अमेरिकी हाउस (संसद) की पूर्व स्पीकर नैन्सी पेलोसी की भारत आकर दलाई लामा से मुलाकात को लेकर चीन खिसियाकर रह गया है. दलाई लामा को ‘राजनीतिक-निर्वासित’ घोषित कर चीन ने तिब्बत को ‘घरेलू’ मामला बताकर दखलअंदाजी से मना किया है.
नई दिल्ली स्थित चीनी दूतावास ने आधिकारिक बयान जारी कर कहा है कि “दलाई लामा कोई शुद्ध धार्मिक व्यक्ति नहीं हैं, बल्कि धर्म की आड़ में चीन विरोधी अलगाववादी गतिविधियों में लगे एक राजनीतिक निर्वासित व्यक्ति हैं. हम अमेरिकी पक्ष से दलाई समूह की चीन विरोधी अलगाववादी प्रकृति को पूरी तरह से पहचानने, ज़िज़ांग (तिब्बत) से संबंधित मुद्दों पर चीन के प्रति अमेरिका द्वारा की गई प्रतिबद्धताओं का सम्मान करने, दुनिया को गलत संकेत भेजने से रोकने का आग्रह करते हैं.”
चीनी दूतावास के मुताबिक, “ज़िज़ांग प्राचीन काल से ही चीन का हिस्सा रहा है. ज़िज़ांग के मामले पूरी तरह से चीन के घरेलू मामले हैं और किसी भी बाहरी हस्तक्षेप की अनुमति कभी नहीं दी जाएगी. किसी को भी और किसी भी ताकत को चीन को नियंत्रित करने और दबाने के लिए ज़िज़ांग को अस्थिर करने का प्रयास नहीं करना चाहिए। ऐसे प्रयास कभी सफल नहीं होंगे.”
मंगलवार को नैन्सी पेलोसी और अमेरिकी संसद की फॉरेन अफेयर्स कमेटी के प्रतिनिधियों ने हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में तिब्बत की निर्वासित-संसद को संबोधित किया. इससे चीन का बौखलाना तय था. बुधवार सुबह नैन्सी की दलाई लामा से मीटिंग तय है. ये वही नैंसी पेलोसी हैं जिन्होंने वर्ष 2022 में ताइवान की यात्रा कर चीन के तोते उड़ा दिए थे. तभी से ताइवान के खिलाफ चीन आक्रामक सैन्य कार्रवाई करता रहता है. (https://x.com/Tibparliament/status/1803053316689023187).
चीन के कब्जे और फिर तिब्बत क्रांति (1959) के बाद से दलाई लामा ने भारत में शरण ले रखी है. वे तभी से धर्मशाला में रहते हैं जहां तिब्बत की ‘निर्वासित सरकार’ का प्रशासनिक कार्यालय भी है.
नैन्सी पेलोसी और दूसरे अमेरिकी सांसदों ने दलाई लामा से ऐसे समय में मुलाकात की है जब अमेरिकी संसद ‘रिजॉल्व तिब्बत एक्ट’ पारित करने जा रही है. इस एक्ट के जरिए अमेरिका, चीन पर दबाव डालकर तिब्बत मामले का बातचीत के जरिए सुलझाने का प्रयास करना चाहता है. इसमें चीन को दलाई लामा से वार्ता करने का भी सुझाव है.
हालांकि, चीन के विदेश मंत्रालय ने अमेरिका सांसदों को दलाई लामा से न मिलने का अनुरोध किया था लेकिन नैंसी पेलोसी धर्मशाला पहुंच गई. यही वजह है कि चीनी दूतावास ने कहा कि “हम अमेरिकी पक्ष से ज़िज़ांग को चीन के हिस्से के रूप में मान्यता देने और ‘ज़िज़ांग की स्वतंत्रता’ का समर्थन न करने की अपनी प्रतिबद्धताओं का पालन करने का आग्रह करते हैं. चीन अपनी संप्रभुता, सुरक्षा और विकास हितों की दृढ़ता से रक्षा के लिए दृढ़ कदम उठाएगा.”