अफगानिस्तान के तालिबानी विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी के भारत दौरे को लेकर सियासत करने वाली कांग्रेस को सीधे विदेश मंत्री एस जयशंकर ने चुप करा दिया है. एस जयशंकर ने कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश पर करारा वार करते हुए कहा है कि कांग्रेस अब भारत में पाकिस्तान की आधिकारिक प्रवक्ता बन गई है.
अमूमन ऐसा कम ही होता है जब विदेश मंत्री सीधे किसी जुबानी जंग का हिस्सा बने हों, लेकिन विदेश मंत्री ने सौ बात की एक बात कहकर कांग्रेस को कटघरे में खड़ा कर दिया है.
पाकिस्तान-तालिबान साथ थे, तब कांग्रेस चुप थी: एस जयशंकर
अफगानिस्तान के विदेश मंत्री भारत से संबंधों को सुधारने के लिए नई दिल्ली पहुंचे हैं. लेकिन आमिर खान मुत्ताकी के दौरे का कांग्रेस ने विरोध किया है. वहीं मुत्ताकी के नई दिल्ली में मौजूदगी पर उस वक्त कंट्रोवर्सी हो गई जब जयशंकर और मुत्ताकी के संयुक्त प्रेसकॉन्फ्रेंस में महिला पत्रकारों को एंट्री नहीं दी गई. कांग्रेस ने तालिबानी मंत्री के दौरे का विरोध किया.
लेकिन कूटनीतिक तौर पर मुत्ताकी का भारत आना, क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. लिहाजा कांग्रेस को खुद विदेश मंत्री ने घेरा है.
एस जयशंकर ने एक्स पर लिखा, “जब पाकिस्तान तालिबान के साथ था, तब कांग्रेस उनके अत्याचारों पर चुप थी. जब पाकिस्तान तालिबान के खिलाफ है, तो कांग्रेस अचानक तालिबान के दमनकारी तरीकों के खिलाफ हो गई है. दरअसल, कांग्रेस अब भारत में पाकिस्तान की आधिकारिक प्रवक्ता बन गई है.”
जयराम रमेश ने कहा क्या था, जिस पर भड़के जयशंकर
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने आमिर खाम मुत्ताकी की यात्रा पर सवाल खड़े किए हैं. जयराम रमेश ने एक्स पर लिखा, “कल्पना कीजिए कि अगर कांग्रेस सरकार ने तालिबान से उसी तरह संपर्क साधा होता जैसा मोदी सरकार ने किया है: तो भाजपा और उसके तंत्र की क्या प्रतिक्रिया होती?”
कांग्रेस नेता शमा मोहम्मद ने भी कहा, “हमें अफगानिस्तान नामक देश के विदेश मंत्री को आमंत्रित नहीं करना चाहिए था, जो महिलाओं के खिलाफ पुरुषों द्वारा चलाया जाता है.”
सामरिक दृष्टि से भारत के लिए क्यों अहम है अफगानिस्तान
भारत-अफगानिस्तान संबंधों में इस्लामाबाद अहम फैक्टर है. पहले पाकिस्तान और तालिबान की गहरी दोस्ती थी और कई बार इस्लामाबाद ने काबुल को भारत के खिलाफ इस्तेमाल भी किया है.
अफगानिस्तान की पूर्ववर्ती सरकारों से भारत के संबंध अच्छे थे. अफगानिस्तान को भारत अपना पारंपरिक मित्र मानता है. साल 2021 में जब अफगानिस्तान में तालिबान ने कब्जा किया तो उस वक्त भारतीय दूतावास को बंद कर दिया.
वक्त बीतने के साथ नई दिल्ली ने तालिबान की सत्ता को परखा. तालिबान ने भी अपनी छवि बदलने की कोशिश की है. तालिबान का ये कहना कि अब वो अपनी धरती का इस्तेमाल किसी भी भी आतंकी गतिविधियों के लिए नहीं करने देंगे, ये तालिबान की बदलती छवि का उदाहरण है.
पहलगाम नरसंहार जब हुआ तो भी तालिबान ने हमले की निंदा की. वहीं ऑपरेशन सिंदूर के दौरान जब पाकिस्तान ने ये प्रोपेगेंडा फैलाया कि भारतीय वायुसेना ने अफगानिस्तान में एयर स्ट्राइक करके नुकसान पहुंचाया है, तो भी अफगानिस्तान की तालिबान सरकार ने पाकिस्तान के आरोपों को झूठ बताया था और कहा था कि अफगानिस्तान को भारत की एयरस्ट्राइक से कोई नुकसान नहीं पहुंचा है.
वहीं अमेरिका एक बार फिर से अफगानिस्तान में सेना की पैठ कराने की कोशिश में हैं. अमेरिका का नजर बगराम एयरबेस पर है, लेकिन भारत बगराम एयरबेस को लेकर अफगानिस्तान के पक्ष में खड़ा है. अमेरिका, पाकिस्तान के कंधे पर रखकर बंदूक चला रहा है. माना जा रहा है कि हाल ही में जो पाकिस्तानी एयरस्ट्राइक की गई है, उसके पीछे भी अमेरिका था.
नई तालिबानी सत्ता पाकिस्तान पर निर्भर नहीं है और अब भारत के साथ आर्थिक, सुरक्षा और इंफ्रास्ट्रक्चर सहयोग को प्राथमिकता दे रही है. ऐसे में क्षेत्रीय संतुलन को मजबूत करने के लिए भारत-अफगानिस्तान के रिश्तों में मजबूती का महत्व बढ़ जाता है.