श्रीलंका की सत्ता संभालने के बाद राष्ट्रपति अनुरा कुमारा दिसानायके (एकेडी) ने पहली विदेश यात्रा के लिए पड़ोसी देश भारत को चुना है. एकेडी का हिंदुस्तान दौरा इस लिहाज से बेहद अहम माना जा रहा है क्योंकि उनकी विचारधारी वामपंथी है और वो चीन के करीबी माने जाते हैं.
दिसानायके, जिन्हें एकेडी के नाम से जाना जाता है, भारत दौरे का निमंत्रण खुद विदेश मंत्री एस जयशंकर ने दिया था. दिसानायके की जीत के कुछ ही दिनों बाद ही विदेश मंत्री कोलंबो दौरे पर पहुंचे थे. इस साल फरवरी में भी एकेडी भारत दौरे पर आए थे. हालांकि, तब वो श्रीलंका की सत्ता पर काबिज नहीं थे और चुनावी लड़ने की तैयारी कर रहे थे.
श्रीलंकाई राष्ट्रपति का भारत दौरा, पड़ोसियों के संबंध होंगे मजबूत
श्रीलंका के राष्ट्रपति अनुरा कुमारा दिसानायके 15 से 17 दिसंबर को भारत का दौरा करेंगे. श्रीलंका का पद संभालने के बाद दिसानायके की पहली विदेश यात्रा होगी. इस यात्रा पर राष्ट्रपति के साथ श्रीलंका के विदेश मंत्री विजिथा हेराथ और उप वित्त मंत्री अनिल जयंता फर्नांडो भी होंगे. राष्ट्रपति के भारत दौरे की घोषणा मंगलवार को की गई है. श्रीलंका के कैबिनेट प्रवक्ता नलिंदा जयथिसा ने इस यात्रा की जानकारी देते हुए कहा कि राष्ट्रपति दिसानायके अपनी यात्रा के दौरान, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से मिलेंगे.
दिसानायके को सबसे पहले विदेश मंत्री जयशंकर ने दी थी बधाई
खुद पीएम नरेंद्र मोदी ने भी एक्स पोस्ट में नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी को याद दिलाते हुए दिसानायके को बधाई दी थी.जिसके बाद दिसानायके ने कहा था कि प्रधानमंत्री मोदी आपके सहयोग और समर्थन के लिए धन्यवाद. दोनों देश में सहयोग को और मजबूद करके के लिए हम आपकी प्रतिबद्धता के साथ हैं. हमारा साथ दोनों देशों के नागरिकों और इस पूरे क्षेत्र के हित में है.
कैसी है दिसानायके की विदेश नीति, मालदीव से लेंगे सबक
श्रीलंका में नए राष्ट्रपति अनुरा कुमारा दिसानायके के सामने कई तरह की चुनौतियां हैं. वामपंथी विचारधारा वाले अनुरा वैसे तो चीन के करीबी माने जाते हैं, पर वो जानते हैं कि भारत के बिना श्रीलंका की चल नहीं सकती. चीन के बाद भारत, श्रीलंका का दूसरा सबसे बड़ा कारोबारी देश है.
पेट्रोलियम के लिए श्रीलंका बहुत हद तक भारत पर ही निर्भर है. दिसानायके की पार्टी जेवीपी परंपरागत तौर पर भारत विरोधी रही है पर दिसानायके संतुलित सोच वाले नेता हैं. एकेडी भले ही पहले भारत विरोधी हों पर श्रीलंका की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए उन्होंने भारत के साथ व्यवहार में बदला है.
दिसानायके इस बात को जानते हैं कि श्रीलंका को जब भी वित्तीय सहायता की आवश्यकता हुई तो भारत ने ही मदद की है. उदाहरण के तौर पर राजपक्षे का कार्यकाल देखा जा सकता है. राजपक्षे सरकार चीन की ओर झुकी हुई थी पर जब श्रीलंका पर आर्थिक संकट आया तो चीन ने नहीं बल्कि भारत ने मदद की थी.
ऐसे में दिसानायके की विदेश नीति भारत और चीन दोनों के साथ ही संतुलित रखने वाली होगी, क्योंकि हिंद प्रशांत क्षेत्र में भारत और चीन दोनों को ही श्रीलंका नजरअंदाज नहीं कर सकता है. दिसानायके मालदीव से भी सबक ले सकते हैं.
मालदीव में जब पिछले साल मोहम्मद मुइज्जू की सरकार आई तो वो पूरी तरह से चीन के पक्ष में थे. राष्ट्रपति मुइज्जू को तो नारा ही ‘इंडिया आउट’ था. सत्ता में आने के बाद परंपरा तोड़ते हुए मुइज्जू ने भारत को दरकिनार करने की कोशिश की थी.
चीन और तुर्किए से करीबी बढ़ाई पर कुछ महीनों में ही राष्ट्रपति मुइज्जू को अपना नजरिया बदलना पड़ा. मुइज्जू को अपनी गलती का एहसास हुआ तो ना सिर्फ वो भारत के दौरे पर आए बल्कि अब भारत और मालदीव के संबंधों में बेपटरी पर हुए रिश्ते भी पटरी पर लौट आए हैं.
ऐसे में माना जा रहा है कि श्रीलंका के राष्ट्रपति दिसानायके अपनी सोच को बदलते हुए भारत के साथ संबंध मजबूत करने के लिए दौरे पर आ रहे हैं.