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‘अग्निवीर’ ने लगाई BJP के वोट-बैंक में सेंध ? (TFA Analysis)

चुनाव में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को सेना की अग्निवीर स्कीम ने बड़ा नुकसान पहुंचाया है. इसके दो बड़े सबूत है. पहला तो ये कि चुनाव नतीजों की गिनती में पोस्टल-बैलेट में बीजेपी वाले एनडीए और कांग्रेस की इंडी-अलयांस में कांटे की टक्कर देखने को मिली थी. दूसरा ये कि सेना के ‘कैचमेंट’ एरिया में ही बीजेपी को ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा है. 

4 जून को जैसे ही काउंटिंग शुरु हुई, चौंकाने वाले नतीजे सामने आने शुरु हो गए. मतगणना के पहले एक घंटे में बीजेपी की अगुवाई वाले नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट (एनडीए) और कांग्रेस के इंडियन नेशनल डेवलपमेंट इनक्लुजिब (आईएनडीआई यानि इंडी) अलायंस की सीटों में बहुत ज्यादा अंतर नहीं था. पहले आधे घंटे में एनडीए की सीटें थी 122 तो इंडी-अलयांस की थी 100. जैसा की पोल-पंडित चुनाव के दौरान और एग्जिट-पोल अनुमान लगा रहे थे, नतीजे बिल्कुल उसके उलट थे.

दरअसल, बॉर्डर और दूरदराज के इलाकों में तैनात सैनिकों के लिए चुनाव आयोग ने पोस्टल-बैलेट की सुविधा दे रखी है. ये पोस्टल बैलेट मतदान की तारीख से पहले ही पड़ जाते हैं. इसलिए मतगणना के दौरान सबसे पहले पोस्टल-बैलेट की ही गिनती होती है. उसके बाद ईवीएम के नतीजे सामने आते हैं. सेना के अलावा पोस्टल बैलेट में केंद्रीय अर्धसैनिक बल (सीआरपीएफ, बीएसएफ इत्यादि) भी शामिल होते हैं. क्योंकि पैरा-मिलिट्री फोर्स की भी चुनाव मतदान से लेकर ईवीएम की सुरक्षा और मतगणना की दौरान ड्यूटी रहती है. ऐसे में अर्धसैनिक बल के जवान भी पोस्टल-बैलेट का काफी इस्तेमाल करते हैं. 

लेकिन सवाल ये है कि सैनिकों ने बीजेपी और एनडीए के विरोध में वोट क्यों दिया. दरअसल, कांग्रेस के राहुल गांधी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल सहित एआईआईएम के असदुद्दीन ओवैसी ने सरकार को चुनाव अभियान के दौरान अग्निपथ (अग्निवीर) स्कीम को लेकर जमकर घेरा. विपक्ष ने ये नैरेटिव फैला दिया कि सेना में अग्निवीरों को दोयम दर्जे का सैनिक माना जाता है. कुछ-कुछ ऐसा जैसा कि भारतीय समाज में निचली जातियों को माना जाता है. राहुल गांधी ने अपनी चुनावी रैलियों में गांव के युवाओं तक को शामिल करना शुरु कर उनसे सीधे संवाद शुरु कर अग्निवीर पर सवाल-जवाब करना शुरु कर दिया. 

ओवैसी ने तो यहां तक कह दिया कि बीजेपी अगर तीसरी बार सरकार में आई तो अर्द्धसैनिक बलों में भी अग्निपथ स्कीम को लागू किया जाएगा. राहुल गांधी ने ऐलान किया कि अगर उनकी सरकार आई तो अग्निपथ प्लान को कूड़ेदान में डाल दिया जाएगा. 

अब अगर जिन राज्यों में बीजेपी को सीटों का नुकसान हुआ है तो पाएंगे कि ये वही ‘कैचमेंट’ एरिया है जहां से भारतीय सेना को सबसे ज्यादा सैनिकों की भर्ती होती है. ये राज्य हैं उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान और महाराष्ट्र. अकेले उत्तर प्रदेश में बीजेपी को 2019 के मुकाबले करीब 30 सीटों का नुकसान हुआ है. महाराष्ट्र में बीजेपी को 2019 के मुकाबले 14 सीटों का नुकसान हुआ है. ठीक वैसे ही राजस्थान में बीजेपी को कम से कम 10 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा है. हरियाणा में भी बीजेपी की सीटें 2019 के मुकाबले आधी हो गई हैं.

