कभी लोकतंत्र को टैंक से कुचलने के लिए बदनाम हुआ बीजिंग का थियानमेन स्क्वायर, बुधवार को चीन की भारी-भरकम मिसाइल, रॉकेट, ड्रोन और टैंक के परेड के लिए पूरी दुनिया में एक बार फिर चर्चा का केंद्र बन गया. गुआम-किलर से लेकर डीएफ-5 और डीएफ-61 के जरिए चीन ने अपने इंटरकॉन्टिनेंटल न्यूक्लियर मिसाइल का प्रदर्शन किया. लेकिन सामरिक जानकारों ने मिलिट्री परेड में इस्तेमाल होने वाले हथियारों पर सवाल खड़े कर दिए.
द्वितीय विश्वयुद्ध की 80वीं वर्षगांठ के मौके पर चीन की राजधानी बीजिंग में विक्ट्री डे परेड का आयोजन कर राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने दुनियाभर के राष्ट्राध्यक्षों को बुलाकर अपनी सामरिक ताकत का नमूना पेश किया तो हथियारों के जरिए अपनी सैन्य कुवत दिखाने की कोशिश की. परेड में 100 से ज्यादा हथियार, 45 सैन्य टुकड़ियां और पांच-पांच स्टील्थ फाइटर जेट सहित 100 से ज्यादा विमानों को प्रदर्शित किया.
चीन का गुआम किलर्स वाला शक्ति प्रदर्शन
चीन की पीपुल्स लिबरेशन फोर्स (पीएलए) की रॉकेट फोर्स की मिसाइलों ने अपनी तरफ ध्यान खींचा. इनमें से सबसे खास थी गुआम किलर के नाम से चर्चित डीएफ-26डी मिसाइल. प्रशांत महासागर में अमेरिका के सामरिक तौर से महत्वपूर्ण मिलिट्री बेस गुआम तक मार करने वाली ये एक इंटरमीडिएट रेंज बैलिस्टिक मिसाइल है. इसकी रेंज करीब 4000 किलोमीटर है और गुआम बेस के साथ ही अमेरिका के एयरक्राफ्ट कैरियर पर मार करने के लिए इसे खासतौर से चीन ने तैयार किया है.
गुआम किलर मिसाइल, 1200-1800 किलो के पारंपरिक और परमाणु दोनों तरह के पेलोड ले जा सकती है.
चीन ने पहली बार दुनिया को दिखाई डीएफ-61 मिसाइल
विक्ट्री डे परेड में चीन ने पहली बार डीएफ-61 मिसाइल को प्रदर्शित किया. इस मिसाइल के बारे में कम ही जानकारी पीएलए ने साझा की है. लेकिन माना जाता है कि इसकी रेंज करीब 13 हजार किलोमीटर है और पृथ्वी के किसी भी कोने तक मार करने में सक्षम है. डीएफ-61 के बारे में कहा जाता है कि 13 वॉरहेड एक साथ ले जाने में सक्षम है.
इसके अलावा रॉकेट फोर्स ने डीएफ-5 स्ट्रेटेजिक इंटरकॉन्टिनेंटल न्यूक्लियर मिसाइल को पेश किया, जिसके बारे में कहा जाता है कि चार (04) मेगाटन का वॉरहेड ले जा सकती है. ऐसे में चीन ने इस मिसाइल को हिरोशिमा और नागासाकी में गिराए गए परमाणु बम से 200 किलो ज्यादा बारूद ले जाने में सक्षम, के तौर पर पेश किया है.
गौरतलब है कि चीन ने विक्ट्री डे परेड को खास तौर से द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान पर मिली विजय के तौर पर ढिंढोरा पीटा है. जबकि हकीकत ये है कि द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान ने सरेंडर, अमेरिका द्वारा नागासाकी और हिरोशिमा में गिराए गए एटमी बम के बाद किया था. जापान की हार में चीन की कम ही भूमिका थी. बल्कि अमेरिकी सैनिकों ने ही चीन की तरफ से जापान का मुकाबला किया था.
