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पाकिस्तान के खिलाफ Short & Swift वॉर, कैसे हुई ऑपरेशन सिंदूर की प्लानिंग

ऑपरेशन सिंदूर के दौरान हिंद की सेना ने किस तरह पाकिस्तान को धुंआ-धुंआ कर दिया था, ये तो पूरी दुनिया ने देख लिया. किस तरह भारत की थलसेना और वायुसेना ने 6-7 मई की रात को बेहद संयम रणनीति से महज 22 मिनट में पहलगाम नरसंहार का बदला लिया, वो कहानी भी सामने आ चुकी है. साथ ही कैसे पाकिस्तान के 11 एयरबेस को बर्बाद किया गया, उसके सबूत भी सामने आ चुके हैं. लेकिन आज हम आपको बताने जा रहा है कि आखिर पाकिस्तान में आतंकियों और फेल्ड (फील्ड) मार्शल असीम मुनीर की सेना को मिट्टी में कैसे मिलाया गया.

टीएफए ने पहले बताया था कि कैसे भारतीय सेना के वॉर-रूम यानी ऑप्स रूम में सीडीएस जनरल अनिल चौहान, थलसेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी, एयर चीफ मार्शल एपी सिंह और चीफ ऑफ नेवल स्टाफ एडमिरल दिनेश कुमार त्रिपाठी पाकिस्तान पर हुए हमले की कार्रवाई देख रहे थे. इस दौरान सह-थलसेना प्रमुख (वाइस चीफ) लेफ्टिनेंट जनरल एनएस राजा सुब्रमणि और डीजीएमओ लेफ्टिनेंट जनरल राजीव घई भी वॉर-रूम में मौजूद थे.

हर परिस्थिति के लिए अलग युद्ध की तैयारी है भारतीय सेनाओं की
दरअसल, दुनिया की किसी भी प्रोफेशनल आर्मी की तरह भारतीय सेना (थलसेना, वायुसेना और नौसेना) हर परिस्थिति के लिए अलग-अलग तरह के युद्ध की तैयारियां करती है. सेनाओं का वॉर-प्लान हर वक्त तैयार रहता है. दुनिया की चौथी सबसे शक्तिशाली सेना के वॉर-प्लान तो पिछले कई साल से तैयार हैं. क्योंकि कारगिल युद्ध से लेकर संसद पर हमला और मुंबई के 26-11 अटैक से लेकर उरी और पुलवामा हमला, भारतीय सेना ने शॉर्ट एंड स्वफिट वॉर से लेकर लंबे समय तक युद्ध और फुल-स्पेक्ट्रम वॉर की पूरी तैयार कर रखी है.

पिछले कई दशक से भारतीय सेना कोल्ड स्टार्ट डॉक्ट्रिन की नीति पर चलती है. इसके तहत, भारतीय सेना 12 महीने युद्ध के लिए तैयार रहती हैं. आदेश मिलने के महज 24-48 घंटे में पूरी सेना को मोबिलाइज किया जा सकता है, जैसा वर्ष 2020 में गलवान घाटी की झड़प के दौरान हुआ था.

पिछले कुछ सालों की भारतीय सेना के वॉर-गेम्स को गौर से देखेंगे तो पाएंगे कि आतंकी घटनाओं के बाद दुश्मन-देश पर आक्रमण करने से लेकर टैंक से सर्जिकल स्ट्राइक और बिहाइंड दे एनेमी लाइंस जाकर दुश्मन की सीने पर वार करने की पूरी तैयारी थी.

वर्ष 2019 में जब भारतीय वायुसेना ने बालाकोट में एयर-स्ट्राइक की थी, तो युद्ध होने की पूरी आशंका थी. क्योंकि पहली बार भारत के लड़ाकू विमानों ने न केवल एलओसी क्रॉस की थी बल्कि पीओके के पार जाकर पाकिस्तान के खैबर-पख्तूनख्वा में हमला किया था.

वर्ष 2016 में जब उरी अटैक के बाद भारतीय सेना यानी थलसेना ने एलओसी पर मोबिलाइजेशन किया था तो पाकिस्तान से पहले अमेरिका ने ही राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल को को फोन कर दिया था. ऐसे में पिछले नौ सालों से एलओसी पर भारतीय सेना ने अग्रिम मोर्चो पर तैनाती शुरू कर दी थी. हालांकि, बेहद विषम परिस्थितियों में सैनिकों के लिए 2 महीने 10-12 हजार फीट की ऊंचाई पर बर्फ में तैनाती बेहद मुश्किल थी, लेकिन अब भारत कोई गलती नहीं करने जा रहा था.

