अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भले ही रूस से हथियार खरीदने को हथकंडा बनाते हुए भारत पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाने की घोषणा की हो, लेकिन सच्चाई अमेरिका के दावे की पोल खोल देगी.
पिछले दो दशक में भारत ने यूएस से 25 बिलियन डॉलर यानी 20 लाख करोड़ के हथियार और दूसरे सैन्य साजो सामान खरीदे हैं. उल्टा, पिछले कुछ सालों में हथियार और गोला-बारूद के लिए भारत ने रूस पर निर्भरता बेहद कम कर दी है.
दरअसल ट्रंप कई वजहों से झेंपे हुए हैं. एक ओर तो वो रूस-यूक्रेन का युद्ध समाप्त नहीं करवा पा रहे. वहीं रुस-भारत-चीन (आरआईसी) की तिकड़ी ने ट्रंप की नींद खराब कर दी. जिस पाकिस्तान के बल पर कूद रहे थे उस पाकिस्तान की संयुक्त राष्ट्र ने पोल खोल दी. जिस भी देश को लेकर बोलते हैं, बेइज्जती ही मिलती है, चाहे वो थाईलैंड हो, कंबोडिया हो या फिर उत्तर कोरिया.
ऐसे में ट्रंप को ऐसा लगता है कि व्यापार युद्ध के जरिए किसी भी देश को झुकाया जा सकता है. लेकिन ट्रंप की ये गलतफहमी भी दूर हो जाएगी
रूस पर कम हुई है सैन्य निर्भरता, अमेरिका से क्या-क्या सैन्य उपकरण खरीदता है भारत?
आज भारत की सेनाएं (थलसेना, वायुसेना और नौसेना), अमेरिका से खरीदे निम्नलिखित हथियार और सैन्य उपकरण इस्तेमाल करती है. ये सभी पिछले दो दशक में अमेरिका से खरीदे गए हैं.
1. पी8आई मेरीटाइम सर्विलांस एयरक्राफ्ट
2. सी-17 ग्लोबमास्टर मिलिट्री ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट
3. सी-130जे सुपर-हरक्युलिस सैन्य मालवाहक विमान
4. एमएच-60आर (रोमियो) एंटी-सबमरीन हेलीकॉप्टर
5. चिनूक हेवीलिफ्ट हेलीकॉप्टर
6. अपाचे अटैक हेलीकॉप्टर
7. सिग-सौर राइफल
8. एम-777 गन (हल्की तोप)
9. एफ-404 एविएशन इंजन (एलसीए-तेजस प्रोजेक्ट के लिए)
10. एफ-414 इंजन साझा तौर से बनाने पर करार
11. एमक्यू-9 प्रीडेटर ड्रोन (करार हो चुका है).
सिपरी की रिपोर्ट में क्या बताया गया है?
ग्लोबल थिंक टैंक सिपरी (स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट) की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, 2020-24 के बीच भारत में रूस के बने हथियारों का प्रतिशत महज 30 प्रतिशत रह गया, जबकि 2025-2019 के दौरान ये 50 प्रतिशत से ज्यादा था. हथियारों की निर्भरता पर दूसरे नंबर पर फ्रांस है और तीसरे नंबर पर अमेरिका है.
जब पश्चिम ने नहीं दिए थे हथियार तो रूस ने की थी भारत की मदद
भारत ऐसे वक्त में रूस से हथियार खरीदता था, जब अमेरिका और दूसरे पश्चिमी देश पाकिस्तान को समर्थन करते थे. अमेरिका हथियार देना तो दूर, प्रतिबंध लगाने में सबसे आगे रहता था. एक साथ दो मोर्चों (चीन और पाकिस्तान से) जूझने के चलते, भारत को अपनी रक्षा जरूरतों के लिए रूस पर निर्भर रहना पड़ता था. ऐसे में ट्रंप की ये दलील की भारत, रूस से हथियार खरीदता है, गले नहीं उतर रहा है.
हाल ही में ब्रिटेन में भारतीय उच्चायुक्त ने अपने बयान में कहा था कि, “रूस के साथ संबंध कई आधारों पर टिके हैं. भारत और रूस के साथ संबंध कई दशकों से है, जो ऐतिहासिक और रणनीतिक जरूरतों पर आधारित है. इसमें सबसे पहला- हमारा पुराना सुरक्षा संबंध है, जो उस समय से है जब कुछ पश्चिमी देश हमें हथियार नहीं बेचते थे, लेकिन हमारे पड़ोसी देशों को हथियार दे रहे थे, जो वो लोग भारत के खिलाफ इस्तेमाल करते थे. भारत का रूस से रिश्ता केवल तेल तक सीमित नहीं है. यह सुरक्षा, ऊर्जा और ऐतिहासिक सहयोग जैसे कई पहलुओं पर आधारित है.”
कुछ यूरोपीय देश उन्हीं से संसाधन खरीद रहे, जिनसे भारत को रोका जा रहा: ब्रिटेन में भारतीय उच्चायुक्त
ब्रिटेन में भारतीय उच्चायुक्त ने अमेरिकी रोक टोक पर आपत्ति जताते हुए कहा है कि आज की स्थिति ये है कि हम जिन देशों से पहले तेल खरीदते थे, अब वे दूसरों को बेच रहे हैं और हमें ऊर्जा बाजार से बाहर कर दिया गया है. ऐसे में हमारे पास विकल्प क्या है? क्या हम अपनी अर्थव्यवस्था बंद कर दें?”
“भारत पर सवाल उठाने वाले कई यूरोपीय देश खुद भी उन्हीं देशों से ऊर्जा और अन्य संसाधन खरीद रहे हैं, जिनसे भारत को खरीदने से रोका जा रहा है. पश्चिमी देशों के दोहरी सोच पर आश्चर्य जताते हुए कहा, क्या आपको नहीं लगता कि यह थोड़ा अजीब है?”
उच्चायु्क्त ने रूस से तेल खरीद पर भारत के स्टैंड को सही ठहराते हुए कहा, “भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक और उपभोक्ता है. हमारी 80 फीसदी जरूरतें ऐसे ही पूरी होती हैं.”
रूस से तेल खरीदने के चलते ही आज वैश्विक बाजार में आज तेल की कीमतें लगभग स्थिर हैं, अन्यथा पूरी दुनिया को मंहगे तेल की मार झेलनी पड़ सकती थी.