रक्षा क्षेत्र में भारत सिर्फ अपने सैन्य साजो सामान में आत्मनिर्भर नहीं हो रहा, बल्कि विदेशों में भी भारतीय हथियारों का सप्लाई की जा रही है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मेक फॉर द वर्ल्ड का सपना साकार हो रहा है, क्योंकि अब देश की कंपनियों ने मित्र-देशों को हथियार सप्लाई करना शुरू कर दिया है.
बेंगलुरु की एक ऐसी ही कंपनी है ट्रिपल-एस (एसएसएस) डिफेंस, जिसने आर्मेनिया को स्नाइपर राइफल एक्सपोर्ट करना शुरू कर दिया है. खास बात है कि अभी तक देश की सेना और पुलिस तक रूस और दूसरे देशों की स्नाइपर राइफल इस्तेमाल करती हैं.
एसएसएस विदेश में कर रही स्नाइपर राइफल एक्सपोर्ट
राजधानी दिल्ली में आयोजित दो दिवसीय होमलैंड सिक्योरिटी एंड पुलिस एक्सपो (31 जुलाई-1 अगस्त) में देश-विदेश की कंपनियां अपने हथियारों की प्रदर्शनी लगी है. प्रदर्शनी में ट्रिपल-एस कंपनी ने अपनी असॉल्ट राइफल से लेकर सब-मशीन गन और स्नाइपर राइफल का प्रदर्शन किया है.
कंपनी के स्टॉल पर पुलिस और पैरा-मिलिट्री के अधिकारियों से लेकर आर्म्स एक्सपर्ट की भारी भीड़ जुटी है. कंपनी का दावा है कि ये सभी स्वदेशी हथियार हैं जिनका रिसर्च एंड डेवलपमेंट से लेकर उत्पादन तक देश में ही किया गया है.
ट्रिपल-एस डिफेंस, देश की पहली ऐसी प्राइवेट कंपनी है जिसने अपनी स्नाइपर राइफल को एक्सपोर्ट किया है.
कंपनी की स्नाइपर राइफल 338 सैबर है अचूक, जल्द ही एनएसजी खरीद सकती है नई
कंपनी के सीईओ विवेक कृष्णन के मुताबिक, उनकी इस स्नाइपर राइफल को 338 सैबर के नाम से जाना जाता है. इस गन में .338 लैपुआ मैग्नम कैलिबर (बुलेट) का इस्तेमाल होता है. इसी स्नाइपर राइफल की रेंज 1500 मीटर से ज्यादा है.
कंपनी के मुताबिक, हाल ही में एक इंटरनेशनल प्रतियोगिता में देश की एलीट-फोर्स नेशनल सिक्योरिटी गार्ड्स (एनएसजी) ने इस सैबर राइफल का इस्तेमाल किया था. सैबर राइफल का रिजल्ट, अमेरिका और दूसरे देशों कि स्नाइपर राइफल से बेहतर साबित हुआ.
यही वजह है कि एनएसजी भी अब इस स्नाइपर राइफल को खरीदने की तैयारी कर रही है. कंपनी की असॉल़्ट राइफल भी उत्तर प्रदेश पुलिस की एसटीएफ और हरियाणा पुलिस इस्तेमाल कर रही है.
पीएम मोदी ने दिया था मेक फॉर द वर्ल्ड का नारा
रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने के साथ ही पीएम मोदी ने मित्र-देशों को हथियार सप्लाई करने के लिए मेक फॉर द वर्ल्ड का नारा दिया है. यही वजह है कि ट्रिपल-एस जैसी कंपनियां, राइफल और बुलेट तक एक्सपोर्ट कर रही हैं.
बीते वर्ष (2024-25) में देश का रक्षा निर्यात 23 हजार करोड़ (लगभग 2.76 बिलियन यूएस डॉलर) के रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुंच गया था. खास बात ये कि रक्षा निर्यात में देश की प्राइवेट इंडस्ट्रीज़ ने पब्लिक सेक्टर से बाजी मार ली है. वर्ष 2024-25 के रक्षा निर्यात में निजी क्षेत्र और डीपीएसयू ने क्रमशः 15,233 करोड़ रुपये और 8389 करोड़ रुपये का योगदान दिया है.
10 वर्षों में डिफेंस एक्सपोर्ट में 30 गुना उछाल
रक्षा निर्यात को बढ़ावा देते हुए, हाल ही में समाप्त हुए वित्त वर्ष में गोला-बारूद, हथियार, उप-प्रणालियां/प्रणालियां तथा पुर्जे एवं कंपोनेंट्स जैसी वस्तुओं की व्यापक रेंज लगभग 80 देशों को निर्यात की गई है. इन देशों में अमेरिका और फ्रांस जैसे बड़े रक्षा निर्यातक देश शामिल हैं.
रक्षा मंत्रालय के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, पिछले एक दशक में डिफेंस एक्सपोर्ट में 30 गुना की बढ़ोतरी हुई है. वर्ष 2013-14 में जहां आर्म्स एक्सपोर्ट महज 686 करोड़ था, वहीं इस साल (2024-25) में ये 23 हजार करोड़ के पार पहुंच गया (23,622 करोड़).
रक्षा मंत्रालय के मुताबिक, पिछले एक दशक (2014-24) के दौरान कुल डिफेंस एक्सपोर्ट 88,319 करोड़ का था, जो 2004-14 के मुकाबले 21 गुना था (4312 करोड़). इस वक्त, भारत बुलेटप्रूफ जैकेट से लेकर, डोरनियर एयरक्राफ्ट, चेतक हेलीकॉप्टर, फास्ट इंटरसेप्टर बोट्स और लाइटवेट टारपीडो शामिल हैं. हाल ही में ये खबर आई थी कि बिहार में बने (मेड इन बिहार) बूट्स को रशियन आर्मी की गियर का हिस्सा बनाया गया है. भारत की पिनाका रॉकेट सिस्टम को आर्मेनिया को एक्सपोर्ट किया जा रहा है. रक्षा मंत्रालय ने वर्ष 2029 तक 50 हजार करोड़ के रक्षा निर्यात का लक्ष्य रखा है.