ऐसे में भारतीय सेना ने स्ट्राइक कोर को छोड़कर बाकी सभी फोर्मेशन्स और यूनिट्स को सीधे बॉर्डर पर तैनात कर रखा है. एलओसी पर सेना की मोर्चाबंदी थ्री-टियर यानी तीन लेयर में थी. पहले टियर में इन्फ्रेंटी बटालियन थी, जो अपनी एके-203 और सिगसौर राइफल्स, मोर्टार और रॉकेट लॉन्चर्स के साथ पाकिस्तानी चौकियों और पाकिस्तानी सैनिकों के साथ आईबॉल टू आईबॉल रहते हैं. दूसरे टियर में सैन्य कमांडर थे ताकि बॉर्डर पर ही टेक्टिकल रणनीति बनाई जा सके. तीसरे लेयर में था सेना का तोपखाना और एयर डिफेंस सिस्टम.

पंजाब, राजस्थान और गुजरात की सीमा पर हालांकि, बीएसएफ प्रथम पंक्ति में थी, लेकिन यहां भारतीय सेना के टैंक और एयरबॉर्न यूनिट्स पूरी तरह तैयार थी. पहलगाम हमले के दौरान भारतीय सेना की जयपुर स्थित दक्षिणी-पश्चिमी कमान टैंक, अटैक हेलीकॉप्टर और ड्रोन्स के साथ वाइपर-स्ट्राइक नाम का युद्धाभ्यास कर रही थी. इस एक्सरसाइज का उद्देश्य दुश्मन की सीमा में टैंकों के जरिए सर्जिकल स्ट्राइक करना थी.

भारतीय वायुसेना भी मिटयोर, अस्त्रा, स्कैल्प, हैमर और ब्रह्मोस जैसे स्टैंड-ऑफ वेपन से लैस रफाल, मिराज और सुखोई फाइटर जेट के साथ दुश्मन की छाती पर प्रहार करने की तैयारी कर रही थी. बालाकोट एयर-स्ट्राइक के बाद से ही वायुसेना ने पाकिस्तान के आतंकी हमले के लिए एक नई लकीर खींच दी थी. एक ऐसी लकीर जो भारत ने कारगिल युद्ध के दौरान भी पार नहीं की थी. कारगिल युद्ध के दौरान वायुसेना के फाइटर जेट्स को एलओसी पार करने की इजाजत नहीं थी. लेकिन अब ऐसी कोई बंदिश नहीं थी.

यही वजह है कि जब पहलगाम हमले के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और सीडीएस जनरल अनिल चौहान के साथ सेना के  तीनों अंगों के प्रमुखों से मुलाकात की तो सभी बेहद आत्मविश्वास से भरे थे. किसी के माथे पर कोई शिकन नहीं थी.

पहलगाम हमले के बाद भारतीय नौसेना ने जरूर अपने कैरियर बैटल ग्रुप को जरूर समंदर में उतारा था. वो भी इसलिए क्योंकि पाकिस्तानी नौसेना ने 23 अप्रैल से ही कराची और ग्वादर से सटे समंदर में नेवएरिया वार्निंग जारी की थी. पाकिस्तानी नौसेना ने भी अपनी थलसेना की तरह समुद्री-तटों और जंगी जहाजों से फायरिंग ड्रिल शुरु कर दी थी. क्योंकि पाकिस्तान को पूरी आशंका थी कि पहलगाम हमले का बदला भारत लेकर रहेगा. पाकिस्तान लेकिन ये नहीं जानता था कि ये हमला, कब कहां और कैसे होगा.

भारत की सेनाओं ने भ्रम की रणनीति अपनाई ताकि हमले के दौरान पाकिस्तान को संभालने का मौका न मिले.

