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SCO समिट: अटारी-वाघा बॉर्डर का फासला होगा कम ?

By Abhishek Jha from Islamabad

वर्ष 2018 में रूस के चेल्याबिंस्क में एससीओ समूह के देशों के युद्धाभ्यास के वक्त, जब भारत और पाकिस्तान की सेनाओं ने हिस्सा लिया तो पूरी दुनिया हैरान थी. उससे भी ज्यादा हैरानी तब हुई जब युद्धाभ्यास से इतर शाम की कैंपिंग के दौरान दोनों देशों के सैनिक मशहूर पंजाबी सिंगर दलजीत दोसांज के गीतों पर एक साथ थिरकने लगे. जैसे ही भारत और पाकिस्तान के सैनिकों के भंगड़ा करते वीडियो वायरल हुए, रूसी मीडिया ने हेडलाइन दी, ‘रूस की गर्मजोशी से भारत और पाकिस्तान के बीच जमी बर्फ पिघल गई’. 

वाकई, रूस के बैनर तले हुए  2018 की एससीओ मिलिट्री एक्सरसाइज बेहद मायनों में ऐतिहासिक थी. 1947 में बंटवारे के बाद से पहली बार भारत और पाकिस्तान के सैनिक एक साथ साझा युद्धाभ्यास में शामिल हुए थे. एक साथ मंच पर गले में हाथ डालकर नाचते हुए दिखाई पड़े थे. इससे पहले तक दोनों देशों के सैनिक युद्ध के मैदान या फिर नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर गोलाबारी करते दिखाई पड़ते थे.

2019 में पुलवामा अटैक और फिर बालाकोट एयर-स्ट्राइक के बाद से हालांकि, भारत और पाकिस्तान के संबंधों में फिर से बर्फ जमने लगी. ऐसे में जब मंगलवार को भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर अपने ‘मेघदूत’ विमान से पाकिस्तान की धरती पर स्वैग के साथ उतरे तो पूरी दुनिया फिर से इस्लामाबाद की तरफ टकटकी लगाई बैठ गई है. क्या अटारी-वाघा बॉर्डर की दूरी कम होगी या दोनों देशों में तलवारें अभी भी खींची रहेंगी.  (https://x.com/DrSJaishankar/status/1846150619486163253)

पाकिस्तान की मेजबानी में आयोजित बहुप्रतीक्षित शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन शुरू होने से पहले करीब एक दर्जन भारतीय पत्रकार अटारी-वाघा अंतरराष्ट्रीय सीमा को लांघकर पैदल ही अमृतसर से पाकिस्तान की सीमा में दाखिल हुए थे. इंटरनेशनल बाउंड्री पर अटारी, भारत का आखिरी गांव हैं तो वाघा, पाकिस्तान का. हालांकि, दोनों गांवों के बीच दूरी महज कुछ मीटर है लेकिन कटीली तार लगी होने के चलते ये फासला कोसो दूर लगता है.

भारतीय पत्रकारों की पाकिस्तान यात्रा कोई साधारण नहीं थी. क्योंकि लगभग एक दशक बाद, मुट्ठी भर भारतीय पत्रकारों को मीडिया कवरेज के लिए पाकिस्तान जाने की अनुमति दी गई है. इससे पहले 2015 में तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज हार्ट्स ऑफ एशिया सम्मेलन में हिस्सा लेने इस्लामाबाद आई थीं. इसके बाद, राजनाथ सिंह ने दिसंबर 2016 में पाकिस्तान का दौरा किया था, जो मुख्य रूप से हार्ट ऑफ एशिया-इस्तांबुल प्रोसेस सम्मेलन के लिए था. एससीओ शिखर सम्मेलन में भारत सरकार का प्रतिनिधित्व करने के लिए विदेश मंत्री जयशंकर मंगलवार को स्थानीय समयानुसार शाम करीब चार बजे इस्लामाबाद के नूर खान एयरबेस पर उतरे थे. यह यात्रा एक से अधिक कारणों से महत्वपूर्ण है.

पाकिस्तान में राजनीतिक अशांति और आतंकवाद पर भारत के दृढ़ रुख को देखते हुए, शिखर सम्मेलन के कामकाज का भारत और पाकिस्तान में उत्सुकता से पालन किया जाएगा. भारत और पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय संबंधों की जटिलताओं के कारण, एससीओ, एक महत्वपूर्ण क्षेत्रीय ब्लॉक है जिसमें कई प्रमुख खिलाड़ी शामिल हैं. 

जयशंकर की यात्रा की अगुवाई में, भारत सरकार ने सीमा पार आतंकवाद पर अपने अडिग रुख को दोहराया है. जयशंकर पाकिस्तान के “आतंकवाद का केंद्र” होने के बारे में मुखर रहे हैं, और उनके पिछले बयान, जैसे कि “रात में आतंकवाद और दिन में व्यापार” को स्वीकार करने से इनकार करना, एक ‘ज़ीरो-टॉलरेंस’ नीति को दर्शाता है जिसने हाल के वर्षों में भारत की ‘स्ट्रेटेजिक-ऑटोनोमी’ को आकार दिया है.