कांग्रेस और विपक्ष के मुकाबले प्रधानमंत्री (अब कार्यवाहक) मोदी ने अपने चुनाव अभियान में एक बार भी अग्निपथ स्कीम का जिक्र नहीं किया, जबकि ये प्लान उनके ही दिमाग की उपज थी. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने चुनाव’ में मात्र एक बार अग्निवीर योजना का जिक्र किया. वो भी राजनाथ सिंह ने ये कहते हुए जिक्र किया कि अगर जरूरत पड़ी तो अग्निपथ योजना में बदलाव किए जा सकते हैं. साफ है कि अग्निपथ स्कीम को लेकर बीजेपी बैकफुट पर थी. चुनाव के दौरान चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) ने अग्निवीरों के रेजीमेंटल सेंटर में जाकर जरुर बातचीत की और उनकी योग्यताओं को सराहा. लेकिन राजनीति के अखाड़े में सीडीएस के विचार कहीं दब कर रह गए (देश की संप्रभुता के रखवाले हैं अग्निवीर: CDS).

दरअसल, चुनावों से पहले ही पूर्व थलसेना प्रमुख एमएम नरवणे ने अपनी पुस्तक के जरिए अग्निवीर योजना को लेकर सवाल खड़े करने शुरु कर दिए थे. ऐसे में विपक्ष योजना को मुद्दा बनाने में कामयाब रहा. 

वर्ष 2022 में सरकार अग्निपथ योजना को इसलिए लेकर आई थी ताकि सेना को ‘यंग’ रखा जा सके. अग्निपथ योजना के जरिए सरकार चाहती थी कि सेना को एक ‘कॉम्बैट-रेडी फोर्स’ बनाई जा सके. इससे सेना की ‘टेल’ तो छोटी होती ही साथ ही कॉम्बैट सोल्जर्स का एक बड़ा ‘पूल’ तैयार किया जा सकता था. ऐसा इसलिए कि युद्ध के समय में पूर्व अग्निवीरों को सेना में तुरंत भर्ती किया जा सके. ठीक वैसे ही जैसा कि इजरायल जैसे देश करते हैं जहां सभी युवाओं को मिलिट्री सर्विस अनिवार्य है. साफ था कि शांति काल में एक छोटी सेना लेकिन युद्ध के वक्त अनुशासित सैनिकों की कमी न हो और थोड़ी ट्रेनिंग के साथ ही जंग के मैदान में भेज दिया जाए. 

लेकिन भारत जैसे देश में जहां दुनिया की सबसे बड़ी जनसंख्या है (140 करोड़) और बेरोजगारी भी उसी अनुपात में है, वहां सेना को रोजगार का एक बड़ा जरिया भी माना जाता है. ऐसे में ग्रामीण भारत से आने वाले युवाओं में सरकार के अग्निपथ स्कीम को लेकर थोड़ा गुस्सा जरुर था जो चुनाव नतीजों में सामने आया. पोस्टल-बैलेट के नतीजों से ये भी सामने आया कि मौजूदा सैनिक भी अग्निवीर योजना से नाखुश हैं.   

अग्निवीर योजना को कूड़े में फेंक देंगे: राहुल
चुनावी अभियान के दौरान राहुल गांधी ने झांसी में अग्निवीर योजना को लेकर मोदी सरकार को घेरा. राहुल गांधी ने कहा कि ” अग्निवीर योजना सेना और हिंदुस्तान के खिलाफ है. इंडिया गठबंधन की सरकार आएगी तो इस अग्निवीर योजना को उठाकर कूड़ेदान में फेंक देंगे, हम शहीदों के साथ भेदभाव नहीं होने देंगे.” राहुल गांधी ने कहा, “एक जवान को शहीद का दर्जा, पेंशन और दूसरे को नहीं, ऐसी योजना नहीं चाहिए. यूपी में डिफेंस कॉरिडोर का मुद्दा भी राहुल गांधी ने उठाया. राहुल गांधी बोले, “बुंदेलखंड में डिफेंस कॉरिडोर के बहाने सरकार जमीन ले लेती है और सही दाम नहीं देती. डिफेंस कॉरिडोर में रक्षा उपकरणों का उत्पादन शुरू करने का वादा किया गया था. मगर अदाणी जैसे लोगों को जमीन दे दी गई और कुछ किया नहीं.”

