ऑपरेशन सिंदूर में भारत के हाथों मुंह की खाने वाला पाकिस्तान सुधरना का नाम नहीं ले रहा है. नौ (09) आतंकी ठिकानों और 11-11 एयरबेस तबाह होने के बाद भी पाकिस्तान का फेल्ड (फील्ड) मार्शल असीम मुनीर, जम्मू कश्मीर को लेकर भारत के खिलाफ जहर उगल रहा है. कश्मीर में सक्रिय आतंकियों को शहीद का दर्जा देने वाले मुनीर से पीओके संभल नहीं रहा है लेकिन लार कश्मीर पर टपक रही है.
टीएफए को मिली एक्सक्लूसिव जानकारी के मुताबिक, कर्ज में गले तक डूबी पाकिस्तानी सरकार अब गैरकानूनी कब्जे वाले कश्मीर यानी पीओके की संपत्ति ही बेचनी में जुट गई है. हाल के वर्षों में पाकिस्तान की सरकार ने पीओके की संपत्तियों को बेचना शुरु कर दिया है.
पीओके की ये संपत्तियां पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के लाहौर, सियालकोट, रावलपिंडी और खैबर पख्तूनख्वा में बेची गई हैं. जानकारी के मुताबिक, इन संपत्तियों को पाकिस्तान ने अपने कर्ज चुकाने के लिए बेचा है.
टीएफए को लाहौर के लैंड एडमिनस्ट्रेटर से मिले रिकॉर्ड के मुताबिक, जिन संपत्तियों को 1961 के बाद से पाकिस्तान की सरकार ने बेच दिया है, उनमें:
- लाहौर की हवेली दयाल सिंह, कश्मीर हाउस, लुंडा बाजार और पूंछ हाउस शामिल हैं.
- रावलपिंडी का राजा बाजार, पूंछ हाउस और सराय खुर्द
- सियालकोट की सराय महाराज इमारत
- झेलम का फॉरेस्ट गेस्ट हाउस और
- कहुटा का सराय महाराज शामिल है.
- इतना ही नहीं पाकिस्तानी की लालची सरकार ने पंजाब प्रांत के शेखपुरा जिले के दो (02) गांवों को भी बेच दिया है. इन दोनों गांव की मिलकियत भी कभी पीओके की रियासत के पास थी.
14 संपत्तियों को पाकिस्तानी सरकार ने बेचा अपने करीबियों को
पिछले छह दशक में पाकिस्तान की सरकार ने एक-एक कर पीओके की 35 ऐसी संपत्तियों को बेच डाला है, जिनका रिकॉर्ड लाहौर लैंड एडमिनिस्ट्रेटर ऑफिस में दर्ज है. पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के अलावा खैबर पख्तूनख्वा में भी इसी तरह से पीओके की संपत्तियों को बेचा गया है. यानी ये लिस्ट और लंबी हो सकती है. खबर तो ये भी है कि इन 35 में से कम से कम 14 संपत्तियों को पाकिस्तानी सरकार ने अपने कुछ गिने चुने नुमाइंदों को बेचा है.
दरअसल, बंटवारे से पहले जम्मू कश्मीर रियासत की संपत्ति पाकिस्तान के लाहौर, सियालकोट, रावलपिंडी, झेलम, शेखपुरा और खैबर पख्तूनख्वा तक फैली हुई थी. 1947-48 के युद्ध के दौरान पाकिस्तान के कब्जे में जम्मू कश्मीर का 73 हजार वर्ग किलोमीटर का इलाका चला गया था. जम्मू कश्मीर के इसी हिस्से को पाकिस्तान के कब्जे वाला कश्मीर यानी पाकिस्तान के गैर-कानूनी कब्जे वाला पीओके कहलाता है.
1961 में पाकिस्तानी सरकार ने पीओके की संपत्तियों को देखरेख के लिए लिया था अपने कब्जे में
वर्ष 1961 में पाकिस्तान ने एक ऑर्डनेंस के जरिए पीओके की संपत्तियों को अपने अधीन कर लिया ताकि इनका रखरखाव ठीक प्रकार से किया जा सके. पीओके की सरकार को इन संपत्तियों से बेदखल कर दिया गया. लेकिन देख-रेख की आड़ में पाकिस्तानी सरकार ने पीओके की संपत्तियों को बेचना शुरु कर दिया.
अकेले पंजाब प्रांत में पाकिस्तानी सरकार ने 58.5 एकड़ शहरी जमीन और 452 एकड़ गांव की जमीन बेच दी है. इनमें से कई इमारतें पुरातत्व महत्व और हेरिटेज बिल्डिंग हैं. इस संपत्ति की कुल कीमत का ब्यौरा अभी तक सामने नहीं आया है.
पीओके संभल नहीं रहा, जम्मू कश्मीर पर गिद्ध की निगाहें गड़ाए मुनीर
साफ है कि पाकिस्तान से गैर-कानूनी कब्जे वाला पीओके नहीं संभल रहा है. लेकिन गिद्ध की तरह पाकिस्तान के जनरल और फेल्ड मार्शल भारत के अभिन्न हिस्से जम्मू कश्मीर पर नजर गड़ाए रहते हैं. फिर इसके लिए भले ही लश्कर ए तैयबा, जैश ए मोहम्मद और हिजबुल मुजाहिद्दीन जैसे आतंकी संगठनों के जरिए भारत में जिहाद के नाम पर प्रॉक्सी वॉर छेड़ा जाए. बंटवारे और धर्म के नाम पर पहलगाम जैसे नरसंहार की साजिश रचकर मासूम लोगों की जान ले ली जाए.
कर्ज की मार से जूझ रहा पाकिस्तान
माना जा रहा है कि पाकिस्तानी सरकार ने बढ़ते कर्ज को चुकाने के लिए पीओके की संपत्तियों को बेचा है. या फिर जम्मू कश्मीर में आतंकियों की फंडिंग के लिए ये खरीद-फरोख्त की गई है. क्योंकि भले ही पाकिस्तान पर 63 ट्रिलियन ( 224 बिलियन डॉलर) का कर्ज है लेकिन भारत के खिलाफ छद्म-युद्ध नहीं छोड़ना चाहता.
पाकिस्तान का इस वर्ष का आम बजट करीब 15.73 ट्रिलियन का है, जिसमें से 46 प्रतिशत तो कर्ज चुकाने के लिए रखा गया है. ऐसे में टेरर फंडिंग के लिए भी पाकिस्तानी की सेना और सरकार इन संपत्तियों को बेच सकती है. हद तो ये है कि पीओके की सरकार को इन संपत्तियों को बेचे जाने की कानो कान खबर नहीं है.