भारत और चीन के बीच एलएसी पर हुए डिसएंगेजमेंट को लेकर ऑस्ट्रेलिया के ब्रिसबेन में विदेश मंत्री एस जयशंकर खुलकर बोले हैं. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के बाद अब विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी कहा है कि दोनों देशों के सैनिकों के विवादित इलाकों से पीछे हटने के बाद अब कुछ और कदम उठाए जा सकते हैं ताकि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर शांति और स्थिरता को बरकरार रखा जाए.
विदेश मंत्री ने कहा कि” चीन के संदर्भ में हमने कुछ प्रगति की है. हमारे संबंध (भारत और चीन ) बहुत खराब थे दोनों देशों के पीछे हटने के बाद हमें देखना होगा कि हम किस दिशा में आगे बढ़ते हैं, अगर संभावनाएं खुलती हैं तो और कदम उठाए जा सकते हैं.”
एलएसी से भारत-चीन पीछे हटे, संभावनाएं बढ़ेंगी- जयशंकर
ऑस्ट्रेलिया दौरे पर पहुंचे एस जयशंकर ने भारतीय समुदाय के बीच भारत-चीन के रिश्तों और हाल ही में एलएसी पर हुई प्रगति के बारे में बात की है. एस जयशंकर ने कहा, “जैसा कि आप सब जानते हैं, कि भारत और चीन के बीच बहुत खराब रिश्ते थे, वो क्यों थे. इसके कारण भी सब लोग जानते हैं. लेकिन भारत और चीन के संदर्भ में हमने कुछ प्रगति की है.”
विदेश मंत्री ने कहा कि “वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर बहुत बड़ी संख्या में चीनी सैनिक तैनात हैं, जो 2020 से पहले वहां नहीं थे और बदले में हमने भी जवाबी तैनाती की. इस तैनाती के बाद भारत-चीन के संबंधों के दूसरे पहलू भी प्रभावित हुए.”
जयशंकर ने कहा कि “अब एलएसी पर दोनों देशों के पीछे हटने के बाद हमें देखना होगा कि हम किस दिशा में आगे जा सकते हैं. हमें लगता है कि एलएसी से पीछे हटना एक स्वागत योग्य कदम है. इससे संभावना खुलती है कि अन्य कदम भी उठाए जा सकते हैं.”
सैनिकों की वापसी से सिर्फ एक मुद्दा सुलझा- एस जयशंकर
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने इस बात को माना कि अभी भी भारत और चीन के बीच कई मुद्दे हैं, जिनकी प्रगति आवश्यक है. एस जयशंकर ने कहा कि सैनिकों की वापसी सिर्फ एक मुद्दे का सुलझाना है और अभी भी गतिरोध के दूसरे पहलू भी हैं, जिन्हें अभी भी सुुलझाया जाना बाकी है.
जयशंकर ने कहा कि गलवान घाटी की झड़प के बाद भारत-चीन की झड़प के बाद से दोनों देशों ने 50 हजार से ज्यादा सैनिकों की तैनाती की. जिसके बाद भारत-चीन के द्विपक्षीय संबंध 1962 युद्ध के बाद से सबसे निचले स्तर पर पहुंच गए थे. पर भारत ने कभी समझौता नहीं किया. तमाम चीनी एप्स पर प्रतिबंध लगाए गए, वीजा पर रोक लगाई गई. चीनी निवेश को भी कम किया गया.
विदेश मंत्री ने कहा कि “पिछले महीने रूस में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात के बाद उम्मीद थी कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और मैं दोनों अपने समकक्ष से मिलेंगे. तो चीजें इस तरह से सुलझाई गई हैं.”
पिछले सप्ताह राजनाथ सिंह ने भी कहा था कि भारत और चीन के बीच एलएसी के कुछ इलाकों में मतभेदों को दूर करने के लिए कूटनीतिक और सैन्य दोनों स्तरों पर समानता और आपसी सुरक्षा के आधार पर व्यापक सहमति बनी है. इस सहमति में पारंपरिक इलाकों में गश्त और स्थानीय चरवाहों के अधिकार भी शामिल हैं. हमारी कोशिश होगी कि मामले को सैनिकों को वापस हटाने की प्रक्रिया से आगे ले जाया जाए, लेकिन इसके लिए हमें थोड़ा और इंतजार करना होगा.
थलसेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी भी कह चुके हैं कि डिसएंगेजमेंट के बाद डि-एस्केलेशन यानी सीमा से सैनिकों की संख्या को कम करना जरूरी है. (Disengagement के साथ आपसी विश्वास जरूरी: थलसेना प्रमुख)