शुक्रवार को भारतीय वायुसेना के मिलिट्री ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट और सिविल फ्रेटलाइनर साउथ चायना सी के लिए उड़ान भरेंगे जिस पर चीन की बेसब्री से निगाह लगी होगी. क्योंकि इनमें होगी भारत की सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल ब्रह्मोस जो फिलीपींस के लिए रवाना होने जा रही हैं. दक्षिण चीन सागर (एससीएस) में फिलीपींस और चीन का विवाद पिछले कुछ महीनों से काफी बढ़ गया है. ऐसे में भारत की ब्रह्मोस मिसाइल इस क्षेत्र में एक बैलेंस का काम करेंगी.
जनवरी 2022 में फिलीपींस ने भारत से ब्रह्मोस मिसाइल खरीदने का करार किया था. भारत और रुस की साझा पहले से बनी ब्रह्मोस मिसाइल पहली बार किसी देश को निर्यात की जा रही है. करार के तहत फिलीपींस को ब्रह्मोस मिसाइल की तीन बैटरियां दी जा रही हैं जिनकी कीमत 375 मिलियन डॉलर है यानी करीब 2700 करोड़. फिलीपींस ने भारत से समुद्री-तट पर तैनात की जाने वाली एंटी शिप ब्रह्मोस मिसाइल का सौदा किया है. माना जा रहा है कि इस हफ्ते ये सभी बैटरियां फिलीपींस पहुंच जाएंगी.
ब्रह्मोस भारत का प्राइम स्ट्राइक वैपेन है जिसे भारत की सबसे लंबी नदी ब्रह्मपुत्र और रूस की मोस्कवा नदी के नामों को मिलाकर नाम दिया गया है. यहां तक की रूस के पास भी ये सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल नहीं है. दुनिया की कोई रडार और हथियार, मिसाइल सिस्टम उसे इंटरसेप्ट नहीं कर सकता है यानी एक बार ब्रह्मोस को दाग दिया तो ब्रह्मास्त्र की तरह इसे कोई नहीं रोक सकता है और अपने लक्ष्य पर ही जाकर गिरती है और टारगेट को तबाह करके ही दम लेती है. ब्रह्मोस को बनाने वाली कंपनी, ब्रह्मोस एयरोस्पेस का दावा है कि ब्रह्मोस की रेंज 290 किलोमीटर है जबकि ऑपरेशनल रेंज ज्यादा ही मानी जाती है. इसकी स्पीड 2.8 मैके है यानि आवाज की गति से भी ढाई गुना ज्यादा की स्पीड. भारत ने हालांकि, ब्रह्मोस, के एक्सटेंडेड रेंज यानी 450-500 किलोमीटर तक मार करने वाली मिसाइल भी तैयार कर ली है.
ब्रह्मोस मिसाइल भारत के उन चुनिंदा हथियारों (मिसाइलों) में से एक है जिसे थलसेना, वायुसेना और नौसेना तीनों ही इस्तेमाल करती हैं. वायुसेना के फ्रंटलाइन एयरक्राफ्ट, सुखोई में भी ब्रह्मोस मिसाइल को इंटीग्रेट कर दिया गया है. थलसेना की आर्टलरी यानि तोपखाना भी ब्रह्मोस मिसाइल का इस्तेमाल करता है. नौसेना के युद्धपोतों को भी ब्रह्मोस से लैस कर दिया गया है. जिससे नौसेना के शिप और अधिक घातक बन गए हैं और समंदर से जमीन तक पर टारगेट करने में सक्षम बन गए हैं.
भारत ने क्योंकि एलएसी पर ब्रह्मोस को तैनात कर रखा है इसलिए चीन के पेट में मरोड़ पैदा हो रही है. लेकिन अब चीन इसलिए भी ज्यादा भयभीत है क्योंकि भारत ने ये सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल फिलीपींस को भी दे दी है. आने वाले दिनों में माना जा रहा है कि वियतनाम और दूसरे आसियान देश भी ये मिसाइल भारत से ले सकते हैं. ये वे देश हैं जिनका चीन के साथ साउथ चायना सी में विवाद चल रहा है. जैसा कि चीन की फितरत है कि वो साउथ चायना सी में किसी दूसरे देश को नहीं आने देना चाहता है और यहां के विवादित आईलैंड पर अपना गैर कानूनी कब्जा जमाना चाहता है.
पिछले साल अक्टूबर के महीने में चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) ने फिलीपींस के एक कोर्वेट (युद्धपोत) को दक्षिण चीन सागर के हुंयागयेन आइलैंड की समुद्री-सीमा में दाखिल होने से रोकने की कोशिश की थी. चीन की नेवल और एयर फोर्सेज ने फिलीपींस के उस जहाज को “ट्रैक किया, मॉनिटर किया, चेतावनी दी और फिर उसका मार्ग ब्लॉक कर दिया.”
ये कोई पहला ऐसा मामला नहीं है जब चीन और फिलीपींस की सेनाएं आमने सामने आई थी. इससे पहले चीन की कोस्टगार्ड के एक जहाज ने फिलीपींस की एक सप्लाई बोट को टक्कर मारकर रोक दिया था. इस घटना के बाद फिलीपींस ने कड़े शब्दों में चीन की भर्त्सना की थी.
फिलीपींस का द्वितीय विश्वयुद्ध का एक युद्धपोत ‘सिएरा माद्रे’ दक्षिण चीन सागर में सेकंड थॉमस शोअल में धंसा हुआ है. फिलीपींस की नौसेना इस स्क्रैप शिप को नेवल बेस के तौर पर इस्तेमाल करती है. वहां तैनात सैनिकों के लिए जो रसद या दूसरी सप्लाई जाती है तो चीन के जहाज उसमें अड़ंगा लगाने की कोशिश करते हैं.
दक्षिण चीन सागर में चीन की बढ़ती दादागिरी के चलते ही पिछले हफ्ते फिलीपींस के राष्ट्रपति फर्दिनांद मार्कोस जूनियर अमेरिका के दौरे पर गए थे. इस दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने एससीएस में चीन की मनमानी रोकने की सौगंध खाई थी. यूएस डिफेंस इंटेलीजेंस एजेंसी ने भी कांग्रेस (संसद) को सौंपी अपनी रिपोर्ट में इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन का डटकर मुकाबला करने और फिलीपींस जैसे देशों के साथ सैन्य सहयोग को लेकर भारत की तारीफ की थी.