By Shalini Dwivedi
जहां डाल-डाल पर सोने की चिड़िया करती है बसेरा, वो भारत देश है मेरा…मेरा रंग दे बसंती चोला…कर चले हम फिदा…
भारतीय सिनेमा, विशेषकर हिंदी फ़िल्मों का इतिहास केवल कहानियों और नाटकीय प्रस्तुति तक सीमित नहीं है. यह देश की सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक यात्रा का दर्पण भी है. गीत-संगीत और गानें, हिंदी फ़िल्मों की आत्मा माने जाते हैं, और इनमें भावनाओं को संप्रेषित करने की अद्वितीय शक्ति होती है. भारतीय फिल्म संगीत के इन्हीं गीतों ने समय-समय पर राष्ट्र के जनमानस को नई दिशा और ऊर्जा दी है.
देशभक्ति गीत केवल भावुकता या गौरव का संचार नहीं करते, बल्कि यह एक सामाजिक और ऐतिहासिक दस्तावेज़ की तरह भी काम करते हैं. स्वतंत्रता-पूर्व के दौर में ये गीत लोगों को अंग्रेज़ी हुकूमत के विरुद्ध जागरूक और संगठित करने का माध्यम बने. कई बार प्रत्यक्ष संदेश के रूप में, तो कई बार प्रतीकों और रूपकों के ज़रिये, इन गीतों ने लोगों में आज़ादी की आग जगाई.
“वन्दे मातरम्” और “कदम कदम बढ़ाए जा” जैसे गीत आंदोलनकारियों के लिए घोषणापत्र की तरह गाए जाते थे. ”जय जय भारत महान” द्वारा अपने देश के प्रति भक्ति भाव जगाया गया तो “दो हाथ बढ़ा दो भाई” ने कर्तव्यबोध कराया. “मेरा रंग दे बसंती चोला” ने हम सबको त्याग के केसरिया रंग में सराबोर कर दिया.
स्वतंत्रता के बाद, इन गीतों ने राष्ट्र के पुनर्निर्माण, एकता और विकास की भावना को आगे बढ़ाया. 1950 और 1960 के दशक के गीतों ने स्वतंत्रता की कीमत, बलिदान और देश के प्रति कर्तव्य को रेखांकित किया. 1980 और 1990 के दशक में गीतों ने सैनिकों और उनके परिवारों के भावनात्मक पक्ष को भी उभारा, जिससे देशभक्ति का स्वर अधिक मानवीय और संवेदनशील हो गया. सभी ने “ए मेरे प्यारे वतन” (फिल्म काबुलीवाला, वर्ष 1961) सुना ही है, और “कर चले हम फ़िदा जान-ए-तन साथियों” (हकीकत, 1964) तथा “ए वतन, ए वतन, हमको तेरी क़सम” (शहीद, 1965) कौन भूल सकता है. भारत एवं चीन युद्ध के बाद, कवि प्रदीप द्वारा लिखा स्वतंत्र गीत, “ए मेरे वतन के लोगों” (हकीकत, 1964) तो आज भी आँखों में आंसू ला देता है.
21वीं सदी में, देशभक्ति गीतों ने एक नया रूप लिया. आज यह केवल युद्ध या ऐतिहासिक संघर्ष तक सीमित नहीं हैं, बल्कि इनमें सामाजिक जिम्मेदारी, सक्रिय नागरिकता, भ्रष्टाचार के विरोध, और सकारात्मक बदलाव की प्रेरणा भी शामिल है. इसी क्रम में “दिल दिया है, जान भी देंगे” (कर्मा, 1986) लिखा गया.
आमिर खान की रंग दे बसंती (2006) और सर्जिकल स्ट्राइक पर बनी उरी (2019) या संदेशें आते हैं (बॉर्डर, 1997), जैसी फ़िल्मों के गीत युवा पीढ़ी को यह संदेश देते हैं कि देशभक्ति का अर्थ केवल सीमाओं पर लड़ना नहीं, बल्कि अपने क्षेत्र, समाज और देश के लिए कुछ सार्थक करना भी है.
इस प्रकार, देशभक्ति गीतों का सफ़र स्वतंत्रता संग्राम की जोशीली धुनों से लेकर 2020 के प्रेरणादायक और आधुनिक संगीत तक, भारत के इतिहास, भावनाओं और आकांक्षाओं का एक जीवंत संकलन है.
देशभक्ति गीतों का विकास भारत की सामाजिक और राजनीतिक यात्रा का प्रतिबिंब है. स्वतंत्रता-पूर्व में यह गीत संघर्ष और प्रेरणा के प्रतीक थे, स्वतंत्रता के बाद यह राष्ट्रनिर्माण के संदेशवाहक बने, और आज वे एक जागरूक, सक्रिय और प्रगतिशील नागरिक की भूमिका को उजागर करते हैं.
जय हिंद!
[लेखिका शालिनी द्विवेदी क्लीनिकल रिसर्च के क्षेत्र में काम करती हैं. साहित्य में रुचि के कारण, कविताएं और ब्लॉग भी लिखती हैं. शालिनी द्विवेदी की कई रचनाएं अलग-अलग पुस्तकों में प्रकाशित हैं.]