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भारत को मिले NATO देशों जैसा महत्व: US सांसद

भारत के बढ़ते दबदबे और तीसरी बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद अमेरिकी संसद में भारत के पक्ष में एक अहम बिल पेश किया गया है. इस बिल को अमेरिकी सांसद मार्को रूबियो ने कांग्रेस (अमेरिकी संसद) में पेश किया है. सांसद मार्को रूबियो ने अमेरिकी संसद को जापान, इजरायल, साउथ कोरिया और नाटो सहयोगियों के स्तर पर ही भारत को महत्व देने की मांग की है. 

अमेरिकी सांसद मार्को रूबियो के पेश किए बिल में कहा गया है कि “पाकिस्तान अगर भारत के खिलाफ आतंकवाद फैलाता है तो उसके लिए सुरक्षा सहायता बंद की जाए. पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई की जाए.”

नाटो सहयोगी के तौर पर भारत को दर्जा मिले: मार्को रूबियो
गुरुवार को अमेरिकी सीनेटर मार्को रुबियो ने प्रस्तावित बिल ‘यूएस इंडिया डिफेंस कॉपरेशन एक्ट’ पेश किया है. बिल में कहा गया है कि “अमेरिका के करीबी सहयोगियों जापान, इजरायल और दक्षिण कोरिया के साथ ही नाटो सदस्यों जैसे भारत को भी रणनीतिक सहयोगी का दर्जा दिया जाए. भारत के साथ सैन्य सहयोग बढ़ाया जाए.”

बिल में पाकिस्तान के प्रॉक्सी वॉर का भी जिक्र किया गया है और मांग की गई है कि “अगर पाकिस्तान भारत के खिलाफ अपनी हरकतों से बाज नहीं आता है तो उसको दी जाने वाली आर्थिक मदद रोक दी जाए और उसके खिलाफ कार्रवाई की जाए.”

भारत के साथ सैन्य, कूटनीतिक रिश्ते मजबूत हों: मार्को रूबियो
इस बिल में कहा गया है कि “अमेरिका-भारत की साझेदारी चीन के प्रभाव को कम करने के लिए जरूरी है. कूटनीतिक रणनीति, अर्थव्यवस्था, सैन्य साझेदारी के स्तर पर नई दिल्ली के साथ वाशिंगटन को रिश्ते मजबूत करने चाहिए.”

रुबियो ने कहा-“कम्युनिस्ट चीन इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अपना दबदबा बढ़ाने की कोशिश कर रहा है. चीन हमारे क्षेत्रीय सहयोगियों की संप्रभुता का भी उल्लंघन करता रहता है. ऐसे में अमेरिका भारत जैसे अपने सहयोगियों को चीन से निपटने में मदद करें.”

भारत को रूस से हथियार खरीदने में मिले छूट: मार्को रूबियो
‘यूएस इंडिया डिफेंस कॉपरेशन’ बिल में भारत को अमेरिका द्वारा अहम रक्षा तकनीक साझा करने की भी मांग की गई है. बिल में ये भी कहा गया है कि भारत को रूस से हथियार खरीदने की थोड़ी छूट मिलनी चाहिए क्योंकि अभी भारतीय सेना रक्षा उपकरणों की आपूर्ति के लिए रूस पर निर्भर है.

पिछले साल भी उठी थी मांग, जयशंकर ने किया था इनकार
पिछले साल मई में अमेरिकी संसद में भारत को ‘नाटो प्लस’ का दर्जा देने की भी मांग उठी थी. अमेरिकी संसद की सिलेक्ट कमेटी ने भारत को नाटो प्लस में शामिल होने की सिफारिश की थी. पिछले कुछ सालों में नाटो से कई देश जुड़े हैं, लेकिन भारत ने दूरी बनाई हुई है. अमेरिका समेत दुनिया के कई देश भारत को नाटो का हिस्सा बनने की कोशिश में जुटे हैं, लेकिन भारत ने कभी ऐसा करने की कोशिश नहीं की. क्योंकि भारत की हमेशा से ये रणनीति रही है कि भारत किसी पावर ब्लॉक का हिस्सा नहीं होगी और न ही किसी का विरोध करेगा. पिछले साल जब अमेरिका में मांग उठी थी तब विदेश मंत्री जयशंकर ने साफ किया था कि नाटो प्लस के दर्जे के प्रति भारत ज्यादा उत्सुक नहीं है.

क्या है नाटो प्लस?
नाटो एक रक्षा गठबंधन है. नाटो प्लस एक सुरक्षा व्यवस्था है, जो नाटो और पांच गठबंधन राष्ट्रों ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, जापान, इजरायल और दक्षिण कोरिया को वैश्विक रक्षा सहयोग बढ़ाने के लिए साथ लाती है. साल 1949 में इसका गठन किया गया था. इस संगठन में अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा और फ्रांस समेत 32 देश शामिल हैं. फिनलैंड और स्वीडन भी नाटो के नए सदस्य बने हैं.
भारत को भी कई देश नाटो में शामिल करने के पक्ष में हैं पर भारत नाटो प्लस का सदस्य नहीं बनना चाहती. भारत के रुख के पीछे माना जाता है कि नाटो का सदस्य बनने पर भारत को कई सैन्य अभियानों और करार का हिस्सा बनना पड़ेगा और स्वतंत्र निर्णय नहीं ले पाएगा.

बाइडेन ने क्या कहा था

यूक्रेन युद्ध में रुस का खुलकर विरोध न करने के चलते अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा था कि भारत ऐसा रुस पर हथियारों के लिए निर्भर रहने के चलते कर रहा है. गौरतलब है कि अमेरिका, नाटो देशों को अपने आधुनिक हथियार और फाइटर जेट तक मुहैया कराता है. 

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