Breaking News Geopolitics NATO Russia-Ukraine War

नाटो से बाहर अमेरिका, टेंशन में यूरोप

यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की के साथ ओवल ऑफिस में बहस के बाद अमेरिका अब नाटो से बाहर होने की तैयारी कर रहा है. ऐसा इसलिए क्योंकि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बेहद खास सिपहसालार (अधिकारी) एलन मस्क ने सार्वजनिक तौर से नाटो से बाहर होने की समर्थन किया है. दुनिया के सबसे अमीर शख्स ने यूएन (संयुक्त राष्ट्र) से भी अमेरिका को बाहर होने का आह्वान किया है.

एलन मस्क ने नाटो से बाहर आने का समर्थन ऐसे समय में किया है जब लंदन में यूक्रेन और जेलेंस्की के समर्थन में यूरोपीय देश (अधिकतर नाटो के सदस्य) इकठ्ठा हो रहे हैं. अमेरिका से बेइज्जत होकर जेलेंस्की सीधे लंदन पहुंचे हैं और समिट में हिस्सा ले रहे हैं. खुद इंग्लैंड के प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर ने भी रूस के खिलाफ यूक्रेन का समर्थन किया है.

नाटो का 70 प्रतिशत खर्च उठाता है अमेरिका

एलन से पहले ट्रंप ने भी नाटो को खत्म करने का इशारा दिया था. साथ ही नाटो देशों को अपनी सुरक्षा खुद करने और रक्षा बजट बढ़ाने की बात कही थी. अभी नाटो के कुल बजट का करीब 60-70 प्रतिशत खर्च अकेला अमेरिका उठाता है. अमेरिका के ही सबसे ज्यादा सैनिक और हथियार नाटो का हिस्सा हैं.

नाटो का गठन दूसरे विश्वयुद्ध के बाद वर्ष 1949 में कोल्ड वार यानी रूस (तत्कालीन सोवियत संघ) के खिलाफ किया गया था. नाटो एक मिलिट्री गठजोड़ है जिसमें कुल 32 सदस्य-देश हैं. इनमें से 30 यूरोपीय देश हैं. बाकी दो देश हैं अमेरिका और कनाडा. अगर अमेरिका, नाटो से बाहर हो जाता है तो यूरोप के लिए काफी मुश्किल सामने आ सकती है. (https://x.com/defense_civil25/status/1895994021719441602)

यूरोप को इस बात का डर सता रहा है कि यूक्रेन के बाद रूस का अगला निशाना यूरोपीय देश हो सकते हैं. क्योंकि रूस का कई पूर्व सोवियत और यूरोपीय देशों के साथ सीमा या फिर अन्य विवाद चल रहे हैं.

रूस से अदावत खत्म, फिर क्यों है नाटो की जरूरत

वहीं दूसरी तरफ, जब ट्रंप ने रूस के साथ हाथ मिला लिया है और अदावत लगभग खत्म हो गई है तो अमेरिका के लिए नाटो में बने रहना और यूरोप की सुरक्षा एक महंगा सौदा साबित हो रहा है. यही वजह है कि ट्रंप प्रशासन, नाटो से बाहर होने की तैयारी में जुट गया है.

अमेरिका, नाटो से इसलिए भी बाहर आने में जुटा है क्योंकि यूक्रेन पर रूस के आक्रमण का एक बड़ा कारण नाटो ही था. रूस के हमले से पहले, यूक्रेन नाटो में शामिल होने की तैयारी कर रहा था. रूस किसी कीमत पर नहीं चाहता था कि नाटो के सैनिक यूक्रेन से सटी सीमा पर तैनात हो.

युद्धविराम के लिए पुतिन ने भी यूक्रेन के नाटो में शामिल न होने की शर्त रखी है. जबकि जेलेंस्की, नाटो में शामिल होने या फिर सुरक्षा की गारंटी की रट लगाए है.

अमेरिकी मदद के चलते जेलेंस्की युद्धविराम के लिए तैयार नहीं

ओवल ऑफिस में गहमागहमी के दौरान भी ट्रंप ने जेलेंस्की से कहा था कि यूक्रेन इस लिए युद्धविराम के लिए तैयार नहीं है क्योंकि अमेरिका के हथियार और वित्तीय मदद मिल रही है.

ट्रंप से संबंध सुधारे जेलेंस्की: नाटो चीफ

नाटो के प्रमुख मार्क रूट ने हालांकि, ओवल ऑफिस में हुई भिड़ंत के बाद जेलेंस्की को फोन कर ट्रंप से संबंध सुधारने पर जोर दिया है. रूट ने जेलेंस्की से कहा है कि “ट्रंप के साथ अपने संबंधों को बहाल करने का रास्ता खोजना होगा.”