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दलाई लामा से मिलने आ रही हैं नैंसी पेलोसी, चीन की प्रतिक्रिया के लिए तैयार भारत

पूर्वी लद्दाख से सटी एलएसी पर चल रहे विवाद के बीच चीन को एक बार फिर से मिर्ची लगने जा रही है. क्योंकि अमेरिकी सांसद नैंसी पेलोसी दलाई लामा से मिलने जल्द भारत आने वाली है. ये वही नैंसी पेलोसी हैं जिन्होंने वर्ष 2022 में ताइवान की यात्रा कर चीन के तोते उड़ा दिए थे. तभी से ताइवान के खिलाफ चीन आक्रामक सैन्य कार्रवाई करता रहता है. 

अमेरिका की फॉरेन अफेयर्स कमेटी के मुताबिक, यूएस कांग्रेस (ससंद) का एक उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल दलाई लामा से मुलाकात के लिए अगले हफ्ते (18 जून को) भारत आ रहा है. नैंसी पेलोसी वाले अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल के दौरे की ये घोषणा ऐसे समय में हुई है जब गलवान घाटी की हिंसा (15-16 जून 2020) की चौथी वर्षगांठ है. गलवान घाटी की झड़प एक ऐसी दुखती रग है, जिसमें चीन आज तक नहीं उबर पाया है. गलवान हिंसा में हिंदुस्तान ने चीन को ऐसी टक्कर दी थी जिससे पूरी दुनिया दंग रह गई. पूरी दुनिया को समझ में आ गया कि कोई देश है जो चीन की आक्रामकता को रोक सकता है तो वो भारत है. 

गलवान घाटी की हिंसा के बाद से भारत और चीन के बीच 20 से ज्यादा बार शांति वार्ता हो चुकी है लेकिन हालात अभी भी तनावपूर्ण बने हुए हैं. मोदी सरकार के एक बार फिर सत्ता में आने से उम्मीद जताई जा रही है कि शायद कोई हल निकल आए. ऐसे में पटरी पर लौटते भारत-चीन के रिश्तों के बीच अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल के दौरे पर एक बार फिर चीन भड़क सकता है. अमेरिकी सांसद माइकल मैककॉल और नैंसी पेलोसी का ये वही प्रतिनिधिमंडल है, जिन्होंने हाल ही में ताइवान का दौरा किया था.

दलाई लामा से मिलने आ रहीं नैंसी,  फिर चीन भड़केगा ?
अमेरिकी कांग्रेस का एक उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल दलाई लामा से मुलाकात के लिए अगले हफ्ते 18 जून को भारत आएगा. इसमें अमेरिकी सदन के विदेश मामलों की समिति के अध्यक्ष माइकल मैककॉल और पूर्व सदन स्पीकर नैंसी पेलोसी भी शामिल होंगी. इस दौरान अमेरिकी अधिकारी चीन के तिब्बत को अपना हिस्सा बताने वाले दावों को भी खारिज करेंगे.

अमेरिका ने जानकारी देते हुए बताया कि “उच्च स्तरीय अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल 18 और 19 जून को धर्मशाला (हिमाचल प्रदेश) की यात्रा पर रहेगा.” हाउस फॉरेन अफ़ेयर्स कमेटी के मुताबिक, “प्रतिनिधिमंडल भारत में 14वें दलाई लामा, भारतीय सरकार के अधिकारियों और अमेरिकी व्यवसायों के प्रतिनिधियों से मुलाक़ात करेगा.” चेयरमैन मैककॉल ने कहा, “भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और संयुक्त राज्य अमेरिका का एक महत्वपूर्ण रणनीतिक साझेदार है. तिब्बती “लोकतंत्र प्रेमी लोग” हैं जो अपने धर्म का स्वतंत्र रूप से अभ्यास करना चाहते हैं.”