दशकों में यह पहली बार है कि पाकिस्तान एक प्रमुख बहुपक्षीय बैठक आयोजित कर रहा है जहां एससीओ देशों के प्रमुख, प्रधान मंत्री और वरिष्ठ मंत्री क्षेत्रीय मुद्दे पर चर्चा करने के लिए एकत्र हो रहे हैं. एक ऐसे देश के लिए जो वर्षों से आंतरिक अशांति और वित्तीय संकट के दलदल में है, एससीओ अपनी ताकत और लचीलापन दिखाने का एक उपयुक्त अवसर प्रदान करता है. शहबाज शरीफ के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार इसे एक बड़े सफल आयोजन की तरह दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती है, जो वैश्विक स्तर पर नहीं तो कम से कम इस क्षेत्र और दक्षिण एशिया में अपना कद बढ़ा सकती है.

बुधवार को मुख्य सम्मलेन से पहले जयशंकर ने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री द्वारा विदेशी मेहमानों के लिए आयोजित डिनर में हिस्सा लिया और शहबाज शरीफ से हाथ भी मिलाया. (https://x.com/abhishekjha157/status/1846233909723378066)

पाकिस्तानी राजनीतिक परिदृश्य समान रूप से उग्र है. क्योंकि पूर्व प्रधानमंत्री और विपक्ष के नेता इमरान खान के जेल में बंद होने के कारण उनकी पार्टी (पीटीआई) के कार्यकर्ताओं द्वारा बुलाए गए विरोध-प्रदर्शन को पाकिस्तान ने भारत का एजेंडा करार दे दिया है. दावा किया गया है कि नई दिल्ली का उद्देश्य एससीओ को नुकसान पहुंचाना है. अपनी अवाम के बीच समर्थन बढ़ाने के लिए इस तरह की बयानबाजी, भारत के दौरे पर आए विदेश मंत्री और उनके पाकिस्तानी समकक्ष के बीच संभावित द्विपक्षीय संबंधों को कमजोर करती है.

हाल के वर्षों में एससीओ के क्षेत्रीय ब्लॉक का विस्तार हुआ है और अब भारत, ईरान, कजाकिस्तान, चीन, किर्गिस्तान, रूस, पाकिस्तान, ताजिकिस्तान, उज्बेकिस्तान और बेलारूस पूर्ण सदस्य के रूप में हैं. तीन देशों – अफगानिस्तान, बेलारूस और मंगोलिया – को एससीओ के पर्यवेक्षक का दर्जा प्राप्त है. चौदह देशों – अज़रबैजान, आर्मेनिया, बहरीन, कंबोडिया, मिस्र, कुवैत, मालदीव, म्यांमार, नेपाल, कतर, सऊदी अरब, श्रीलंका, तुर्की और संयुक्त अरब अमीरात – को संवाद भागीदार का दर्जा प्राप्त है. (https://x.com/neeraj_rajput/status/1034534606815547392)

एससीओ ब्लॉक के सदस्य, वैश्विक आबादी का लगभग 40 प्रतिशत और दुनिया के सकल घरेलू उत्पाद का 32 प्रतिशत होस्ट करते हैं. हालांकि, इसके दो सबसे प्रभावशाली सदस्यों (भारत और चीन) के बीच तनातनी और भारत-पाकिस्तान की दुश्मनी इसके प्रभाव को कमजोर करती आई है. जयशंकर की यात्रा एक महत्वपूर्ण मोड़ पर हो रही है. हालांकि उनके एससीओ के अन्य सदस्यों के साथ क्षेत्रीय मुद्दों पर बातचीत करने की उम्मीद है. लेकिन पाकिस्तान के साथ द्विपक्षीय चर्चा के एजेंडे की कमी स्पष्ट है. दोनों पक्ष किसी भी नियोजित बातचीत से स्पष्ट रूप से इनकार करते रहे हैं.

जयशंकर ने खुद कहा था, “मैं एससीओ के लिए जाऊंगा.” पाकिस्तान के साथ बातचीत के लिए आशावाद से रहित यह बयान इस धारणा को पुष्ट करता है कि यह यात्रा सहयोग को बढ़ावा देने के बजाय मतभेदों को प्रबंधित करने के बारे में अधिक होगी. सार्क का ठहराव उन व्यापक चुनौतियों का प्रतीक है जिनका सामना क्षेत्रीय समूह तब करते हैं जब उनके प्रमुख सदस्य आमने-सामने होते हैं.

सवाल उठता है, क्या एससीओ इस चक्र को तोड़ सकता है, या यह भी उप-महाद्वीप की जियोपॉलिटिक्स को परिभाषित करने वाली ऐतिहासिक दुश्मनी का शिकार हो जाएगा? जयशंकर की हाई-प्रोफाइल यात्रा के बावजूद, संदेह की एक अंतर्निहित धारा है, क्योंकि भारत-पाकिस्तान संबंधों में प्रगति की उम्मीदें कम हैं. फिर भी, कूटनीति एक लंबा खेल है, जहां परिणाम अक्सर बाधाओं को टाल देते हैं. अटारी-वाघा सीमा के दोनों ओर तैनात पत्रकार एक संभावित कहानी की आशंका में डटे हुए हैं जो अंततः उनके सतर्क इंतजार को पुरस्कृत कर सकता है.

[अभिषेक झा, दिल्ली स्थित भारतीय पत्रकार हैं और एससीओ समिट की कवरेज के लिए खास तौर से इस्लामाबाद गए हैं. विदेश मामलों और कूटनीति पर उनकी मजबूत पकड़ है. ये लेख, उन्होंने खास तौर से टीएफए के लिए लिखा है.]

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