नाटो के किसी भी सदस्य देश पर अगर कोई साइबर अटैक होता है तो क्या वो असल युद्ध में तब्दील हो सकता है. ये सवाल इसलिए क्योंकि अमेरिकी की अगुवाई में एक तरफ ‘नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन’ (नाटो) ने रुस से सटे देशों में ‘साइबर लैब’ बनानी शुरु कर दी है तो नाटो से जुड़े कमांडर्स ने इस बात का संदेश दे दिया है.
हाल ही में सिंगापुर में संपन्न हुए शांगरी-ला डायलॉग (31 मई-2 जून) में नाटो के कमांडर, लेफ्टिनेंट एडमिरल बॉब रूबअर ने सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि “साइबर अटैक के चलते युद्ध शुरु हो सकता है.” एडमिरल ने कहा कि अगर किसी “नाटो सदस्य-देश की जरूरी सेवाओं में साइबर अटैक के जरिए रुकावट पैदा की गई तो नाटो के आर्टिकल 5 के जरिए जिम्मेदार देश के खिलाफ जंग शुरु छेड़ जा सकती है.” रुबअर ने कहा कि सभी सदस्य देशों के साथ मिलकर नाटो, साइबर खतरों से निपट सकता है. नाटो एडमिरल का इशारा अपरोक्ष रुप से रुस की तरफ था. पिछले दो सालों से रुस और यूक्रेन युद्ध जारी है.
एडमिरल रूबअर का बयान ऐसे समय में आया है जब इस तरह की रिपोर्ट सामने आई थी कि रुस से सटे देशों में नाटो ‘साइबर-लैब’ खोलने जा रहा है. खुद रुस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के एक विशेष दूत और डिप्लोमेट ने आरोप लगाया था कि एस्टोनिया, लातविया, फिनलैंड और रोमानिया जैसे देशों में नाटो, साइबर लेबोरेटरी बनाने जा रहा है. ये सभी वही देश हैं जिनकी सीमाएं रुस से मिलती है या करीब हैं.
एस्टोनिया के टेलिन में पहले से ही नाटो का कोपरेटिव साइबर डिफेंस सेंटर ऑफ एक्सीलेंस पहले से ही स्थापित किया जा चुका है. इस सेंटर में साइबर एक्सपर्ट्स की ट्रेनिंग, एक्सरसाइज, रिसर्च और डेवलपमेंट किया जाता है. एस्टोनिया वही देश है जिसका हाल के दिनों में रुस के साथ बॉर्डर विवाद हुआ था (Estonia को सबक सिखाने की तैयारी में पुतिन ?).
नाटो में खुद करीब 200 साइबर एक्सपर्ट काम करते हैं जो रोजाना साइबर अटैक की घटनाओं से जूझते हैं और उनका एनालिसिस करते हैं. नाटो करीब 40 देशों के साथ साइबर सिक्योरिटी को लेकर संपर्क मे रहता है. इसके अलावा एक दर्जन से ज्यादा प्राईवेट टेक्निकल कंपनी से भी सहयोग लेता है.
माना जा रहा है कि निकट भविष्य में जॉर्जिया और मोलडोवा जैसे देशों में ही नाटो ऐसी ‘साइबर-लैब’ बनाएगा. जॉर्जिया वही देश है जिस पर वर्ष 2008 में एक बड़ा साइबर अटैक हुआ था. माना जाता है कि रुस ने ही जॉर्जिया पर साइबर अटैक किया था. इस साइबर हमले में जॉर्जिया के राष्ट्रपति और मीडिया की वेबसाइट को हैक कर रुसी न्यूज एजेंसी से जोड़ दिया गया था. इसके अलावा जॉर्जिया की संसद और नेशनल बैंक की वेबसाइट को हैक लिया गया था. इसका नतीजा ये हुआ था कि कई दिनों तक जॉर्जिया का बैंकिंग सिस्टम ठप्प पड़ गया था.
हाल ही में स्पेस-एक्स के मालिक एलन मस्क ने खुलासा किया था कि यूक्रेन के खारकीव में चल रही लड़ाई के दौरान रुस ने स्टारलिंक इंटरनेट सर्विस को जाम कर दिया है. मस्क के स्टारलिंक को ही यूक्रेनी सेना, मिलिट्री कम्युनिकेशन के तौर पर इस्तेमाल कर रही थी. स्टारलिंक की सर्विस बंद होने से यूक्रेनी सेना को कम्युनिकेशन में खासी मुश्किलें सामने आ रही हैं. इससे पहले रुस ने अमेरिकी सेना के ‘वायासैट’ कम्युनिकेशन को भी जाम कर दिया था. वायासैट को यूक्रेनी सेना इस्तेमाल कर रही थी.
नाटो के आंकड़ों की मानें तो रूस-यूक्रेन युद्ध के शुरु होने के बाद से यानी फरवरी 2022 से लेकर मई 2023 के बीच ‘1998 साइबर अटैक’ की घटनाएं सामने आई हैं. ये अटैक रशिया और यूक्रेन दोनों ही देशों में देखने को मिले. इसके अलावा दूसरे देशों में सामने इस तरह की घटनाएं सामने आई थी. इन साइबर अटैक के जरिए किसी भी देश के लिए जरुरी क्रिटिकल इंफ्रास्ट्रक्चर को निशाना बनाया गया था. लेकिन सबसे ज्यादा साइबर हमलों की घटनाएं यूक्रेन में ही देखने को मिली थी. नाटो के मुताबिक, “काइनेटिक अटैक (युद्ध) के साथ ही साइबर अटैक सामने आते हैं.” ये साइबर हमले, सामान्य जनता पर ज्यादा असर डालते हैं.
रुस का आरोप है कि एक लंबे समय से अमेरिका ने इंफॉर्मेशन डोमेन में हाइब्रिड वारफेयर छेड़ रखा है. इस हाइब्रिड वारफेयर को रुस के खिलाफ छेड़ा गया है. रुस का आरोप है कि साइबर अटैक के लिए यूक्रेन को मुख्य परीक्षण-स्थल बनाया गया है. अमेरिकी और नाटो की मदद से यूक्रेन की आईटी-आर्मी और हैकर्स ने रुस के खिलाफ इलेक्ट्रोनिक-वारफेयर छेड़ रखा है.