नेपाल में राजशाही की वापसी को लेकर किए जा रहे आंदोलन की अगुवाई करने वाले दुर्गा परसाई को असम से गिरफ्तार किया गया है. नेपाल में इन दिनों राजनीतिक उथलपुथल है. पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह का आह्वान पर राजशाही की वापसी और नेपाल को हिंदू राष्ट्र घोषित किए जाने को लेकर उग्र आंदोलन चल रहा है. 28 मार्च को काठमांडू के टिंकुने इलाके में हुए हिंसक प्रदर्शन में दो लोगों की मौत हो गई और 110 से ज्यादा लोग घायल हो गए. अब इसी मामले के मुख्य आरोपी दुर्गा परसाई को नेपाल पुलिस ने भारत के असम से गिरफ्तार किया है.
असम में दुर्गा परसाई, स्थानीय पुलिस ने हिरासत में लिया, नेपाल को सौंपा
नेपाल में हिंसा भड़काने के आरोप में नेपाली नागरिक दुर्गा परसाई को असम में स्थानीय पुलिस ने हिरासत में लिया और बिना किसी आधिकारिक प्रत्यर्पण संधि के नेपाल पुलिस को सौंप दिया. नेपाल पुलिस को सौंपने के बाद परसाई को भारत-नेपाल सीमा पर स्थित झापा जिले लाया गया, जहां से औपचारिक गिरफ्तारी की गई. दरअसल नेपाल और भारत के बीच फिलहाल कोई सक्रिय प्रत्यर्पण संधि लागू नहीं है, इसलिए दुर्गा परसाई की गिरफ्तारी को सार्वजनिक रूप से साझा नहीं किया गया.
कौन है दुर्गा परसाई, जो ओली सरकार के लिए बना बड़ा सिरदर्द
नेपाल में राजशाही के लिए आंदोलन भड़काने के पीछे चर्चा में जो नाम है वो है दुर्गा परसाई. दुर्गा परसाई नेपाल की राजनीति में अच्छा दबदबा रखने वाले नेता है. परसाई एक दक्षिणपंथी राजनीतिक कार्यकर्ता और मेडिकल एंटरप्रेन्योर हैं. दुर्गा परसाई साल 2023 से लगातार नेपाल में राजनीतिक आंदोलनों में सक्रिय है. परसाई की मांग है नेपाली संविधान को बदलकर फिर से राजशाही और हिंदू राष्ट्र की स्थापना की जाए. दुर्गा परसाई बैंक का डिफॉल्टर भी है. नेपाल के 8 प्रमुख बैंकों से कुल 5.57 अरब नेपाली रुपये का लोन लिया था, जिसे अभी तक चुकाया है. दुर्गा प्रसाई कभी माओवादियों के समर्थक थे, लेकिन बाद में सीपीएन (यूएमएल) के विधान सम्मेलन में प्रतिनिधि चुने गए. दिसंबर 2021 में परसाई को पार्टी की केंद्रीय समिति के लिए नामांकित किया गया और उद्योग, व्यापार और आपूर्ति विभाग के उपप्रमुख की जिम्मेदारी सौंपी गई. लेकिन फरवरी 2023 में परसाई ने नेपाल में राजशाही की वापसी और हिंदू राष्ट्र घोषित करने की मांग उठाई तो पार्टी से निष्कासित कर दिया गया.
आंदोलन को हल्का लेना ओली सरकार को महंगा पड़ सकता है, गिर सकती है सरकार
हाल ही में नेपाल के पीएम के पी शर्मा ओली थाईलैंड के बिम्सटेक सम्मेलन में हिस्सा लेने गए थे, जहां पर उनकी द्विपक्षीय वार्ता पीएम नरेंद्र मोदी से हुई थी. नेपाल में ओली के विरोधी पुष्पकमल दाहाल प्रचंड ने बड़ा दांव खेलते हुए कांग्रेस को समर्थन देने की बात कह कर ओली की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. प्रचंड का कहना है कि नेपाल खतरे में है और वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था में कांग्रेस ही इसे बचा सकती है.कांग्रेस के समर्थन से प्रचंड और माधव नेपाल गुट ओली सरकार को गिरा सकते हैं. ऐसे में अगल ओली सरकार राजनीतिक अस्थिरता का शिकार बनेगी तो साल 2009 से अबतक 14वीं बार ऐसा मौका होगा जब नेपाल में नई सरकार बनाई जाएगी. नेपाली लोग भी इसी राजनीतिक स्थिरता का विरोध करते हुए राजशाही की वापसी के आंदोलन को समर्थन दे रहे हैं.