किसी भी देश के आम नागरिकों को आज बिजली, पानी, सड़क और राशन इत्यादि के साथ-साथ चुनाव के वक्त राष्ट्रीय सुरक्षा को भी ध्यान में रखकर वोट देना चाहिए. ऐसी किसी भी विषम परिस्थिति यानी जब मत्स्य न्याय जैसे हालत देश पर पड़े तो नेता तर्कसंगत, न्याय और विवेक के साथ कैसा निर्णय ले सकता है. उसके सिपहसालारों और मिलिट्री कमांडर को क्या रणनीतिक और सामरिक सलाह देनी चाहिए. कैसे इस संकट की घड़ी से देश को उबार सकता है. सब गहन सोच का विषय है.
ट्रंप और जेलेंस्की की खुलेआम भिड़ंत से पूरी दुनिया सन्न
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की के बीच भिड़ंत को आज दुनिया देख रही है. तीन साल पहले एक शक्तिशाली देश ने छोटे (कमजोर) देश के खिलाफ जंग छेड़ दी.
कमजोर देश के राष्ट्रपति ने दूसरे देशों की मदद (उकसावे) पर युद्ध शुरू कर दिया. जिस देश से सबसे ज्यादा मदद मिल रही थी, उसने पाला बदल लिया है और समर्थन से हाथ खींच लिया है. जिस छोटे देश के राष्ट्रपति को तीन साल पहले एक बहादुर कमांडर के तौर पर पेश किया गया, आज उसका पूरा देश बर्बाद हो चुका है, लाखों लोग मारे जा चुके हैं. नुकसान, पावरफुल देश को भी हुआ है.
ट्रंप का फैसला तर्कसंगत या जेलेंस्की है रियल हीरो
ऐसे में ये तय कर पाना मुश्किल होता है, कि कौन सही है और कौन गलत. राष्ट्र का सम्मान सर्वोपरि है या देशवासियों का हित. देश की कमान संभालने वाले नेताओं की गलती का खामियाजा क्या देशवासियों को उठाना चाहिए. इन सभी सवालों के जवाब देने के लिए एक साल पहले हमने एक पहल शुरू की. पहल, आम नागरिकों को राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी जानकारी के साथ-साथ नेशनल सिक्योरिटी की समझ पैदा करने की.
टीएफए का मिशन
किसी भी देश की राष्ट्र सुरक्षा से जुड़ी है जियो-पॉलिटिक्स. इन दोनों विषयों को ध्यान में रखकर ही हमने अपनी वेब-पोर्टल ‘द फाइनल असॉल्ट’ शुरू की थी ताकि बेहद आसान शब्द और सरल भाषा के साथ रक्षा-सुरक्षा, युद्ध, मिलिट्री टेक और जियोपॉलिटिक्स पर उपयोगी जानकारी साझा की जा सके.
वेबसाइट के साथ-साथ इन दोनों विषयों पर हम अपना डेली ई-बुलेटिन भी निकालते हैं.
सिकंदर ने पोरस से की थी लड़ाई, तो मैं क्या करूं
हम नहीं चाहते कि जैसे हालात हमारे देश के सामने 2500 साल पहले थे, ऐसे फिर से कभी आएं (ऐसे उदाहरण हमें अपने देश के इतिहास में 1962 तक देखने को मिल जाते हैं)
जब सिकंदर ने देश पर आक्रमण किया और जंग के मैदान में हमारे सैनिक बहादुरी से मुकाबला कर रहे थे, तो बेहद करीब में ही हमारे देश के किसान खेत में हल जोत रहे थे. उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ा कि कौन जीत रहा है, कौन हार रहा है. क्या अपने सैनिकों को किसी मदद की जरूरत है या नहीं.
आज, किसान से कहना का मतलब है सिर्फ खेती करने वाले ही नहीं, सभी देशवासी हैं. क्या, ऐसे हालात आज सामने आएं तो क्या देशवासियों को मुंह मोड़ लेना चाहिए, कि जंग लड़ने का काम सैनिकों का है.
सेकेंड इन कमांड इज द बेस्ट
आज, कुछ लोग जेलेंस्की का समर्थन करेंगे, कुछ ट्रंप या फिर उनके सेकेंड इन कमांड, जेडी वेंस का या फिर रूस और पुतिन की नीतियों को सही ठहराएंगे. ऐसे में भारत सहित किसी भी देश के नागरिकों को बेहद नीतिगत तरीके से विचार करने की जरूरत होती है.