पीएम ने गरीब, दलित के बेटों को अग्निवीर बनाया: राहुल
रायबरेली से चुनावी मैदान में उतरे राहुल गांधी ने रायबरेली में भी प्रचार के दौरान कहा कि “जब मैं अमेठी और रायबरेली आता था, तो सड़कों पर लड़के सुबह 5 बजे दौड़ लगाते थे. क्योंकि इनमें देशभक्ति की भावना थी. अब पीएम मोदी ने दो तरह के जवान बना दिए हैं. एक गरीब, दलित व अल्पसंख्यकों का बेटा है और दूसरा अमीर का बेटा है. पीएम मोदी ने गरीब के बेटों को ‘अग्निवीर’ नाम दे दिया है. अब वे उससे कह रहे हैं कि अगर तुम शहीद हो जाओगे, तो तुम्हें शहीद का दर्जा नहीं मिलने वाला है. पेंशन और कैंटीन की सुविधा भी नहीं मिलेगी. हिंदुस्तान की सेना अग्निवीर के खिलाफ है.” बार-बार हर रैली में राहुल गांधी समेत कई वरिष्ठ कांग्रेसी नेता लोगों से यही वादा कर रही थी कि “हमारी सरकार बनते ही अग्निवीर योजना को उठाकर फेंक दिया जाएगा, क्योंकि देश को 2 तरह के शहीद नहीं चाहिए. अग्निवीर योजना खत्म करके सेना में पुरानी व्यवस्था लागू की जाएगी.”

मोदी जीते तो सीआरपीएफ, एसएसबी, बीएसएफ  में भी अग्निवीर योजना: ओवैसी
हैदराबाद से चुनावी मैदान में एआईएमआईएम के चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने भी अग्निवीर योजना का मुद्दा उठाया है. हाल ही में ओवैसी ने भी कहा है कि “मोदी सरकार अभी तो अग्निवीर की स्कीम सेना में लाई है, लेकिन फिर से सत्ता में आने पर ये लोग इस स्कीम को सीआरपीएफ, बीएसएफ, आरपीएफ और एसएसबी में भी ले लाएंगे.”

अग्निवीर योजना खत्म करेंगे: केजरीवाल
शराब घोटाले में जेल से जमानत पर बाहर आते ही अरविंद केजरीवाल ने भी अग्निवीर योजना को लेकर बीजेपी को घेरा था. अरविंद केजरीवाल ने कहा कि “हमारी सरकार आएगी तो हम अग्निवीर योजना खत्म करेंगे और चीन से जमीन वापस लेंगे.”आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह ने भी कहा कि “बीजेपी ने अग्निवीर योजना लाकर नौजवानों की पीठ में छुरा घोंपा है. नौजवान सुबह चार बजे उठकर परिश्रम और भारत माता की रक्षा के लिए खुद को तैयार करेगा, लेकिन सेना में उसको भर्ती नहीं मिलेगी, यदि मिलेगी तो चार साल के लिए मिलेगी. अग्निवीर योजना ऐसी योजना है कि बाप नौकरी कर रहा है और बेटा रिटायर हो जाता है, 17 साल में जवान बनो और 21 साल में रिटायर हो जाओ.”

राहुल ने बच्चों को सिखाया अग्निवीर का जोड़ घटाना
फरवरी महीने में ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ के दौरान भी राहुल गांधी का एक वीडियो सामने आया था. छत्तीसगढ़ में यात्रा के दौरान जब बच्चे ने कहा कि वो सेना में जाना चाहता हो तो राहुल ने बच्चे से अग्निवीर योजना के बारे में सवाल जवाब शुरु कर दिया था. राहुल गांधी ने बच्चों को समझाया कि बीजेपी सरकार की अग्निवीर योजना के तहत, युवाओं को सेना में 4 साल के लिए भर्ती किया जाएगा. फिर चार में से तीन अग्निवीर को घर भेज दिया जाएगा. अगर अग्निवीर सीमा पर शहीद होते हैं तो उन्हें शहीद का दर्जा भी नहीं दिया जाएगा. राहुल गांधी का वीडियो वायरल हुआ था.

जरूरत पड़ी तो योजना में बदलाव करेंगे: रक्षा मंत्री
अग्निवीर योजना को लेकर हो रहे विवादों के बारे में बात करते हुए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने अपने एक इंटरव्यू में बड़ा बयान दिया था. राजनाथ सिंह ने कहा कि “मोदी  सरकार जरूरत पड़ने पर अग्निवीर भर्ती योजना में बदलाव के लिए तैयार है.” राजनाथ सिंह ने कहा, “सेना को युवाओं की जरूरत है, युवा उत्साह से भरा होता है, टेक-लवर होते हैं, हमारी सरकार ने यह सुनिश्चित किया है कि अग्निवीरों का भविष्य सुरक्षित रहे.”