तिब्बत पर चीनी कब्जे के खिलाफ अमेरिका में बिल पास

इसी महीने 12 जून को अमेरिकी कांग्रेस ने तिब्बत की स्थिति और शासन के शांतिपूर्ण समाधान के लिए एक प्रस्ताव पास किया है. ‘रिजॉल्व तिब्बत एक्ट’ बिल अमेरिकी संसद के दोनों सदनों (हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स और सीनेट) में पास किया गया है. राष्ट्रपति जो बाइडेन G 7 समिट से लौटने के बाद इस बिल पर हस्ताक्षर करेंगे. अमेरिका के इस प्रस्ताव में बीजिंग से अपील की गई थी कि वो दलाई लामा से एक बार फिर बातचीत शुरू करे. साल 2002 से लेकर 2010 के बीच चीन और दलाई लामा के प्रतिनिधि के बीच नौ राउंड की बातचीत हुई. लेकिन अबतक कोई हल नहीं निकला है. उसके बाद से चीन और दलाई लामा में कोई भी औपचारिक बातचीत नहीं हुई है. 

तिब्बत के अधिकारी सिक्योंग पेनपा त्सेरिंग ने एक पोस्ट कर अमेरिकी सांसदों का को धन्यवाद दिया है. सिक्योंग पेनपा त्सेरिंग ने लिखा कि “अमेरिकी संसद में पास हुए बिल का स्वागत करता हूं. यह तिब्बत के लोगों को 70 साल से अहिंसा के रास्ते पर चलने के लिए और मजबूत बनाएगा.”

क्या है चीन-तिब्बत में विवाद?

दरअसल चीन हमेशा से तिब्बत पर दावा ठोंकता रहा है. चीन का दावा है 13वीं शताब्दी में तिब्बत चीन का हिस्सा था. तिब्बत, हालांकि चीन के दावों को बेबुनियाद बताता रहा है. साल 1912 में तिब्बत के 13वें धर्मगुरु दलाई लामा ने तिब्बत को स्वतंत्र घोषित कर दिया था. तब चीन को कोई आपत्ति नहीं थी. जब चीन में कम्युनिस्ट सरकार आ गई तो साल 1950 में चीन ने तिब्बत पर हमला कर गैर-कानूनी कब्जा कर लिया. 

चीन की विस्तारवादी नीति से हर कोई वाकिफ है. बाद में धर्मगुरु दलाई लामा पर दबाव बनाकर चीन ने संधि समझौते पर हस्ताक्षर करवा लिया. इसके बाद तिब्बत में चीन के खिलाफ विद्रोह की स्थिति हो गई. साल 1959 में लोगों ने आशंका जताई कि चीन दलाई लामा को बंधक बनाने वाला है. जिसके बाद सैनिक के वेशभूषा में बचकर तिब्बत की राजधानी ल्हासा से छिपकर दलाई लामा ने भारत से शरण मांगी. असम के तेजपुर में पहुंचे दलाई लामा को भारत ने सम्मान के साथ शरण दी. माना जाता है कि साल 1962 में चीन-भारत में हुए युद्ध की एक वजह दलाई लामा को शरण देना भी था. दलाई लामा आज भी हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में रहते हैं. धर्मशाला से ही तिब्बत की निर्वासित सरकार चलती है.

दलाई लामा से मुलाकात से क्या है अमेरिका का संदेश?

ये कोई पहला मौका नहीं है जब नैंसी पेलोसी धर्मशाला का दौरा कर रही हैं. नैंसी पेलोसी ने साल 2008 में भी धर्मशाला की यात्रा की थी. उस वक्त भी पेलोसी ने तिब्बत पर चीन के कब्जे की निंदा की थी. नैंसी के दौरे से अमेरिका, तिब्बत के साथ खुद को खड़ा हुआ दिखाना चाहता है. पर माना जा रहा है कि इस बार की नैंसी की यात्रा से चीन आग-बबूला होने वाला है. क्योंकि एक तो गलवान हिंसा के चार साल पूरा हो गए हैं. साथ ही साल 2022 में चीन की धमकियों के बीच नैंसी पेलोसी ने ताइवान का दौरा किया था. जैसे ही नैंसी का प्लेन प्लेन ताइपे के एयरपोर्ट पर उतरा था, चीन ने बौखलाहट में युद्धाभ्यास किया था. माना जा रहा है कि एक बार फिर नैंसी के भारत दौरे का चीन विरोध कर सकता है और आंखे तरेर सकता है. लेकिन भारत जल, थल और आकाश सहित साइबर और स्पेस तक में कमर कस चुका है. बेशक भारत और चीन के रिश्तों पर भी असर पड़ेगा.

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