प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लगातार तीसरी बार भारत की कमान संभालने के बाद, विश्व में भारत के बढ़ते रसूख, पुतिन के साथ गहरी दोस्ती और अमेरिका के साथ घनिष्ठ संबंधों में हुई कमी के चलते चीन के सुर लगातार बदले बदले से नजर आ रहे हैं.
पहले तो चीन ने पीएम मोदी की रूस यात्रा की प्रशंसा की तो अब चीन के विदेश मंत्री ने भारतीय एनएसए और पीएम मोदी के दाहिने हाथ अजीत डोवल से सीमा के मुद्दों को मिलकर सुलझाने की बात कही है.
भारत-चीन सीमा मामले के लिए विशेष प्रतिनिधि के रूप में अजीत डोवल की नियुक्ति के एक बधाई संदेश में चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने कहा है कि “चीन और भारत एक ऐसा रिश्ता साझा करते हैं जो द्विपक्षीय सीमाओं से परे है और वैश्विक महत्व बढ़ाता है.”
बदली बदली सी चीनी सरकार, निकलेगा एलएसी पर समाधान!
चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने पूर्वी लद्दाख में लंबे समय से चल रहे सीमा विवाद के बीच सीमावर्ती क्षेत्रों को “ठीक से संभालने” के लिए अजीत डोवल के साथ हाथ मिलाने की बात कही है.
वांग यी चीनी विदेश मंत्री, सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना के राजनीतिक ब्यूरो के सदस्य होने के साथ-साथ भारत-चीन सीमा वार्ता तंत्र में चीन के विशेष प्रतिनिधि भी हैं. अजीत डोवल को सरकार ने भारत-चीन सीमा मुद्दे को सुलझाने के लिए फिर से विशेष प्रतिनिधि बनाया है. 3488 किलोमीटर लंबी भारत-चीन सीमा के विवाद को व्यापक रूप से सुलझाने के लिए साल 2003 में गठित विशेष प्रतिनिधि तंत्र का नेतृत्व भारत के एनएसए और चीनी विदेश मंत्री करते हैं.
एनएसए डोवल से ‘हाथ मिलाने’ को तैयार चीन सरकार
वांग यी ने एनएसए डोवल को बधाई देते हुए कहा, “चीन और भारत दुनिया में दो सबसे अधिक आबादी वाले और विकासशील देश हैं. दोनों उभरती अर्थव्यवस्था हैं. चीन और भारत एक ऐसा रिश्ता साझा करते हैं जो द्विपक्षीय सीमाओं से परे और बढ़ते वैश्विक महत्व वाला है. हम दोनों देशों के नेताओं के बीच बनी सहमति को पूरी तरह लागू करने और बॉर्डर एरिया पर जमीनी स्थिति से जुड़े मुद्दों को शांति और सौहार्द की संयुक्त रूप से रक्षा करने के लिए अजीत डोवल के साथ हाथ मिलाने को तैयार हैं. बॉर्डर एरिया में शांति स्थापित करना हमारा मकसद है.”
लद्दाख में अपने रूख पर अडिग है भारत
वांग का यह संदेश कजाख्स्तान के अस्ताना में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन के दौरान विदेश मंत्री एस जयशंकर के साथ हुई बैठक के बाद आया है.
भारत में तीसरी बार बीजेपी सरकार के गठन के बाद भारतीय और चीनी अधिकारियों के बीच अस्ताना में पहली उच्च स्तरीय बैठक थी. उस बैठक में एस जयशंकर ने चीन के विदेश मंत्री को साफ तौर पर संकेत दिया था कि “भारत एक कदम भी अपने अधिकार क्षेत्र से पीछे नहीं हटेगा.”
गलवान झड़प के बाद तनाव को कम करने की कोशिश
भारत और चीन के रिश्ते पहले भी बहुत अच्छे नहीं थे. पर साल 2020 में गलवान में हुई झड़प के बाद रिश्ते निचले स्तर पर पहुंच गए. पिछले 4 सालों में एलएसी पर भारत के साथ साथ चीनी सेना टस से मस नहीं हुई है. 20 से ज्यादा बाद वार्ताएं हो चुकी हैं. पर कोई हल नहीं निकला है. पूर्वी लद्दाख में दोनों पक्ष गलवान घाटी, पैंगोंग झील, हॉट स्प्रिंग्स और गोगरा से पीछे हटने पर सहमत हुए हैं. लेकिन भारत, चीनी सेना पर देपसांग और डेमचोक इलाकों से सेना हटाने का दबाव बना रहा है. भारत ने चीन से बातचीत में साफ तौर पर कहा है कि जब तक चीन इन इलाकों से पीछे नहीं हटेगा, भारत भी वहीं डटा रहेगा.
चीन का बदला रुख, भारत से कर रहा सकारात्मक बात
अब सैन्य स्तर के अलावा कूटनीति सकारात्मक बातें शुरु हुई हैं. दरअसल चीन के लिए भारत के साथ थोड़े नरम संबंध इसलिए भी जरूरी हैं, क्योंकि चीन, ताइवान और फिलीपींस के मोर्चे पर घिरा हुआ है. ताइवान और फिलीपींस दोनों को ही अमेरिका का सपोर्ट मिला हुआ है. ऐसे में भारत के साथ एलएसी पर तनाव कम करने में ही चीन अपनी भलाई समझ रहा है और यही वजह है कि सीमा विवाद सुलझाने की बातें कर रहा है. इसी कदम के तहत चीन ने 18 महीने बाद भारत में अपने दूत की भी नियुक्ति की है.
अब चीन के विदेश मंत्री ने भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवल को पत्र लिखकर बॉर्डर एरिया पर साथ काम करने की इच्छा जताई है. हालांकि इससे पहले कभी चीन ऐसी बाते नहीं करता था. पर समय के हिसाब से चीन का रुख बदल गया है.
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