अग्निवीर योजना का एबीसीडी जानिए
केंद्र सरकार ने 14 जून 2022 में सेना (थलसेना, नौसेना और वायुसेना) में युवाओं की बड़ी संख्या में भर्ती के लिए अग्निपथ भर्ती योजना शुरू की थी. इस स्कीम के तहत नौजवानों को सिर्फ 4 साल के लिए डिफेंस फोर्स में सेवा देनी होगी. इस योजना के जरिये भर्ती होने वाले सेना के जवान को अग्निवीर के नाम से जाना जाता है. चार वर्ष की सेवा के पश्चात 25 प्रतिशत अग्निवीरों को उनकी कौशलता के आधार पर स्थाई किया जाएगा.

स्थाई कैडर का हिस्सा बन जाने के पश्चात अग्निवीरों बाकी जवानो की ही तरह पेंशन और अन्य सुविधाएं मुहैया कराई जाएगी, इस योजना में 17.5 वर्ष से 21 साल तक के युवा आवेदन कर सकते हैं. फिजिकल नियमों के तहत चयन होता है. 10वीं या 12वीं पास की शैक्षणिक योग्यता अनिवार्य है. चार साल की नियुक्ति में से 6 महीने सैनिकों को बेसिक ट्रेनिंग दी जाएगी. अग्निवीर की जॉइनिंग के पहले साल में अग्निवीरों को 4.76 लाख रुपए का पैकेज मिलेगा. वहीं 4 साल का कार्यकाल खत्म होने तक वेतन को बढ़ाकर 6.92 लाख रुपए दिया जा सकता है. तीनों सेनाओं के स्थायी सैनिकों की तरह अवॉर्ड, मेडल, भत्ता मिलेगा. सरकार 44 लाख का बीमा भी करेगी. ड्यूटी के दौरान मृत्यु होने पर परिवार को सेवा निधि समेत 1 करोड़ रु और बाकी बचे टर्म की पूरी सैलरी दी जाएगी. डिसेबिलिटी के आधार पर 44 लाख रु तक मिलेंगे.

इस स्कीम में ऑफिसर रैंक के नीचे के सैनिकों की भर्ती होगी, यानी अग्निवीरों की रैंक पर्सनल बिलो ऑफिसर रैंक यानी पीबीओआर के तौर पर होगी. इन सैनिकों की रैंक सेना में अभी होने वाली कमीशंड ऑफिसर और नॉन-कमीशंड ऑफिसर की नियुक्ति से अलग होगी. साल में दो बार रैली के जरिए भर्ती की जाएगी.

अग्निवीरों पर रक्षा मामलों की स्थायी समिति की रिपोर्ट में क्या ?
करीब तीन महीने पहले रक्षा मामलों की संसदीय स्थायी समिति ने एक रिपोर्ट पेश की थी. समिति ने रक्षा मंत्रालय से सिफारिश की थी कि ड्यूटी के दौरान शहीद होने वाले अग्निवीरों के परिवारों को भी वही लाभ मिलना चाहिए जो नियमित सैन्य कर्मियों के शहीद होने पर उनके परिवारों को मिलता है. रक्षा मंत्रालय ने समिति को सैनिकों को मिलने वाले मुआवजे के बारे में जानकारी दी है. रक्षा मंत्रालय ने समिति को बताया कि “ऑन ड्यूटी दुर्घटना, आतंकवादियों, असामाजिक तत्वों की हिंसा में अगर कोई सैनिक शहीद होता है तो 25 लाख रुपए का मुआवजा दिया जाता है. सीमा पर होने वाली झड़पों, उग्रवादियों-कट्टरपंथियों से मुठभेड़, समुद्री डाकुओं आदि के खिलाफ कार्रवाई में शहीद होने पर 35 लाख रुपए का मुआवजा, और युद्ध में दौरान दुश्मन के एक्शन में कोई सैनिक शहीद होता है तो मुआवजे में 45 लाख रुपए दिया जाता है.”

रक्षा मंत्रालय के जवाब में स्थायी समिति ने रक्षा मंत्रालय से कहा है कि “सरकार  सभी स्थितियों में सैनिक के शहीद होने पर मुआवजे की राशि 10 लाख रुपए तक बढ़ाने पर विचार करें. किसी भी श्रेणी के तहत न्यूनतम मुआवजा राशि 35 लाख रुपए और अधिकतम मुआवजा राशि 55 लाख रुपए होना चाहिए.”

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सल्ंस

ाल 

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