पहलगाम हमले के अगले दिन ही रक्षा मंत्री ने खुले मंच से किया था बदले का ऐलान

हमले के अगले दिन यानी 23 अप्रैल को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने एक सार्वजनिक कार्यक्रम में साफ कर दिया कि पहलगाम के कायरतापूर्ण हमले का बदला जरूर लिया जाएगा. राजनाथ सिंह ने गर्जना की थी कि इस बार हमलावरों के साथ-साथ साजिश रचने वाले कसूरवारों को नहीं बख्शा जाएगा.

राजनाथ सिंह के बदले की बात सुनते ही 24 अप्रैल को पाकिस्तान ने अरब सागर में नेवएरिया नोटिस जारी कर दिया. यानी पाकिस्तानी नौसेना, अपने समुद्री तट और निकटवर्ती समंदर में फायरिंग ड्रिल करने जा रही थी.  हालांकि, ये चेतावनी अरब सागर में कराची और ग्वादर से सटे समंदर से गुजरने वाले कार्गो जहाज के लिए था, लेकिन ये पक्का था कि पाकिस्तान को इस बात का डर सताने लगा था कहीं इस बार भारत, अपनी नौसेना से सर्जिकल स्ट्राइक न करा दे. पाकिस्तान के नोटिस के बाद भारतीय नौसेना ने भी आईएनएस विक्रांत के साथ पूरे बैटल कैरियर ग्रुप को अरब सागर में उतार दिया.

वाइपर स्ट्राइक से आक्रमण की तैयारी

पहलगाम हमले के तीन दिन हो चुके थे कि इस बीच 25 अप्रैल को भारतीय सेना ने राजस्थान सीमा से सटे रेगिस्तान में वाइपर-स्ट्राइक नाम की एक बड़ी एक्सरसाइज कर पाकिस्तान को हिला दिया. सेना की  दक्षिणी-पश्चिमी कमान ने टैंक, अटैक हेलीकॉप्टर और ड्रोन के साथ युद्धाभ्यास को कर साफ कर दिया कि जरूरत पड़ी तो इस बार दुश्मन की सीमा में टैंकों के जरिए सर्जिकल स्ट्राइक की जा सकती है. सेना ने इस एक्सरसाइज का नाम रेगिस्तान के सबसे खतरनाक वाइपर स्नैक के नाम पर रखा था, जिसका काटा पानी भी नही मांग पाता है.

इसी दौरान भारतीय वायुसेना ने आक्रमण नाम की एक एक्सरसाइज शुरु कर दी. हालांकि, ये एक्सरसाइज सेंट्रल सेक्टर यानी प्रयागराज स्थित मध्य कमान कर रही थी लेकिन इससे इंडियन एयरफोर्स ने अपने इरादे साफ कर दिए थे कि एक बार फिर बालाकोट से बड़ी एयर-स्ट्राइक के लिए वायु-योद्धा अपने रफाल, सुखोई और मिराज फाइटर जेट के साथ पूरी तरह तैयार हैं.

सेना की मूवमेंट की जानकारी के प्रचार-प्रसार को लेकर मीडिया एडवाइजरी
इस बीच पाकिस्तानी सेना ने एलओसी पर युद्धविराम उल्लंघन शुरु कर दिया. भारतीय सेना भी पहलगाम हमले के बाद से भन्नाए बैठी थी. फिर क्या था, भारतीय सेना ने भी पाकिस्तानी सेना की चौकियों को  निशाना बनाना शुरु कर दिया. पहलगाम हमले को अंजाम देने के बाद पाकिस्तान ने वर्ष 2021 से एलओसी पर स्थापित शांति में खलल डाल दिया था. फरवरी 2021 में दोनों देशों के डीजीएमओ ने एलओसी पर शांति कायम करने के लिए युद्धविराम समझौता किया था.

29 अप्रैल को सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने देश की मीडिया के लिए एडवाइजरी करते हुए हिदायत दी कि सेना की मूवमेंट की जानकारी सार्वजनिक नहीं की जाए. न ही सेना के किसी ऑपरेशन को लाइव प्रसारित किया जाएगा. ऐसा इसलिए क्योंकि जम्मू कश्मीर में सेना ने आतंकियों के खिलाफ ऑपरेशन तेज कर  दिए थे.

