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विदेशी BOT, टाइम मशीन और मिलिट्री-हैंडल से तख्तापलट

बांग्लादेश में छात्र-आंदोलन के चलते जिस तरह शेख हसीना को प्रधानमंत्री पद छोड़कर देश छोड़ना पड़ा है उसे भारत के सुरक्षा-तंत्र ने बेहद गंभीरता से लेते हुए गहनता से स्टडी की है. ‘अरब-स्प्रिंग’ की तर्ज पर पड़ोसी (मित्र) देश बांग्लादेश में जिस तरह नौकरियों में आरक्षण को लेकर शुरू हुए आंदोलन को हिंसा और अराजकता में तब्दील हुआ, उसको लेकर सुरक्षा एजेंसियों ने सोशल मीडिया पर चलाए गए अभियान की बड़ी पड़ताल की है. टीएफए  के पास भारतीय सुरक्षा एजेंसियों की वो रिपोर्ट है जिसमें खुलासा किया गया है कि बांग्लादेश में तख्तापलट के लिए सोशल मीडिया पर विदेश से ऑपरेट होने वाले ‘बॉट’ (इंटरनेट रोबोट्स) का जमकर इस्तेमाल किया गया था.

रिपोर्ट के मुताबिक, विरोध प्रदर्शन के दौरान ‘बॉट-एक्टिविटी’ को बांग्लादेश के साथ-साथ विदेशों से अंजाम दिया जा रहा था. इसके लिए खास हैशटैग और की-वर्ड्स को बेहद तेजी से ट्रेंड कराया गया. रिपोर्ट के मुताबिक, ये सब “एक सुनियोजित तरीके से उन विदेशी ताकतों द्वारा किया गया जो जियोपॉलिटिकल-उद्देश्य के लिए अपना प्रोपेगेंडा फैलाना चाहती थी.”

रिपोर्ट में यूट्यूब, एक्स (ट्विटर), फेसबुक, इंस्टाग्राम, रेडिट और टेलीग्राम जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का इस दौरान खास एनालिसिस किया गया. विश्लेषण में पाया गया कि ‘कोटा-रिफॉर्म’ को लेकर शुरू हुए आंदोलन में ‘स्टेप डाउन हसीना’, ‘सेव बांग्लादेश स्टूडेंट्स’ और ‘फ्री खालिदा जिया’ जैसे हैशटैग को इस्तेमाल किया गया, जो एक साजिश की तरफ इशारा करता है.

रिपोर्ट में इस बात का भी खुलासा हुआ है कि सोशल मीडिया पर बांग्लादेश के आरक्षण को लेकर ‘मिलिट्री बैकग्राउंड’ या सैन्य जानकारी रखने वाले हैंडल्स का इस्तेमाल भी जमकर किया गया था. ये हैंडल न्यूज एजेंसी या फिर मिलिट्री टॉपिक्स पर प्रिंट मीडिया या फिर डिजिटल मीडिया में रेगुलर लिखते रहे हैं. उनके द्वारा लिखे गए कंटेंट को न्यूज एजेंसी या फिर मीडिया हाउस ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर शेयर किया ताकि ज्यादा से ज्यादा रीडरशिप को खींचा जा सके.

एक हफ्ते के भीतर (15-21 जुलाई) पाया गया कि यूट्यूब पर अमेरिका के 263 हैंडल से बांग्लादेश के आंदोलन को लेकर पोस्ट साझा की गई. जबिक बांग्लादेश से ये संख्या महज 86 थी. बांग्लादेश के 107 हैंडल ट्विटर पर सक्रिय थे. बांग्लादेश के 32 हैंडल से फेसबुक पर प्रदर्शन को लेकर खास सामग्री डाली गई थी.

रिपोर्ट के मुताबिक, 15 जुलाई के बाद महज एक हफ्ते के भीतर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘रेडिट’ बांग्लादेश सहित चीन, अमेरिका और पाकिस्तान एक्टिव हो गए. रेडिट पर भी छात्र-आंदोलन को लेकर प्रोपेगेंडा के लिए इस्तेमाल किया गया.

