एनडीए और आईएमए जैसे प्रतिष्ठित मिलिट्री इंस्टीट्यूट में ट्रेनिंग के दौरान दिव्यांग हुए कैडेट्स को अब रक्षा मंत्रालय की पुनर्वास योजनाओं का लाभ मिल सकेगा. अभी तक ट्रेनिंग के दौरान मिली गंभीर चोट के कारण दिव्यांग होने के बावजूद इन कैडेट्स को सरकार की तरफ से कोई बड़ी सहायता नहीं दी जाती थी. ऐसे में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने चुनावों के ऐलान से ठीक पहले दिव्यांग कैडेट्स की एक बड़ी मांग को स्वीकार कर लिया है.
रक्षा मंत्रालय के मुताबिक, “हर साल सैन्य अकादमियों में युवा कैडेट सशस्त्र बलों में अधिकारी बनने के उद्देश्य से अकादमिक और सैन्य प्रशिक्षण से गुजरते हैं. मौजूदा नियमों के अनुसार, कैडेट को कमीशन मिलने के बाद ही अधिकारी माना जाता है. हर साल 10-20 ऐसी घटनाएं सामने आती हैं जहां कठोर सैन्य प्रशिक्षण के कारण कैडेट को चिकित्सा आधार पर अमान्य करार दिया जाता है.”
इस तरह की घटनाओं में कई बार देखा गया है कि कैडेट्स 70 प्रतिशत से ज्यादा दिव्यांग हो जाते हैं और हमेशा हमेशा के लिए अपने परिवार पर आश्रित हो जाते हैं. मिलिट्री ट्रेनिंग में मिली चोट के कारण कोमा तक में चले जाते हैं. लेकिन उन्हें सेना और सरकार की तरफ कोई खास मदद नहीं दी जाती थी. लंबे समय से ये दिव्यांग कैडेट्स सेना और सरकार के खिलाफ ‘डिसेबिलिटी पेंशन’ इत्यादि के लिए जंग लड़ रहे थे. ऐसे में अब सरकार ने डिसेबिलिटी पेंशन की मांग को तो नहीं माना है लेकिन पूर्व-सैनिकों को मिलने वाली पुनर्वास योजनाओं का लाभ देने की घोषणा कर दी है.
भारत सरकार की पुनर्वास योजनाओं में पूर्व सैनिकों को सिक्योरिटी एजेंसी का लाइसेंस, सीएनजी स्टेशन का मैनेजमेंट, पेट्रोल पंप, मदर डेयरी इत्यादि जैसी लाभकारी योजनाएं दी जाती हैं. साथ ही रक्षा मंत्रालय के अधीन री-सेटलमेंट डिपार्टमेंट पूर्व सैनिकों को सरकारी और प्राईवेट नौकरी के लिए ट्रेनिंग देने से लेकर सभी तरह की मदद करती है.
रक्षा मंत्रालय के मुताबिक, “पूर्व सैनिक कल्याण विभाग के प्रस्ताव को मंजूरी से चिकित्सा आधार पर निष्कासित हुए 500 कैडेटों को पुनर्वास महानिदेशालय द्वारा संचालित योजनाओं का लाभ मिल सकेगा. साथ ही मंत्रालय ने साफ कहा है कि इसी तरह की स्थिति में भविष्य के कैडेटों को भी समान लाभ मिलेंगे.”
शनिवार की घोषणा के बाद टीएफए से बातचीत में दिव्यांग कैडेट और इस जंग को लंबे समय से लड़ रहे अंकुर चतुर्वेदी ने कहा कि वे “सरकार के निर्णय का स्वागत तो करते हैं लेकिन सरकार से पेंशन न मिलने से निराश हैं.” उन्होंने इसे ‘बड़ी जंग की एक छोटी जीत’ करार दिया.
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