29 अप्रैल को मोदी ने सेनाओं को दी बदला लेने की खुली छूट
29 अप्रैल को पीएम मोदी से मीटिंग में सीडीएस सहित तीनों सेना प्रमुखों ने अपना-अपना वॉर-प्लान पीएम के समक्ष रखा था. मीटिंग के तुरंत बाद खबर आई कि प्रधानमंत्री ने तीनों सेनाओं को देश का बदला अपने तरीके से लेने की खुली छूट दे दी है. पीएम मोदी ने मिलिट्री लीडरशिप को सिर्फ एक संदेश दिया था. संदेश ये कि भारत का प्रतिकार प्रभावी और निर्णायक होना चाहिए ताकि पाकिस्तान की आने वाली नस्लें भी याद रखें.

प्रधानमंत्री मोदी से दिशा-निर्देश मिलने के बाद अब ये सीडीएस सहित तीनों सेना प्रमुखों को तय करना था कि इस बार बदला कैसे लिए जाएगा. क्या सर्जिकल स्ट्राइक की तरह, थलसेना को जिम्मेदारी दी जाए या बालाकोट एयर स्ट्राइक की तरह वायुसेना को. या इस बार सबक सिखाने की जिम्मेदारी नौसेना की होनी चाहिए.

हमले करने का फैसला आखिर चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल अनिल चौहान के कंधे पर छोड़ दिया गया. देश के पहले सीडीएस जनरल बिपिन रावत के कार्यकाल के दौरान जनरल चौहान सेना के डीजीएमओ के पद पर तैनात थे. ऐसे में जनरल चौहान, पाकिस्तान की नस-नस से वाकिफ थे और बखूबी जानते थे कि पाकिस्तान को कहां ज्यादा चोट पहुंचानी जरूरी है. ऐसे चोट कि पाकिस्तानी की सेना, सरकार और आतंकी संगठन अंदर ही अंदर कराह उठे और दुनिया को खुल कर न बोल पाएं.

क्योंकि लश्कर ए तैयबा और जैश ए मोहम्मद के हेडक्वार्टर पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के मुरीदके और बहावलपुर में थे, वहां से भारतीय सेना की लोकेशन दूर थी. साथ ही पाकिस्तान के पंजाब प्रांत से सटी अंतरराष्ट्रीय सीमा का जमीन के रास्ते उल्लंघन, इंटरनेशनल कानूनों के विपरीत जा सकता था. ऐसे में फुल-स्केल वॉर का खतरा हो सकता था. इसलिए मुरीदके और बहावलपुर पर हमले की जिम्मेदारी वायुसेना को दी गई. वायुसेना को भी सख्त निर्देश थे कि पाकिस्तान की एयर-स्पेस का उल्लंघन नहीं करना है. वायुसेना के रफाल, मिराज और सुखोई फाइटर जेट की मिसाइल और प्रेसशियन बमों की रेंज इतनी है कि अपनी एयर-स्पेस से ही पाकिस्तान में जलजला आ सकता है. इसलिए स्कैल्प, हैमर, रैम्पेज और ब्रह्मोस मिसाइल और बमों का इस्तेमाल करने की इजाजत दे दी गई.

सियालकोट में हिजबुल मुजाहिदीन के आतंकी कैंप को तबाह करने की जिम्मेदारी बीएसएफ को दी गई. बाकी छह आतंकी कैंप पाकिस्तान के गैर-कानूनी कब्जे वाले कश्मीर यानी पीओके में थे, ऐसे में इन्हें बर्बाद करने की जिम्मेदारी थलसेना को दी गई. थलसेना जानती थी कि इस बार पाकिस्तानी सेना पहले से तैयार बैठी है, इसलिए जमीन के रास्ते हमला करने में जोखिम उठाना पड़ सकता है, इसलिए आर्टिलरी यानी तोपखाने की मदद ली गई. सेना की तोप और रॉकेट सिस्टम के जरिए हमला करने की रणनीति तैयार की गई.

जनरल चौहान ने नौसेना को भी हाई अलर्ट पर रखा ताकि थलसेना और वायुसेना के प्रहार से पाकिस्तान बचने की कोशिश करे या फिर जवाबी कार्रवाई करे तो समंदर के रास्ते घेराबंदी की जाए. नौसेना के एयरक्राफ्ट कैरियर आईएनएस विक्रांत और उसपर तैनात मिग-29 के लड़ाकू विमानों का मुंह कराची और ग्वादर की तरफ कर दिया गया. कैरियर बैटल ग्रुप में आईएनएस विक्रांत के साथ, कई डेस्ट्रोयर और फ्रीगेट के साथ पनडुब्बियों को भी अरब सागर में तैनात कर दिया गया.

