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Navy मेगा प्लान: रफाल मरीन, SSN सबमरीन और 94 नए जहाज

हिंद महासागर में चीन की बढ़ती पनडुब्बियां के बेड़ा का मुकाबला करने के लिए भारतीय नौसेना पहली बार परमाणु ऊर्जा से संचालित पनडुब्बियां (एसएसएन) बनाने जा रही है. विशाखापट्टनम स्थित शिप बिल्डिंग सेंटर में इन दोनों परमाणु पनडुब्बियों का निर्माण होगा. इसके अलावा अगले एक दशक में भारतीय नौसेना करीब 94 नए जंगी जहाज अपने बेड़े में शामिल करने की तैयारी कर रही है.

वर्ष 2036-37 तक नौसेना के जंगी बेड़े में पहली एसएसएन सबमरीन शामिल हो जाएगी. खुद नौसेना प्रमुख एडमिरल दिनेश कुमार त्रिपाठी ने इस बात की जानकारी दी है. अगली परमाणु संचालित पनडुब्बी दो साल बाद यानी 2038-39 तक नौसेना को मिल जाएगी.

नौसेना दिवस (4 दिसंबर) से पहले एडमिरल त्रिपाठी राजधानी दिल्ली में सालाना प्रेस वार्ता को संबोधित कर रहे थे. इसी दौरान नौसेना प्रमुख ने बताया कि नए सबमरीन प्लान के तहत छह परमाणु पनडुब्बियां की मांग की गई थी.

प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाली कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी (सीसीएस) ने दो परमाणु पनडुब्बियों की मांग स्वीकार कर ली है. इन दोनों पनडुब्बियों से जुड़े प्रोजेक्ट की कुल कीमत 40 हजार करोड़ होने जा रही है.

ये दोनों एसएसएन पनडुब्बियां, अरिहंत क्लास न्यूक्लियर (एसएसबीएन) सबमरीन से अलग होंगी. इस क्लास की दो पनडुब्बी, अरिहंत और अरिघात बनकर तैयार हो चुकी है. अरिहंत पिछले 7-8 सालों से स्ट्रेटेजिक फोर्स कमांड (एसएफसी) के अंतर्गत काम कर रही है. वहीं अरिघात भी बनकर तैयार हो चुकी है और उससे मिसाइल फायरिंग के टेस्ट इन दिनों चल रहे हैं.

इसके अलावा आईएनएस अरिदमन और एक अन्य एसएसबीएन पनडुब्बी को भी लॉन्च कर दिया गया है. (https://x.com/indiannavy/status/1863188314104144146)

एसएसबीएन पनडुब्बियों परमाणु हथियारों (मिसाइल इत्यादि) से लैस होती है. ऐसे में ये पनडुब्बियां देश की एसएफसी की अंतर्गत होती है. लेकिन एसएसएन पनडुब्बियों पारंपरिक मिसाइल और टोरपीडो से लैस होंती हैं. ऐसे में ये नौसेना के अंतर्गत रहेंगी.

हाल ही में एसएफसी ने अरिघात पनडुब्बी से 3500 किलोमीटर तक मार करने वाली बैलिस्टिक मिसाइल का परीक्षण किया था. हालांकि, परीक्षण बिना वारहेड वाली मिसाइल से किया गया था.

भारत ने वर्ष 2012 में एक अकुला क्लास एसएसएन पनडुब्बी, आईएनएस चक्र दस सालों के लिए रूस से लीज पर ली थी. वर्ष 2022 में लीज खत्म होने के बाद ये पऩडुब्बी रूस को लौटा दी गई थी. ऐसे में भारत के पास फिलहाल कोई एसएसएन पनडुब्बी नहीं है.

प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान एडमिरल त्रिपाठी ने ये भी बताया कि फ्रांस से तीन अतिरिक्त स्कोर्पीन क्लास पनडुब्बियां बनाने पर बात चल रही है.

फ्रांस की मदद से भारत ने मझगांव डॉकयार्ड (मुंबई) में छह स्कोर्पीन क्लास सबमरीन बनाने का सौदा किया था. इनमें से पांच नौसेना के जंगी बेड़ा का हिस्सा बन चुकी हैं. आखिरी आईएनएस वगशीर भी अगले साल तक बनकर तैयार हो जाएगी.

दरअसल, भारतीय नौसेना का प्रोजेक्ट 75(आई) काफी देरी से चल रहा है. इस प्रोजेक्ट के तहत एआईपी (एयर इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन) से लैस छह पनडुब्बियां बनाई जानी थी. लेकिन अभी तक सौदा पर मुहर नहीं लग पाई है. यही वजह है कि सबमरीन फ्लीट बढ़ाने पर नौसेना में जोर दिया जा रहा है.

उधर, चीन की पीएलए-नेवी अपनी ताकत लगातार बढ़ाने में जुटी है. माना जाता है कि चीन के पास फिलहाल 50-60 पनडुब्बियां हैं.

एडमिरल त्रिपाठी के मुताबिक, इस समय भारतीय नौसेना के 63 जंगी जहाज और पनडुब्बियां निर्माणाधीन हैं. इनमें रूस के बने दो जहाज, आईएनएस तुशील और तामाल भी शामिल हैं. साथ ही आईएनएस वगशीर पनडुब्बी भी शामलि है जिसके फिलहाल समुद्री ट्रायल चल रहे हैं.

 इसके अलावा 31 युद्धपोत और सबमरीन के लिए रक्षा मंत्रालय से मंजूरी मिल चुकी है. ऐसे में भारतीय नौसेना के जंगी बेड़े में अगले एक दशक में 90 से ज्यादा युद्धपोत और पनडुब्बियां शामिल हो जाएंगी.

नौसेना प्रमुख के मुताबिक, अमेरिका में एमक्यू-9 रीपर ड्रोन और फ्रांस से राफेल (रफाल) फाइटर जेट के 26 मरीन वर्जन के लिए भी बातचीत पूरी होने जा रही है.