चीन ने 6 नई मिसाइलों को किया प्रदर्शित
चीन ने एयर डिफेंस के लिए इस्तेमाल होने वाली कम से कम छह (06) नई मिसाइलों को प्रदर्शित किया. जमीन से हवा में मार करने वाली एचक्यू-19, एचक्यू-12 और एचक्यू-29 इनमें शामिल थी. एचक्यू-19 को चीन ने अमेरिका की थाड (थर्मल हाई ऑल्टिट्यूड एयर डिफेंस) की तर्ज पर तैयार किया है.
इनके मिसाइलों के अलावा चीन ने एंटी-सबमरीन मिसाइलों के जखीरे को भी प्रदर्शित किया.
चीन ने अपने 99बी मैन बैटल टैंक और पीसीएच-191 लॉन्ग रेंज रॉकेट लॉन्चर को भी प्रदर्शित किया, जो 500 किलोमीटर तक बैलिस्टिक मिसाइल की मार कर सकता है.
थियानमेन स्क्वायर पर गरजे चीन ने 5-5 स्टील्थ फाइटर जेट
चीन ने अपने ड्रोन और यूएवी को भी परेड का हिस्सा बनाया. लेकिन पानी के नीचे ऑपरेट करने वाले एजेएक्स-002 ड्रोन ने अपना ध्यान सभी की तरफ खींचा. टॉरपीडो की तरह दिखने वाला ये अंडरवाटर ड्रोन करीब 20 मीटर लंबा है और 5 मीटर चौड़ा है.
थियानमेन स्क्वायर की एयर स्पेस पर चीन ने अपने पांच-पांच स्टील्थ फाइटर जेट को एक साथ फ्लाई किया. इनमें पुराना जे-20, जे-20ए, जे-20एस और जे-35 सहित पीएलए-नेवी का जे-35 (करियर बेस्ट एयरक्राफ्ट) शामिल था.
यूएस आर्मी के रिटायर्ड ऑफिसर ने उठाए चीनी हथियारों पर सवाल
यूएस आर्मी के रिटायर ऑफिसर और ताइवान के खिलाफ चीन की सैन्य तैयारियों पर पुस्तक लिखने वाले सामरिक जानकार, मेजर जनरल मिक रेयान ने चीन की मिलिट्री परेड में शामिल होने वाले हथियारों पर हालांकि, सवाल खड़े कर दिए.
रेयान के मुताबिक, “किसी भी मिलिट्री परेड में शामिल होने वाले हथियार कितने दमदार है, उसका पता लगा पाना बेहद मुश्किल है. परेड किसी भी तरह से युद्ध-कौशल की क्षमता तय करने का इंडिकेटर नहीं है. ऐसे में मिलिट्री क्षमताओं में विक्ट्री डे परेड में हिस्सा लेने वाली हथियार और मिसाइलों की क्षमताएं जीरो हैं.”
रेयान ने कहा कि “चीन के हथियारों की क्षमता, ताइवान के करीब होने वाली ज्वाइंट स्वॉर्ड या स्ट्रेट-थंडर जैसी मिलिट्री एक्सरसाइज में परखी जा सकती है. दरअसल, चीन की सेना ने वियतनाम वॉर (70 के दशक में) के बाद से किसी भी जंग में हिस्सा नहीं लिया है. न ही चीन के हथियारों को किसी दूसरे देश ने रणभूमि में परखा है.”
ऑपरेशन सिंदूर के दौरान, पाकिस्तान द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली चीन की एयर डिफेंस मिसाइल एचक्यू-9 और एलक्यू-80 पूरी तरह विफल हो गई थी और भारत के हमलों को रोकने में नाकाम साबित हुई थी. ऐसे में पाकिस्तान अब चीन की एचक्यू-19 मिसाइल खरीदने की तैयारी कर रहा है.