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एयर डिफेंस गन का फैशन लौटा, सेना को चाहिए फ्रेगमेंटेशन एम्युनिशन

रूस-यूक्रेन और इजरायल-हमास युद्ध से एक बार फिर एयर डिफेंस गन फैशन में लौट आई हैं, लेकिन भारतीय सेना अभी भी छह दशक पुराने सिस्टम का इस्तेमाल कर रही है. ऐसे में भारतीय सेना ने एयर स्पेस की सुरक्षा के लिए नई एडी गन खरीदने का प्लान तैयार किया है. साथ ही स्वदेशी एलआरसैम और क्यूआरसैम मिसाइलों को भी बड़ी संख्या में तैनाती की तैयारी है.

भारतीय सेना की एयर डिफेंस कोर (आर्मी एयर डिफेंस), के महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल सुमेर डिकुना के मुताबिक, मौजूदा एल-70 गन को साठ के दशक में रूस से लिया गया था. साथ ही जेडयू गन भी काफी पुरानी हो चुकी हैं. ऐसे में जुलाई के महीने में भारतीय सेना दो स्वदेशी कंपनियों की गन्स का ट्रायल लेने जा रही है. क्योंकि एयर डिफेंस कोर को कम से कम 220 ऐसी गन की जरूरत है जो पुरानी पड़ चुकी एल-70 और जेडयू-23 गन को रिप्लेस कर सकें.

रूस की पंतसीर एंटी-एयरक्राफ्ट गन की चर्चा

जनरल डिकुना ने हालांकि, इन दोनों कंपनियों और गन के बारे में ज्यादा जानकारी साझा करने से इंकार कर दिया, लेकिन माना जा रहा कि इनमें से एक रूस की ही पंतसीर गन हो सकती है. क्योंकि हाल ही में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने भारत के साथ मिलकर हथियारों के निर्माण के बात कही थी. जल्द ही पुतिन भारत के दौरे पर आने वाले हैं. ऐसे में पंतसीर गन की संभावनाएं काफी बढ़ गई हैं.

पिछले साल नवंबर में भारत के सरकारी रक्षा उपक्रम भारत डायनामिक्स लिमिटेड (बीडीएल) ने रूस की रोसोबोरोनएक्सपोर्ट के साथ मेक इन इंडिया के तहत पंतसीर गन के निर्माण को लेकर चर्चा की थी.

पंतसीर एक मोबाइल, शॉर्ट रेंज डिफेंस सिस्टम है, जिसमें मिसाइल और गन दोनों ही लगी होती हैं. इस एयर डिफेंस सिस्टम को छोटे मिलिटरी, इंडस्ट्रियल और प्रशासनिक फैसिलिटीज की हवाई सुरक्षा के लिए तैयार किया गया है. यह सिस्टम लड़ाकू विमानों से लेकर हेलीकॉप्टर, मिसाइल और ड्रोन तक से हवाई सुरक्षा प्रदान करने में सक्षम है.

12 मिसाइल और दो तोप से लैस पंतसीर सिस्टम

पंतसीर सिस्टम में 12 मिसाइल और दो 30 एमएम तोप लगी होती हैं. इससे यह अपने लक्ष्य पर 1200 से 20 किलोमीटर तक की रेंज में मिसाइल का इस्तेमाल कर निशाना साध सकता है. इसके अलावा इसमें लगी गन से 2-4 किलोमीटर तक की रेंज में लक्ष्य पर निशाना साधा जा सकता है.

एयर डिफेंस की जरूरत क्यों

जनरल डिकुना के मुताबिक, हालांकि, देश की हवाई सुरक्षा की मुख्य जिम्मेदारी भारतीय वायुसेना की है, लेकिन टेक्टिकल बैटल एरिया (टीबीए) की जिम्मेदारी आर्मी एयर डिफेंस (एडी) कोर की है. जंग के मैदान में सेना के आर्मर्ड और मैकेनाइज्ड कॉलम से लेकर छावनियों और मिलिट्री बेस की हवाई सुरक्षा खुद सेना को ही करने की जरूरत है.

एडीजीएमएसपी की भी है जरूरत

आर्मर्ड और मैकेनाइज्ड कॉलम के लिए खासतौर से सेना को एडीजीएमएसपी यानी एयर डिफेंस गन-मिसाइल सेल्फ प्रोपेलड की जरूरत है. ये मोबाइल सेल्फ प्रोपेलड गन-मिसाइल सिस्टम है जिसे आसानी टैंक और आर्मर्ड पर्सनल कैरियर के साथ मूव किया जा सकता है ताकि दुश्मन के हवाई हमलों से बचाया जा सके.

एयर डिफेंस कोर के पास स्वदेशी वीशोराड मिसाइल भी है जिसे दो सैनिक आराम से ऑपरेट कर सकते हैं. इन वीशीरोड (वैरी शॉर्ट रेंज एयर डिफेंस सिस्टम) को बेहद कम दूरी पर किसी हेलीकॉप्टर, फाइटर जेट या फिर यूएवी के खिलाफ इस्तेमाल किया जाता है.

स्वदेशी मिसाइल के जरिए एयर डिफेंस

शुक्रवार को मीडिया से ऑफ कैमरा बातचीत में ले.जनरल डिकुना ने बताया कि एयर डिफेंस कोर, स्वेदशी क्विक रिक्शन सर्फेस टू एयर मिसाइल (क्यूआरसैम) और मीडियम रेंज सर्फेस टू एयर मिसाइल (एमआरसैम) को ज्यादा से ज्यादा तैनात करने की भी तैयारी कर रही है. क्यूआरसैम की रेंज 30 किलोमीटर है तो एमआरसैम की रेंज करीब 70 किलोमीटर है.

लॉन्ग रेंज के लिए भारतीय वायुसेना के पास रूस की एस-400 मिसाइल सिस्टम है.

जनरल डिकुना के मुताबिक, आकाश मिसाइल सिस्टम पहले से ही बड़ी संख्या में सेना ने संवेदनशील क्षेत्रों में तैनात कर रखी है.

फ्रिगमेंट एम्युनिशन की भी सख्त जरूरत

मौजूदा एयर डिफेंस गन (एल-70, जेडयू-23 और सिल्का) के लिए भारतीय सेना फ्रिगमेंट एम्युनिशन भी इस्तेमाल करने की तैयारी कर रही है. इस तरह का एक स्मार्ट गोला-बारूद, पांपरिक एक्सप्लोजिव से 17 गुना ज्यादा घातक साबित होता है. इस तरह के एम्युनिशन का इस्तेमाल लोएटरिंग म्युनिशन और स्वार्म ड्रोन के खिलाफ किया जाता है.