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भगवान राम के पैरा-कमांडो ! (TFA Spl Series Part-4)

पवन पुत्र हनुमान…बजरंग बली हनुमान…मारुति नंदन…इन सभी नामों से पूरी दुनिया हनुमान जी को आज जानती है. हनुमान जी को ज्ञान, शक्ति, साहस और ताकत का परिचायक माना जाता है. वे भगवान राम के कमांडो के तौर पर काम करते थे. यानी वन-मैन आर्मी. वे अकेले दुश्मनों से भिड़ जाते थे, राक्षसों का संहार कर सकते थे और अकेले ही पर्वत को हिला सकते थे. वायु के पुत्र होने के चलते वे आसमान में फ्लाई कर सकते थे, पैरा जंप लगा सकते थे. वे आज के पैरा-एसएफ कमांडो के प्रतीक हैं. 

हनुमान जी दुश्मन की सीमा में घुसकर यानी बिहाइंड दे एनेमी लाइन जाकर सर्जिकल स्ट्राइक भी कर सकते थे. यानि वे स्पेशल-फोर्सेज के कमांडो की तरह अपने ऑपरेशन कर सकते थे. इसके अलावा वे समंदर के नीचे पाताल लोक में जाकर भगवान राम और लक्ष्मण को बचाकर ला सकते थे. यानी वे मरीन कमांडो का काम भी कर सकते थे. यही वजह है कि हनुमान जी को हमारी धरती के पहले पैरा-एसएफ कमांडो की उपाधि दी जा सकती है. 

जैसा कि हम सभी जानते हैं श्राप के कारण हनुमान जी अपनी शक्तियों के बारे में भूल गए थे. लेकिन जब उनकी मुलाकात भगवान राम से हुई और वानर सेना समंदर के किनारे डेरा डालकर बैठ गई थी. तब जामवंत ने उनकी भूली हुई शक्तियों को याद कराया और वे एक छलांग में ही समंदर पार कर लंका पहुंच गए थे. दुश्मन की सीमा में पूरी सेना के साथ घुसकर आक्रमण करने से पहले बेहद जरुरी था कि माता सीता की मौजूदगी का लंका में मौजूदगी को तस्दीक करना. हनुमान जी ने एक इंटेलीजेंस एजेंट की तरह चुपचाप लंका में दाखिल होकर इस बात की तस्दीक की कि माता सीता वाकई वहां मौजूद हैं. इसके अलावा उन्होंने अकेले ही पूरी लंका को आग के हवाले कर दिया. ये मानव-इतिहास की पहली सर्जिकल-स्ट्राइक मानी जा सकती है. एक ऐसा ऑपरेशन जिसमें पूरी सेना के बजाए अकेले पैरा-एसएफ कमांडो ही दुश्मन की सीमा में घुसकर दुश्मन को एक बड़ा शॉक दे दें. इस तरह के हमले से दुश्मन पर जबरदस्त मनोवैज्ञानिक असर पड़ता है. 

युद्ध के दौरान भी जब मेघनाद से लड़ते हुए लक्ष्मण मूर्छित हो गए थे और उनकी जान बचाने के लिए संजीवनी बूटी की सख्त जरूरत थी तब हनुमान जी ही संकट मोचक बने थे. पवन-पुत्र हनुमान रातो-रात हिमालय पर्वत से संजीवनी बूटी लेकर लंका पहुंच गए थे. इसके लिए उन्होंने हवाई मार्ग का इस्तेमाल किया था. पवन के पुत्र होने के नाते वे आसमान में उड़ान भर सकते थे और हवा से बात भी कर सकते थे. यही वजह है कि लंका से हिमालय पर्वत ओर वहां से लौटने तक का करीब 5000 किलोमीटर का सफर एक रात में ही तय कर लिया था. ये काम एक पैरा-कमांडो ही कर सकता है. हनुमान जी के इस सफर और आधुनिक भारतीय वायुसेना से संबंध पर कुछ महीने पहले फाइनल असॉल्ट ने एक अलग से एपीसोड किया था. उस एपीसोड का लिंक इस वीडियो के आखिर में आपको मिल जाएगा. 

जमीन और आसमान में ही नहीं, हनुमान जी समंदर के नीचे भी दुश्मनों से लड़ सकते थे. राम-रावण युद्ध के दौरान जब अहिरावण छल से भगवान राम और लक्ष्मण जी को अगवा कर पाताल लोक ले गया था, तब हनुमान जी ही उन्हें वहां से छुड़ाकर लाए थे. जिस तरह कोई भी पैरा-एसएफ कमांडो जल, थल और आकाश तीनों लोक में किसी भी तरह के ऑपरेशन और मिशन को अंजाम दे सकता है, ठीक वैसे ही हनुमान जी भी कर सकते थे. यही वजह है कि हम पवन-पुत्र हनुमान जी को अपनी संस्कृति और इतिहास का पहला पैरा-एसएफ कमांडो बता रहे हैं. ेे

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