जंगी जहाज की संख्या में पहले ही अमेरिका को पीछे छोड़ चुके चीन ने अब युद्धपोत निर्माण में भी एक लंबी छलांग लगाई है. चीन ने दुनिया का पहला ड्रोन-कैरियर तैयार कर लिया है. चीन ने ये यूएवी-कैरियर अपने एम्फीबियस ऑपरेशन्स को मजबूत एयर-सपोर्ट देने के लिए तैयार किया है.
खास बात ये है कि इसके लिए चीन ने अमेरिका के एयरक्राफ्ट कैरियर में इस्तेमाल होने वाले इलेक्ट्रोमैग्नेटिक एयरक्राफ्ट लॉन्च सिस्टम (ईएमएएलएस) को अपने निर्माणाधीन युलान-क्लास लैंडिंग हेलीकॉप्टर असॉल्ट (एलएचए) शिप में इस्तेमाल किया है. ऐसे में कयास लग रहे हैं कि चीन क्या जल्द ताइवान या फिर साउथ चायना सी में किसी बड़ी साजिश को अंजाम देने जा रहा है.
ओपन सोर्स सैटेलाइट इमेज से इस बात का पता चला है कि चांगशिंग आईलैंड शिपबिल्डिंग बेस पर चीन बेहद तेजी से पहले युलान क्लास लैंडिंग (एलएचए) शिप का निर्माण कर रहा है. टाइप 076 युद्धपोत के जरिए पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए)-नेवी, शिप-निर्माण में बेहद तेजी से उन्नत तकनीक का इस्तेमाल कर रही है. यही वजह है कि दुनियाभर की निगाहें चीन के इस आइलैंड पर टिकी हैं.
टाइप 076 जहाज में चीन ने कैटापुल्ट सिस्टम का इस्तेमाल किया है जो यूएस के फोर्ड-क्लास कैरियर्स के ईएमएएलएस यानी इलेक्ट्रोमैगनेटिक एयरक्राफ्च लॉन्च सिस्टम की तरह है. अभी तक एयरक्राफ्ट कैरियर्स में कैटापुल्ट तकनीक का इस्तेमाल किया जाता था. एम्फीबियस असॉल्ट शिप से हेलीकॉप्टर या फिर एफ-35बी जैसे वी/एसटीओएल यानी वर्टिकल शॉर्ट टेक ऑफ एंड लैंडिंग का इस्तेमाल करने वाले फाइटर जेट ऑपरेट होते आए हैं.
लैंडिंग हेलीकॉप्टर असॉल्ट में एयरक्राफ्ट कैरियर की कैटापुल्ट तकनीक ये दर्शाती है कि चीन समंदर के रास्ते किसी आईलैंड या फिर जमीनी क्षेत्र में ऑपरेशन करने की तैयारी कर रहा है. लेकिन बजाए वायुसेना की मदद के चीन अपने एलएचए शिप को ही इस तरह के ऑपरेशन के लिए हवाई सुरक्षा प्रदान करने के लिए तैयार कर रहा है. यही वजह है कि सामरिक जानकार मान रहे हैं कि ताइवान पर आक्रमण के लिए ही चीन टाइप 076 जहाज तैयार कर रहा है.
पेंटागन (अमेरिका के रक्षा विभाग) की रिपोर्ट की मानें तो चीनी नौसेना के जंगी बेड़े में इस वक्त 370 युद्धपोत हैं. जबकि यूएस नेवी के पास महज 280 जहाज हैं. पेंटागन के मुताबिक, वर्ष 2025 तक चीन की पीएलए-नेवी के बेड़े में 390 वारशिप हो जाएंगे. वहीं अमेरिका के 300 युद्धपोत की संख्या 2030 के शुरुआती सालों से पहले तक पहुंच पाना मुश्किल है.
सैटेलाइट इमेज से इस बात का भी खुलासा हुआ है कि टाइप 076 शिप के करीब जीजे-11 होंगडु स्टील्थ ड्रोन भी दिखाई पड़ रहे हैं. ऐसे में लगभग साफ हो गया है कि ये स्टील्थ ड्रोन युलान क्लास जहाज से ऑपरेट किए जाएंगे. एम्फीबियस शिप में यूएवी को इंटीग्रेट करने से चीन की जहाज-निर्माण की स्ट्रेटेजी तो पता चलती है लेकिन कमियां भी उजागर होती है.
चीन लगातार अनमैन्ड सिस्टम पर निर्भर हो रहा है. ये इसलिए हो सकता है कि चीन के पारंपरिक सैनिक इतने कॉम्बेट-रेडी नहीं हैं जो युद्ध के मैदान में लंबे समय तक टिक सके. ऐसे में चीन ज्यादा से ज्यादा ड्रोन-वॉरफेयर पर निर्भर कर रहा है. हाल ही में भारत के पूर्वी लद्दाख से सटी वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर भी मशीनगन ऑपरेट करने वाले रोबोट दिखाई पड़े थे. क्योंकि चीनी सैनिकों को हाई ऑल्टिट्यूड वाले ठंडे इलाकों में तैनात होने में खासी दिक्कत आ रही हैं.
पिछले दो सालों से चीन सेना ताइवान के खिलाफ आक्रामक युद्धाभ्यास कर रही है. रोजाना चीन के फाइटर जेट और जंगी जहाज ताइवान की सीमाओं की उल्लंघन करते हैं. ताइवान जैसे बड़े आईलैंड पर कब्जा करने के लिए ही एम्फीबियस ऑपरेशन्स का इस्तेमाल किया जाता है.
साउथ चायना सी में भी चीन का पिछले डेढ़ साल से फिलीपींस से विवाद चल रहा है. दक्षिण चीन सागर में सेकंड थॉमस शेओल के आठ किलोमीटर लंबे कोरल-द्वीप को लेकर चीन और फिलीपींस में लंबा विवाद रहा है. इस द्वीप पर द्वितीय विश्वयुद्ध का एक जहाज सिएरा-माद्रे फंसा हुआ है. हालांकि, फिलीपींस ने इस जहाज को अपनी एक मिलिट्री ऑब्जरवेशन पोस्ट बना रखा है जिस पर नौसैनिक तैनात रहते हैं, लेकिन चीन भी इस पर अपना हक जताता है. इस पोस्ट पर तैनात नौसैनिकों की रसद और दूसरी जरूरी वस्तुओं के लिए जैसे ही फिलीपींस कोस्टगार्ड की कोई बोट यहां पहुंचती है, चीनी नौसेना उसे रोक देती है.
हाल के महीनों में तो चीनी बोट्स ने फिलीपींस के बोट पर टक्कर मारने की भी कोशिश की है. चीनी युद्धपोत फिलीपींस की बोट्स को रोकने के लिए वाटर-कैनन का भी इस्तेमाल करते हैं.
ऐसे में पूरी दुनिया इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में तेजी से बदलने वाली सामरिक-गतिविधियों पर पैनी नजर गड़ाए हुए है.
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