कोलकाता के गार्डन रीच शिपबिल्डर्स एंड इंजीनियर्स (जीआरएसई), द्वारा निर्मित आठ एंटी-सबमरीन वारफेयर शैलो वाटर क्राफ्ट (एएसडब्ल्यू एसडब्ल्यूसी) श्रृंखला का दूसरा जहाज आईएनएस अंड्रोथ भारतीय नौसेना को सौंप दिया गया है.
आईएनएस अंड्रोथ की विशेषताएं:
—इस जहाज का नाम लक्षद्वीप द्वीपसमूह में स्थित अंड्रोथ द्वीप के नाम पर रखा गया है, जो भारत की समुद्री सीमाओं की रक्षा के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
– यह जहाज समुद्री तट के करीब पनडुब्बी-रोधी युद्ध, सतह निगरानी, खोज और हमले के संचालन के लिए डिज़ाइन किया गया है.
इसमें हल्के टॉरपीडो, पनडुब्बी रोधी रॉकेट और उन्नत सोनार प्रणाली जैसे अत्याधुनिक हथियार और सेंसर लगे हैं. (https://x.com/indiannavy/status/1967158591275868286?s=46)
पहला शैलो वाटर क्राफ्ट 18 जून को हुआ था जंगी बेड़े में शामिल
नौसेना ने 18 जून को एंटी सबमरीन वॉरफेयर शैलो वाटर क्राफ्ट श्रेणी के पहले जहाज ‘आईएनएस अर्नाला’ (अर्णाला) को अपने बेड़े में शामिल किया था. चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल अनिल चौहान की मौजूदगी में नौसेना डॉकयार्ड, विशाखापत्तनम में एक समारोह के दौरान आईएनएस अर्णाला नौसेना की ताकत बना था.
जीआरएसई कोलकाता ने किया है इन युद्धपोतों का निर्माण
इन जंगी जहाज का निर्माण कोलकाता की गार्डन रीच शिपबिल्डर्स एंड इंजीनियर्स ने लॉर्सन एंड टुब्रो शिपबिल्डर्स के साथ सार्वजनिक-निजी भागीदारी में किया है.
80 प्रतिशत स्वदेशी तकनीक से निर्मित ये पोत भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीईएल), एलएंडटी, महिंद्रा डिफेंस और मेघा इंजीनियरिंग एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड – एमईआईएल सहित प्रमुख भारतीय रक्षा फर्मों की उन्नत प्रणालियों से युक्त है. इस परियोजना में घरेलू उद्योग को बढ़ावा देने और संबंधित आर्थिक गतिविधियां उत्पन्न करने वाले 55 से अधिक सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम शामिल रहे हैं.
एएसडब्लू-एसएडब्लू की खासियत जानिए
एंटी-सबमरीन वारफेयर शैलो वाटर क्राफ्ट ऑपरेशन श्रृंखला के लिए डिज़ाइन और निर्मित किया गया, युद्धपोत, उपसतह-तटीय इलाकों में खुफिया निगरानी, तटीय सुरक्षा, खोज और बचाव तथा कम तीव्रता वाले समुद्री अभियानों में सक्षम है. 1490 टन से अधिक वजन का 77.6 मीटर लंबा भारतीय नौसेना का यह सबसे बड़ा डीजल इंजन-वॉटरजेट संयोजन से चलने वाला युद्धपोत है.
इन युद्धपोत के नौसेना के जंगी बेड़े में शामिल होने से भारत की नौसैनिक क्षमताओं में परिवर्तनकारी बदलाव आएंग्. इससे तटीय सुरक्षा मजबूत होगी और रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण हिंद महासागर क्षेत्र में आत्मनिर्भर समुद्री शक्ति के रूप में भारत की स्थिति को और सुदृढ़ बनाएगा.