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नेपाल में राजशाही की वापसी पर बवाल, ओली ने लगाया भारत पर आरोप

नेपाल में राजशाही की बहाली को लेकर चल रहे प्रदर्शन के बीच प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली ने भारत पर गंभीर आरोप जड़ दिए हैं. ओली ने नेपाल में राजशाही समर्थक आंदोलन को बढ़ावा देने में भारत की भूमिका पर सवाल खड़े किए हैं. ओली ने भारत की भूमिका का पर्दाफाश करने का ऐलान किया है. ओली के आरोपों पर नेपाल के पूर्व नरेश ज्ञानेंद्र या फिर भारत के विदेश मंत्रालय की तरफ से कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है.

नेपाल के पीएम ओली के अलावा नेपाली सिविल सोसायटी ने भी भारत पर गंभीर आरोप आरोप लगाए हैं. सिविल सोसाइटी ने कहा है कि पूर्व नरेश ज्ञानेंद्र नेपाल में गद्दी पर वापस आने के लिए भारत के राजनीतिक तत्वों की पैरवी ले रहे हैं.

आपको बता दें कि नेपाल में इन दिनों उग्र प्रदर्शन चल रहे हैं. राजशाही वापसी और हिन्दू राष्ट्र के दर्जे की बहाली के लिए आंदोलन चल रहा है. इस मुहिम को जनता का समर्थन भी मिल रहा है. 

नेपाल के पूर्व राजा पर गिरफ्तारी की तलवार, पीएम ओली का बड़ा बयान

नेपाल के पीएम ओली ने कहा है कि संसद में राजशाही मुद्दे को उठाकर भारत की भूमिका का ‘पर्दाफाश’ करेंगे. बुधवार को नेपाल में संसद सत्र के दौरान ओली भारत के खिलाफ बयानबाजी कर सकते हैं. अपने नेताओं की बैठक में पीएम ओली ने पूर्व राजा ज्ञानेन्द्र शाह को गिरफ्तार करने की बात कही और यह भी कहा कि वह बुधवार को संसद में भारत की भूमिका उजागर करेंगे.

नेपाल के पूर्व राजा ज्ञानेंद्र को मिल रहा है भारत का समर्थन: नेपाल सिविल सोसाइटी

नेपाल में राजशाही को लेकर चल रहे प्रदर्शनों में भारत का नाम घसीटा गया है. नेपाल की सिविल सोसाइटी ने आरोप लगाया है कि पूर्व राजा ज्ञानेंद्र को भारत के रुढ़िवादी और कट्टर तत्वों का सपोर्ट हासिल है. नेपाल में गद्दी पर वापस आने के लिए ज्ञानेंद्र भारत के राजनीतिक तत्वों की पैरवी ले रहे हैं. इसका उद्देश्य अवसरवादियों के लाभ के लिए अराजकता फैलाना है और जिसे भारत के कट्टरपंथियों के समर्थन से अंजाम दिया जा रहा है.

नेपाल की प्रमुख पार्टी नेपाली कांग्रेस ने भी कहा है कि ज्ञानेंद्र शाह संवैधानिक सम्राट बनने के लिए योग्य नहीं हैं. सिविल सोसायटी के आठ नेताओं ने एक संयुक्त बयान में कहा, “ज्ञानेंद्र शाह का राजनीतिक सक्रियता में उतरना उनके पूर्वजों के राष्ट्र निर्माण के प्रयासों को विफल करता है और इससे देश के पड़ोसियों और दुनिया के सामने कमजोर होने का खतरा है.” 

सीएम योगी सार्वजनिक तौर पर कहते हैं कि राजशाही आनी चाहिए: नेपाल सिविल सोसाइटी

सिविल सोसाइटी ने चेतावनी दी है कि “भारत के हिंदुत्व कट्टरपंथियों के समर्थन से राजशाही में वापसी का कोई भी कदम नेपाल की संप्रभुता और स्वतंत्रता को कमजोर करता है. नेपाल में राजशाही को फिर से स्थापित करने के उद्देश्य से राजनीतिक रूप से सक्रिय हो गए हैं, जिसे हम सभी संविधान के विरुद्ध मानते हैं, जिसका उद्देश्य अवसरवादियों के लाभ के लिए अराजकता फैलाना है और जिसे भारत में धार्मिक कट्टरपंथियों के समर्थन से अंजाम दिया जा रहा है.

सोसाइटी ने आरोप उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर भी गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि “बीजेपी (भारतीय जनता पार्टी) के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ, जिन्होंने ज्ञानेंद्र की लखनऊ में कई यात्राओं की मेजबानी की है, उन्होंने सार्वजनिक रूप से नेपाल में राजशाही की वापसी की इच्छा व्यक्त की है. अगर पूर्व राजा ने राजनीति में आने के अपने लोभ पर लगाम लगाई होती और अपनी प्रतिष्ठा समझी होती तो नेपाली जनता देश के संस्थापक राजा के वंश को संविधान के बाहर राष्ट्रीय जीवन में सम्मानजनक स्थान देने के लिए सहमत हो सकती थी. लेकिन ज्ञानेंद्र की राजनीतिक सक्रियता के इस दौर ने उस संभावना को समाप्त कर दिया है.”

राजा का महल खाली करो, हमारे राजा आ रहे हैं, के लगे नारे

नेपाल में राजशाही समाप्त होने के बाद से पूर्व राजा ज्ञानेंद्र राजनीतिक तौर पर बहुत सक्रिय नहीं थे. इसी साल फरवरी में हालांकि, ज्ञानेन्द्र ने कहा था, “समय आ गया है कि हम देश की रक्षा करने और राष्ट्रीय एकता लाने की जिम्मेदारी लें.” जिसके बाद पूर्व नरेश ने कई राजनीति बयान दिए.

कुछ ही दिन पहले जब नेपाल के पूर्व नरेश ज्ञानेंद्र शाह पोखरा प्रवास से काठमांडू लौटे थे तो उनके स्वागत में एयरपोर्ट पर हजारों लोगों की भीड़ जमा हुई थी. वहां मौजूद लोगों ने “नारायणहिटी खाली गर, हाम्रो राजा आउंदै छन” के नारे लगाए, जिसका मतलब होता है, राजा का महल खाली करो, हमारे राजा आ रहे हैं. (https://x.com/NepCorres/status/1898794828160217390)

राजशाही की वापसी की कोई संभावना नहीं: शेर बहादुर देउबा  

नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष और पूर्व प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा ने कहा कि “नेपाल में राजशाही की वापसी की कोई संभावना नहीं है.” देउबा ने सुझाव दिया कि “राजशाही समर्थक राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी (आरपीपी) को पूर्व राजा को अपना अध्यक्ष बनाना चाहिए. यदि पूर्व राजा राजनीति में शामिल होना चाहते थे, तो वे अपनी पार्टी बना सकते हैं.” 

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