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भारत ने उठाया साइप्रस मुद्दा, Turkey की दुखती रग पर न्यूयॉर्क में रखा हाथ

तुर्किए के राष्ट्रपति रेसेप तयप एर्दोगन को भारत ने दिया है जैसे को तैसा वाला जवाब. मंगलवार को संयुक्त राष्ट्र महासभा के 80वें सत्र में एर्दोगन ने कश्मीर का मुद्दा उठाया था. तो अब न्यूयॉर्क में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने तुर्किए की दुखती रग पर हाथ रखते हुए साइप्रस के विदेश मंत्री से मुलाकात करके अपना समर्थन दिया है.

हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी साइप्रस डी-मिलिट्राइज ज़ोन पहुंचकर तुर्किए को कड़ा संदेश दिया था. तुर्किए ने पहलगाम नरसंहार के बाद पाकिस्तान का खुलकर समर्थन किया था, तो भारत ने तुर्किए के कट्टर दुश्मन और पड़ोसी देश साइप्रस पहुंचकर सपोर्ट जताया था. 

न्यूयॉर्क में एर्दोगन के कट्टर दुश्मन से मिले एस जयशंकर

विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने साइप्रस के विदेश मंत्री कोनस्टांटिनोस कोम्बोस से मुलाकात की. इस दौरान तस्वीर शेयर करते हुए जयशंकर ने कहा, नार्थ साइप्रस का हल भी यूएन के फैसलों और सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों के अनुसार ही होना चाहिए. 

जयशंकर ने अपनी एक्स पोस्ट में लिखा, “साइप्रस के विदेश मंत्री से मिलकर अच्छा लगा. हमने दोनों देशों के रिश्तों की प्रगति पर चर्चा की और साइप्रस मुद्दे का समाधान यूएन के तय ढांचे के मुताबिक करने का समर्थन दोहराया.”

एर्दोगन ने यूएनजीए में उठाया था कश्मीर का मुद्दा, वैसी ही भाषा में जयशंकर ने दिया जवाब

तुर्किए के राष्ट्रपति एर्दोगन ने इस सप्ताह अंतर्राष्ट्रीय मंच पर कश्मीर का मुद्दा उठाते हुए. पाकिस्तान की भाषा बोली थी. यूएन का नाम लेकर कहा था कि  हमें उम्मीद है कि कश्मीर में हमारे भाइयों और बहनों की बेहतरी के लिए कश्मीर मुद्दे का समाधान संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों के आधार पर बातचीत के जरिए किया जाना चाहिए.

अब जयशंकर ने भी एर्दोगन को उसी भाषा में जवाब दिया है. जयशंकर ने कहा है कि “नार्थ साइप्रस का हल भी यूएन के फैसलों और सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों के अनुसार ही होना चाहिए.”

भारत के इस बयान से तुर्किए को मिर्ची लग गई है.

साइप्रस-तुर्किए में क्या विवाद, पहलगाम नरसंहार के बाद तुर्किए ने दिखाया था असली रंग

साइप्रस में ग्रीक और तुर्क अल्पसंख्यक लोग रहते हैं. दोनों समुदायों के बीच लंबे समय से नस्लीय विवाद चला आ रहा है. साल 1974 में ग्रीक समुदाय से जुड़े लड़ाकों ने द्वीप पर तख्तापलट किया था जिसके बाद तुर्की ने तुर्क समुदाय के लोगों की रक्षा का बहाना कर द्वीप पर हमला कर दिया था. इस आक्रमण के बाद साइप्रस दो हिस्सों में बंट गया, जिनमें से एक में ग्रीक-साइप्रस सरकार है और दूसरे पर तुर्क-साइप्रस वासियों का कंट्रोल है.

संयुक्त राष्ट्र सहित दुनिया का कोई भी देश तुर्की के इस क्षेत्र को मान्यता नहीं देता है. ऐसे में पीएम मोदी के बफर जोन का दौरा बेहद अहम हो जाता है.

पहले कश्मीर मुद्दा का अंतरराष्ट्रीय करण करने और अब ऑपरेशन सिंदूर के दौरान जिस तरह तुर्की ने खुलकर पाकिस्तान का साथ दिया, उसके लिए भारत कभी भी इस्तांबुल को माफ करने वाला नहीं है.

साइप्रस के डी मिलिट्राइेज जोन में यूएन पीसकीपिंग फोर्स ने भारतीय सेना के लेफ्टिनेंट को बनाया था पहला कमांडर

संयुक्त राष्ट्र के आदेश पर डी-मिलिट्राइेज जोन में यूएन पीसकीपिंग फोर्स तैनात रहती है. खास बात ये है कि तुर्की से हुए सैन्य टकराव के बाद इस पीस कीपिंग फोर्स के पहले कमांडर भारतीय सेना के लेफ्टिनेंट जनरल दीवान प्रेम चंद बनाए गए थे. 

बफर जोन यानी यूएन प्रोटेक्टेड एरिया बनने से पहले भी भारत के टॉप मिलिट्री कमांडर्स ने साइप्रस की शांति के लिए अपने सेवाएं दी हैं. भारत के चर्चित थलसेना प्रमुख जनरल के एस थिमैया (1957-61) ने रिटायरमेंट के बाद भी साइप्रस में यूएन पीसकीपिंग फोर्स के कमांडर के तौर पर अपनी सेवाएं दी थी. 1965 में साइप्रस में तैनाती के दौरान ही उनका निधन हो गया था. यही वजह है कि साइप्रस ने वर्ष 1966 में जनरल थिमैया की याद में एक पोस्टल स्टैंप जारी किया था.

आपको बता दें कि साइप्रस उन देशों में शामिल है, जो संयुक्त राष्ट्र में भारत को स्थायी सदस्य बनाने की मांग करता है.

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