ही मजबूरी भी थी. इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने ईरान के खिलाफ जंग इसलिए शुरु की थी ताकि अपने दुश्मन नंबर वन को परमाणु हथियार बनाने से रोका जा सके.
इजरायल की डिफेंस फोर्सेज (आईडीएफ) ने जंग की शुरुआत, ईरान के पांच बड़े परमाणु संयंत्रों (ठिकानों) पर हमले के साथ की थी. इनमें से तीन बड़े ठिकाने, फार्दो, नतांज और एस्फहान पर अमेरिका ने बाद में बी2 स्पिरिट बॉम्बर्स से जीबीयू-57 (मदर ऑफ ऑल बम) हमला कर पूरी तरह तबाह कर दिया. यानी इजरायल अपने मुख्य उद्देश्य में कामयाब रहा. यानी निकट भविष्य में ईरान एटमी हथियार नहीं बना पाएगा.
ईरान का परमाणु कार्यक्रम इन 12 दिनों में 5-6 साल पिछले हो गया है. साथ ही ईरान को अब अपने परमाणु कार्यक्रम को यूएन और आईएईए (इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी) जैसी वॉच-डॉग की सीधी निगरानी में पूरा करना होगा.
मिडिल ईस्ट की जंग में अमेरिका के कूदने से लेकिन एक बात साफ हो गई कि ईरान को अकेले अपने बूते पर हराना इजरायल जैसे शक्तिशाली देश के लिए भी एक टेढ़ी खीर साबित हो सकता है. इजरायल ने भले ही हवाई हमलों से ईरान के परमाणु और सैन्य ठिकानों को तबाह कर दिया है, लेकिन खामेनेई के नेतृत्व वाली ईरानी हुकूमत ने घुटने नहीं टिके. इसी को ईरान अपनी जीत मान रहा है. आखिरी दम तक ईरान ने मिसाइल अटैक जारी रखे. साथ ही चीन और रूस जैसे मजबूत देशों का समर्थन भी प्राप्त हुआ.
एक ऐसा देश, जो पिछले कई सालों से प्रतिबंधों की मार झेल रहा है. जिसकी अपनी कोई मजबूत एयर फोर्स तक नहीं है. जिसकी वायुसेना को आखिरी लड़ाकू विमान, वर्ष 1991 में मिला था, उसने अपने दम पर मिसाइलों का ऐसा जखीरा तैयार किया कि, इजरायल के आयरन डोम तक के पसीने छूट गए.
ईरान ने फतह, सेजिल और खैबर जैसी मिसाइलों को दुनिया के सामने लाकर हर किसी को दांतो तले उंगली दबाने के लिए मजबूर कर दिया. इजरायल का आयरन डोम हो या फिर एरो एयर डिफेंस सिस्टम, ईरान की बैलिस्टिक और हाइपरसोनिक मिसाइलों के सामने बौना साबित हुआ. नतीजा, ये हुआ कि इजरायल के सबसे बड़े शहर तेल अवीव और हाइफा पोर्ट को जबरदस्त नुकसान हुआ तो इजरायली स्टॉक एक्सचेंज और मोसाद की बिल्डिंग तक भी बर्बाद हो गई. पिछले 12 दिनों से पूरे इजरायल में मिसाइल अटैक के सायरन बज रहे थे तो पूरी जनता बंकर में छिपने के लिए मजबूर थी.
ऊपर से ट्रंप का ये तंज कि ईरान के परमाणु ठिकानों को तबाह करने के लिए इजरायल के पास कोई हथियार (बम या मिसाइल) नहीं है, नेतन्याहू के सीने पर डंक की तरह चुभ गया. ईरान का फार्दो परमाणु संयंत्र, जमीन से 90 मीटर नीचे था और उसकी दीवारें भी कई मीटर मोटी थी. यही वजह है कि ट्रंप ने ऑपरेशन मिडनाइट हैमर लॉन्च किया.
इस साल के शुरुआत में अमेरिका की दोबारा कमान संभालने वाले ट्रंप ने दुनिया की हर जंग को खत्म करने का दम भरा था. रूस-यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने में असफल रहे ट्रंप ने भारत और पाकिस्तान के बीच हुए सैन्य टकराव को खत्म करने का क्रेडिट ले लिया. लेकिन मिडिल-ईस्ट की जंग में कूदना पड़ गया.
नोबेल पीस प्राइज की शिद्दत से चाहत रखने वाले ट्रंप को क्या अब वाकई शांति दूत माना जा सकता है, इस पर सवाल खड़े होने लगे हैं. लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति अपना ट्रंप-कार्ड फिर खेलने की तैयारी में है. दावा ये कि अगर ऑपरेशन मिडनाइट हैमर लॉन्च नहीं किया होता तो, इजरायल-ईरान की जंग पूरे मिडिल ईस्ट में फैल सकती थी.
क्योंकि गुड न्यूज ऑफ विक्ट्री का मतलब था कि मिडिल ईस्ट की जंग में कतर के कूदने की भी प्रबल संभावना थी. दुनिया के सुपर-पावर के बेस पर अटैक करना की बेइज्जती क्या ट्रंप झेल सकते हैं. हालांकि, ईरान ने बड़ी ही चालाकी से हमला करने से पहले ही कतर को जानकारी साझा कर दी थी. ऐसे में ट्रंप ने भी अमेरिका के साथ-साथ ईरान को भी इस जंग से ‘रिस्पेक्टिवल-एग्जिट’ करने की छूट दे दी. इजरायल भी अपने उद्देश्य को तो पूरा कर चुका था और अपने जनता को मिसाइल अटैक से बचाना चाहता था. ऐसे में नेतन्याहू ने भी ईरान की तरह ही सीजफायर में ही भलाई समझी.