मॉक-ड्रिल के ऐलान से गच्चा खाया पाकिस्तान

पाकिस्तान को गच्चा देने के लिए भारत ने 7 मई को देशभर में सिविल-डिफेंस मॉक-ड्रिल का ऐलान कर दिया. साथ ही वायुसेना ने भी राजस्थान में पाकिस्तान से सटी एयर-स्पेस में एक बड़ी एक्सरसाइज की घोषणा कर दी. ऐसे में पाकिस्तान को लगा कि अभी भारत का हमला नहीं होने जा रहा है. यहां तक की 6 मई की देर शाम जब पीएम मोदी एबीपी न्यूज के राइजिंग-इंडिया समिट में पहुंचे, तो पाकिस्तान पर हमले का कोई जिक्र नहीं किया. यही वजह है कि पाकिस्तान के हुक्मरान निश्चित होकर सो रहे थे या फिर स्वीमिंग-पूल में दिनभर की थकान मिटे रहे थे.  

वे 22 मिनट (रात 1.05 मिनट से 1.27 मिनट तक)

6-7 मई की रात ठीक 1.05 मिनट पर थलसेना और वायुसेना ने एक साथ पाकिस्तान के नौ (09) आतंकी ठिकानों पर जबरदस्त हमले किए. 22 अप्रैल का बदला लेने के लिए ठीक 22 मिनट तक थलसेना की तोप और वायुसेना के रफाल और सुखोई फाइटर जेट, आतंकी ठिकानों पर बरसते रहे. ठीक 1.27 मिनट पर भारत की तोप शांत हो गई और लड़ाकू विमानों ने मिसाइल दागनी बंद कर दी.

पाकिस्तान पर हमले के दौरान सीडीएस और सेना के तीनों अंगों के प्रमुख साउथ ब्लॉक स्थित वॉर-रूम से सारी कार्रवाई लाइव दे रखे थे.

रात 1.44 मिनट पर रक्षा मंत्रालय ने आधिकारिक तौर से ऑपरेशन सिंदूर की जानकारी सार्वजनिक कर दी और बताया कि पाकिस्तान के नौ आतंकी ठिकानों को बर्बाद कर दिया गया है,  जिनके तार पहलगाम हमले से जुड़े थे.

न्याय हुआ, जय हिंद
 जहां ऑपरेशन सिंदूर ने भारत की सैन्य शक्ति और आतंकवाद के खिलाफ दृढ़ रुख को प्रदर्शित किया, वहीं सशस्त्र बलों ने अपनी बात को स्पष्ट करने और प्रभावी संदेश देने के लिए थलसेना  ने रात 1.51 पर सोशल मीडिया पर ऑपरेशन सिंदूर का लोगो जारी कर जबरदस्त पोस्ट लिखी जिसपर लिखा था ‘‘पहलगाम हमला, न्याय हुआ. जय हिंद.’’

ऑपरेशन सिंदूर का लोगो जारी
पोस्ट में अंग्रेजी में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ लिखा था, जिसमें एक ‘ओ’ को कटोरी के रूप में दर्शाया गया, जिसमें सिंदूर भरा था जबकि इसके बाद वाले ‘ओ’ के आसपास सिंदूर बिखरा पड़ा था.  

ऑपरेशन के बाद भारत ने साफ किया कि हमले के दौरान पाकिस्तान में आतंकी इंफ्रास्ट्रक्चर को तबाह किया गया है और पाकिस्तानी सेना को कोई नुकसान नहीं किया गया है. पाकिस्तानी सेना ने हालांकि, आतंकी ठिकानों पर हुए हमलों का बदला लेने के लिए ऑपरेशन बुनयान अल मसरूर छेड़ दिया. पाकिस्तानी सेना ने भारत पर ड्रोन और मिसाइल से अटैक किया, लेकिन भारत ने सभी को नाकाम करते हुए ऑपरेशन सिंदूर का पार्ट-2 छेड़ दिया. 9-10 मई को भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान के 11 अलग-अलग एयरबेस पर अटैक कर भारी क्षति पहुंचाई.

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