6 अगस्त को ही टीएफए  ने अपनी एक्सक्लूसिव रिपोर्ट में बताया था कि किस तरह बांग्लादेश की मुख्य विपक्षी पार्टी बीएनपी (बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी) के ऑफिसियल पेज को बांग्लादेश सहित अमेरिका में बैठे एडमिन ऑपरेट कर रहे थे.

रिपोर्ट में इस बात का भी खुलासा हुआ कि सोशल मीडिया कैंपेन सुबह 8 बजे से शाम 7 बजे (आईएसटी) तक किया जाता था. यानी अधिकतम पोस्ट इस समय के बीच ही की गई थी. ये ऑफिस टाइम होता है. साफ है कि छात्र-आंदोलन को हिंसा और अराजकता में बदलने के लिए सरकारी या फिर प्राइवेट दफ्तरों का इस्तेमाल किया गया था. ये पोस्ट साधारण या आम लोगों द्वारा नहीं की गई थी.

रिपोर्ट के मुताबिक, जुलाई महीने के एक हफ्ते में ही (15-21 जुलाई) के बीच बांग्लादेश के छात्र आंदोलन की ट्विटर पर रीच (पहुंच) 45.7 मिलियन यानी साढ़े चार करोड़ (4.57 करोड़) पहुंच चुकी थी. इसी अवधि में फेसबुक और यूट्यूब पर दुनियाभर में रीच थी 4.62 करोड़. सोशल मीडिया पर सबसे ज्यादा पोस्ट ट्विटर पर ही आंदोलन को लेकर अपलोड की गई.

एक अन्य रिपोर्ट में पाया गया था कि ट्विटर पर एक खास ‘रिवोल्ट_71’ हैंडल से सबसे ज्यादा पोस्ट अपलोड की गई थी. इस हैंडल को बीएनपी के कार्यवाहक अध्यक्ष तारिक रहमान और बीएनपी की मीडिया सेल द्वारा तक फॉलो किया जाता है. तारिक के पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई से नजदीकियां जगजाहिर हैं. इस हैंडल में ‘71’ इसलिए जोड़ा गया क्योंकि 1971 में ही पाकिस्तान से अलग होकर बांग्लादेश एक अलग राष्ट्र बना था. ‘रिवोल्ट’ यानी बांग्लादेश की शेख हसीना सरकार के खिलाफ विद्रोह.

बांग्लादेश के छात्र-आंदोलन की ‘लोकेशन-इंटेलिजेंस’ बताती है कि आरक्षण से जुड़ी पोस्ट के लिए बांग्लादेश तो ‘एपिसेंटर’ था, लेकिन दक्षिण एशिया में भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान तक में सोशल मीडिया पोस्ट की जा रही थी. इसके अलावा यूरोप और अमेरिका तक में आंदोलन को लेकर भावनात्मक पोस्ट अपलोड की गई.

रिपोर्ट के मुताबिक, बांग्लादेश के आंदोलन को लेकर एक ‘नैरेटिव’ बनाने की कोशिश की गई. इसके लिए आरक्षण से जुड़ी पोस्ट को लाइक और शेयर के साथ-साथ लगातार सोशल मीडिया पर ‘डिस्कशन’ यानी चर्चा की गई. इसी से पता चलता है कि आरक्षण से जुड़े आंदोलन को एक संगठित रूप देकर पूरे बांग्लादेश में आग लगा दी गई ताकि शेख हसीना गद्दी छोड़ने पर विवश हो जाएं.

बांग्लादेश से भागकर भारत आई शेख हसीना ने खुद इस बात का खुलासा किया है कि अमेरिका की साजिश के चलते ही उन्हें इस्तीफा देने को मजबूर होना पड़ा.