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Battle of Kohima का हीरो छोड़ गया संसार

द्वितीय विश्वयुद्ध में कोहिमा की लड़ाई में हिस्सा लेने वाले भारतीय सेना के वयोवृद्ध सैनिक थनसेया को भारतीय सेना ने सोमवार को एक सैन्य समारोह में भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित की. रविवार को हल्की बीमारी के बाद मिजोरम में सूबेदार थनसेया ने 102 साल की उम्र में अपने पैतृक घर में आखिरी सांस ली थी. गौरतलब है कि ब्रिटिश इतिहास में ‘बैटल ऑफ कोहिमा’ की गिनती ‘सबसे महान’ लड़ाई के तौर पर की जाती है. 

रक्षा मंत्रालय के एक प्रवक्ता के मुताबिक, “हमारे राष्ट्र में सूबेदार थनसेया (रिटायर) के योगदान और द्वितीय विश्व युद्ध में उनकी भूमिका को बहादुरी, नेतृत्व और कर्तव्य के प्रति अटूट प्रतिबद्धता के प्रतीक के रूप में याद किया जाएगा. उनकी यादें आने वाली पीढ़ियों के लिए एक मार्गदर्शक प्रकाश बनी रहेंगी, जो सेवा और बलिदान की भावना का प्रतीक है जो मानवता की सर्वोत्तम परिभाषा देती है.” उन्होंने बताया कि सेना से रिटायरमेंट के बाद भी वे पूर्व सैनिकों के कल्याण और मिजोरम में कम्युनिटी सर्विस से जुड़े रहे. 

भारतीय सेना की 1 असम रेजीमेंट से ताल्लुक रखने वाले सबूदेरा थनसेया ने द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान (1944 में) नागालैंड की राजधानी कोहिमा में जापान की इम्पीरियल सेना के खिलाफ जंग लड़ी थी. वर्ष 2013 में इंग्लैंड के नेशनल आर्मी म्यूजियम ने मानव-इतिहास में ब्रिटेन की लड़ाईयों को लेकर एक पोल कराया था. इस पोल में बैटल ऑफ कोहिमा को ब्रिटेन की ग्रेटेस्ट यानी सबसे महान लड़ाई का दर्जा मिला था. इस युद्ध को ‘स्टालिनग्राड ऑफ ईस्ट’ का नाम दिया जाता है. 

माना जाता है कि अगर ब्रिटिश आर्मी ये युद्ध हार जाती तो जापान की सेनाएं भारत पर अपना कब्जा कर सकती थी. क्योंकि दक्षिण-पूर्व देशों से विजय पताका फहराते हुए जापानी की सेनाएं म्यांमार के जरिए भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों में दाखिल हो चुकी थी. मणिपुर की राजधानी इंफाल को अपने कब्जे में करके जापान की सेना नागालैंड की तरफ बढ़ रही थी. लेकिन कोहिमा के करीब तीन महीने (अप्रैल-जून 1944) तक जापान और ब्रिटिश आर्मी में भयंकर लड़ाई हुई थी. सूबेदार थनसेया की 1 असम रेजीमेंट ने जापान की सेना को कोहिमा में दाखिल होने से रोकने में अहम भूमिका निभाई थी. उस दौरान असम रेजीमेंट ब्रिटिश इंडियन आर्मी का हिस्सा थी. 

जापान के यू-गो आक्रमण को विफल कर दिया गया और जापानी सेना मेनलैंड इंडिया में दाखिल नहीं हो पाई थी. इस लड़ाई में जापान के करीब 7000 सैनिकों की मौत हुई थी. इसके अलावा बड़ी संख्या में सैनिकों की जान भुखमरी और बीमारी के कारण हुई थी. म्यांमार में ही द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान असम रेजीमेंट से जुड़ी बदलू राम की कहानी चर्चा में आई थी. जिस पर बना गाना आज भारतीय सेना की असम रेजीमेंट का थीम सॉन्ग बन गया है. 

भारतीय सेना की असम रेजीमेंट का आदर्श-वाक्य है तगड़ा रहो. इस रेजीमेंट में असम और मिजोरम सहित सभी उत्तर-पूर्व राज्यों के सैनिक शामिल हो सकते हैं. यही वजह है कि सूबेदार थनसेया (रिटायर) को सोमवार को श्रद्धांजलि अर्पित करने वालों में भारतीय सेना के प्रतिनिधियों सहित बड़ी संख्या में उत्तर पूर्व राज्यों के पूर्व-फौजी और मिजोरम के स्थानीय लोग शामिल हुए (https://x.com/FinalAssault23/status/1774744843065147402?s=20).

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