रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने की दिशा में सरकार, प्राइवेट कंपनियों को देश में ही गोला-बारूद बनाने के लिए प्रोत्साहन दे रही है. लेकिन पुरानी रक्षा खरीद नियमावली से इसमें अड़चन आ रही थी. क्योंकि पुराने नियमों के तहत सेना (थलसेना, वायुसेना और नौसेना), निजी कंपनियों से सीधे आर्म्स एंड एम्युनिशन नहीं खरीद सकते थे. जबकि हाल के वर्षों में गोला-बारूद और दूसरा आयुध बनाने में अडानी डिफेंस और दूसरी प्राइवेट कंपनियां बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रही हैं. यही वजह है कि रक्षा मंत्रालय ने इस नियम में संशोधन किया है.
गुरुवार को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने राजधानी दिल्ली स्थित साउथ ब्लॉक में आयोजित एक समारोह में रक्षा खरीद नियमावली (डीपीएम) 2025 का विमोचन किया, जो 1 नवंबर, 2025 से प्रभावी होगी. यह नई खरीद नियमावली तीनों सेनाओं और रक्षा मंत्रालय (एमओडी) के अंतर्गत आने वाले अन्य प्रतिष्ठानों द्वारा लगभग 1 (एक) लाख करोड़ रुपये मूल्य की खरीद (राजस्व खरीद) को सुगम बनाएगी.
नियमावली में संशोधन के लिए रक्षा मंत्रालय और एकीकृत रक्षा स्टाफ मुख्यालय के प्रयासों की सराहना करते हुए, रक्षा मंत्री ने विश्वास व्यक्त किया कि नई नियमावली प्रक्रियाओं को सरल बनाएगी, कार्यप्रणाली में एकरूपता लाएगी और सशस्त्र बलों को संचालन संबंधी तैयारियों के लिए आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं को उपलब्ध कराने में सहायक होगी.यह रक्षा विनिर्माण और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में एमएसएमई और स्टार्टअप उद्योग को अधिक अवसर प्रदान करेगीं, जिससे खरीद में निष्पक्षता, पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित होगी.
रक्षा मंत्रालय के मुताबिक, नई पॉलिसी में निर्णय प्रक्रिया में तेजी लाने और कारोबारी सुगमता को बढ़ावा देने के लिए कुछ प्रमुख प्रावधानों में बदलाव किया गया है. सामग्री और सेवाओं की देरी से डिलीवरी पर लगाई जाने वाली क्षतिपूर्ति (एलडी) के भुगतान में ढील दी गई है और केवल अत्यधिक देरी के मामलों में ही अधिकतम 10 प्रतिशत एलडी प्रभावी होगी.
स्वदेशीकरण के मामले में इस प्रावधान में और ढील दी गई है, जहां अन्य मामलों में लागू 0.5 प्रतिशत प्रति सप्ताह के बजाय केवल 0.1 प्रतिशत एलडी प्रति सप्ताह लगाया जाएगा.
इस समारोह में चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ, नौसेना प्रमुख, थल सेनाध्यक्ष, रक्षा सचिव, रक्षा विभाग (आर एंड डी) के सचिव और डीआरडीओ के अध्यक्ष, सचिव (रक्षा उत्पादन), सचिव (पूर्व-सैनिक कल्याण), वित्तीय सलाहकार (रक्षा सेवाएं), वायु सेना उप प्रमुख, रक्षा लेखा महानियंत्रक, पूर्व-सैनिक कल्याण विभाग के विशेष कार्य अधिकारी और अन्य वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे.
डीआरडीओ की नौसेना विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी प्रयोगशाला द्वारा स्वदेशी रूप से विकसित एएलडब्ल्यूटी का आगमन पारंपरिक, परमाणु और छोटी पनडुब्बियों को निशाना बनाने में सक्षम है. 30 मिमी एनएसजी की खरीद से भारतीय नौसेना और भारतीय तटरक्षक बल की कम तीव्रता वाले समुद्री अभियानों और समुद्री डकैती विरोधी भूमिकाओं को निभाने की क्षमता में वृद्धि होगी.
डीएसी ने भारतीय वायु सेना के लिए, सहयोगी लंबी दूरी की लक्ष्य संतृप्ति-विनाश प्रणाली (सीएलआरटीएस-डीएस) और अन्य प्रस्तावों के लिए एओएन प्रदान किया है. सीएलआरटीएस-डीएस, एक तरह के कॉम्बैट ड्रोन हैं जो मिशन क्षेत्र में स्वचालित टेक-ऑफ, लैंडिंग, नेविगेशन, पता लगाने और पेलोड पहुंचाने की क्षमता रखते हैं.