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क्या अमेरिकी Stryker लेगा भारत ?

चीन से सटी एलएसी पर तैनात करने के लिए भारत क्या अमेरिका का खास ‘स्ट्राइकर’ व्हीकल लेने की तैयारी कर रहा है. ये सवाल इसलिए क्योंकि थलसेना प्रमुख जनरल मनोज पांडे के अमेरिका दौरे के दौरान यूएस आर्मी ने ‘स्ट्राइकर’ इन्फैंट्री कॉम्बैट व्हीकल (आईसीवी) यूनिट के बारे में खास तौर से जानकारी दी है. 

हाल ही में अमेरिका ने ‘स्ट्राइकर’ को मेक इन इंडिया के तहत भारत में ही निर्माण करने की पेशकश की थी. उसको लेकर रक्षा मंत्रालय और भारतीय सेना का एक एक्सपर्ट ग्रुप अमेरिका के प्रस्ताव की स्टडी कर रहा है. भारतीय सेना ने अपने आधिकारिक ‘एक्स’ अकाउंट पर थलसेना प्रमुख के यूएस आर्मी की जेबीएलएम (वाशिंगटन स्टेट) स्थित 1 कोर के मुख्यालय की तस्वीरें साझा की हैं. इन तस्वीरों में यूएस आर्मी के अधिकारी ‘स्ट्राइकर’ से जुड़ी ब्रीफिंग देते हुए दिखाई पड़ रहे हैं. तस्वीरों के बैकग्राउंड में स्ट्राइकर भी दिखाई पड़ रहा है. 

पिछले दो दशक से स्ट्राइकर’ यूएस आर्मी का अहम हिस्सा बन गया है. क्योंकि अमेरिका ने अपनी इंफेन्ट्री यानी पैदल सैनिकों की रेजीमेंट को लगभग खत्म कर पूरी तरह से स्ट्राइकर पर आधारित ब्रिगेड कॉम्बेट टीम (बीटीसी) में तब्दील कर दिया है. ये स्ट्राइक ब्रिगेड मैकेनाइज्ड इफेंन्ट्री की तर्ज पर खड़े किए गए हैं. तत्कालीन थलसेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत (2016-19) ने भी अमेरिका और चीन की तरह ही भारतीय सेना में इंटीग्रेटेड बैटल ग्रुप (आईबीजी) के गठन को एक प्रयोग के तौर पर शुरु किया था. 

हालांकि, भारत भी पिछले कई दशक से रुस के बीएमपी व्हीकल इस्तेमाल कर रहा है लेकिन अब उनकी जगह आधुनिक आर्मर्ड पर्सनल कैरियर (एपीसी) की जरूरत आ पड़ी है. गलवान घाटी की झड़प (2020) के बाद से भारतीय सेना को पूर्वी लद्दाख में तेजी से मूव करने वाली एपीसी की जरूरत महसूस हुई है. क्योंकि चीन के पास ऊंचाई और बेहद ही दुर्गम इलाकों तक में पहुंचने वाली गाड़ियां (हम्वी) हैं. यही वजह है कि अमेरिका अपने स्ट्राइकर भारत को देना चाहता है. 

स्ट्राइकर में 8-9 सैनिक सवार हो सकते हैं और एलएमजी (लाइट मशीन गन) के अलावा रॉकेट लॉन्चर से भी लैस है. इसके बॉडी आर्मर्ड प्रोटेक्टेड (बख्तरबंद गाड़ी) है जिससे इसमें सवार सैनिक गोलियों और बम-बारूद से सुरक्षित रहते हैं. इसमें सवार सैनिक जैवलिन एटीजीएम यानी एंटी टैंक गाइडेड मिसाइल से भी लैस रहते हैं. साथ ही ड्रोन के खतरों से निपटने के लिए इसमें शॉर्ट रेंज एयर-डिफेंस सिस्टम (एसएचओआरएडी) भी लगाया गया है. 

लेकिन इस बीच भारतीय सेना की उधमपुर स्थित उत्तरी कमान ने स्वदेशी टाटा ग्रुप के क्रिस्टल (एपीवी) को अपने जंगी बेड़े में शामिल कर पूर्वी लद्दाख से सटी लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) पर तैनात भी कर लिया है. टाटा के अलावा स्वदेशी कल्याणी ग्रुप और एलएंडटी भी भारत मे ही निर्मित एपीवी के साथ तैयार हैं. ऐसे में कयास इस बात के भी लग रहे हैं कि फिर भारत क्यों स्ट्राइकर लेगा. शायद यही वजह है कि एडीजीपीआई ने अपनी एक्स पोस्ट में ये भी लिखा है कि ‘थलसेना प्रमुख को स्पेशलिस्ट यूनिट के दौरे का उद्देश्य अधिक महत्वपूर्ण ट्रेनिंग गतिविधियों के लिए रास्ते तलाशना है.” क्योंकि अमेरिका सेना जब भी भारतीय सेना के साथ युद्धाभ्यास में हिस्सा लेती है स्ट्राइकर उसकी यूनिट का अहम हिस्सा होता है. जनरल मनोज पांडे को 1 कोर के मुख्यालय में स्ट्राइकर के अलावा मल्टी डोमेन टास्क फोर्स और स्पेशल फोर्सेज ग्रुप के बारे में भी जानकारी दी गई थी.  

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