July 7, 2024
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रामायण में कैसे हुआ था R&AW जैसा ऑपरेशन (TFA Special पार्ट-2)

आज की भारतीय सेना भगवान राम को अपना केवल आदर्श ही नहीं मानती है बल्कि उनके द्वारा अपनाई गई युद्ध-नीति को भी अपनाती है. रामायण के अनुसार, जब भगवान राम को जब ये पता चल गया कि रावण माता सीता का हरण कर लंका की तरफ ले गया है. तो भगवान राम ने सीधे लंका पर आक्रमण नहीं किया था. बल्कि सेना से पहले चुपचाप हनुमान जी को वहां भेजा था. ये ठीक वैसे ही है जैसा आजकल सेनाएं इंटेलिजेंस-गैदरिंग करती हैं. 

दुश्मन की सीमा में दाखिल होने से पहले दुश्मन के इलाके और उसकी ताकत से पूरी तरह वाकिफ होना बेहद जरूरी होता है. बिना खुफिया जानकारी के किसी दूसरे देश पर हमला करना कभी कभी भारी पड़ सकता है और आपको खुद बड़ा नुकसान उठाना पड़ जाता है. 

भगवान राम ने अपनी अंगूठी तक निशानी के तौर पर माता सीता के लिए भेजी थी. हनुमान जी ने आसमान में एक छलांग में ही समंदर पार कर आज के रामेश्वरम से लंका पहुंच गए थे. ये एक संदेश तो था माता सीता के लिए कि उनके राम लंका पर आक्रमण कर जल्द उन्हें यहां से ले जाने आ रहे हैं. तब तक वे धैर्य बनाए रखें. हनुमान जी ने ठीक वैसा ही किया. इसके साथ ही असल युद्ध से पहले दुश्मन यानी रावण और रावण की लंका की सुरक्षा और ताकत को भी परखना था (https://youtu.be/cfyi8SIPOa0?si=CQKTQBJ2_6n3N91b). 

हनुमान जी ने भगवान राम की दी हुई अंगूठी भी सीता जी को दी और उसके साथ ही रावण के भाई विभीषण को भी पहचान लिया कि वो भगवान राम के सेवक हैं. विभीषण अपने भाई रावण का साथ ना देकर युद्ध के दौरान भगवान राम का साथ देगा. ये युद्ध के दौरान भगवान राम के पास एक बड़ी ताकत थी. क्योंकि युद्ध के दौरान विभीषण ही जानता था कि रावण का वध कैसे किया जा सकता है. 

युद्ध से पहले लंका पहुंचकर  हनुमान जी ने लंका में आग लगाकर रावण को युद्ध से पहले ही एक बड़ा शॉक दे दिया, जो रणनीति का एक बड़ा हिस्सा होता है. युद्ध से पहले दुश्मन की ताकत को थिन कर देना यानी कम कर देना.

1971 के युद्ध के दौरान  उस वक्त के थलसेना प्रमुख जनरल सैम मानेकशॉ ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को साफ कह दिया था कि वे तुरंत पूर्वी पाकिस्तान पर आक्रमण नहीं कर सकते हैं. उन्हें थोड़ा वक्त चाहिए ताकि बरसात का मौसम निकल जाए और तब तक देश की सबसे बड़ी खुफिया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) पूर्वी पाकिस्तान में मुक्ति-वाहनी को खड़ा कर सके. ये मुक्ति-वाहनी उन युवाओं को मिलाकर खड़ी की गई थी जो पाकिस्तानी सेना के अत्याचार से त्रस्त हो चुके थे और पाकिस्तान से मुक्ति चाहते थे. यानी अलग बांग्लादेश बनाना चाहते थे. 

रॉ और भारतीय सेना ने मुक्ति-वाहनी के सदस्यों को मिलिट्री ट्रेनिंग दी और जब दिसंबर के महीने में भारत और पाकिस्तान के बीच असल युद्ध छिड़ी तब इन युवाओं ने पाकिस्तानी सेना को जबरदस्त नुकसान पहुंचाया. यहां तक की पूर्वी पाकिस्तानी में तैनात पाकिस्तानी नौसेना में कोई नौसैनिक नहीं बचा था. अधिकतर बांग्लादेशी नौसैनिक पाकिस्तानी नौसेना को छोड़कर मुक्ति वाहनी के साथ जुड़ गए थे. ऐसे में पाकिस्तानी सेना ने मात्र 13 दिनों के भीतर ही भारतीय सेना के सामने अपने हथियार डाल दिए और 93 हजार पाकिस्तानी सैनिकों ने जनरल नियाजी के साथ भारत के सामने सरेंडर कर दिया. 

आज भी अगर कोई सेना दुश्मन देश की सीमा में जाकर आक्रमण करती है तो पहले उस देश की खुफिया जानकारी इकट्ठा करती है. इसके लिए गुप्तचर भेष बदलकर चुपचाप उस देश में दाखिल होते हैं और फिर वहां से सीक्रेट जानकारी इकट्ठा करते हैं. इस तरह की इंटेलिजेंस को ह्यूमन-इन्ट यानी ह्यूमन इंटेलिजेंस के नाम से जाना जाता है. इसके अलावा आज के समय में ड्रोन, यूएवी और टोही विमानों के जरिए भी बॉर्डर इलाकों की जानकारी इकठ्ठा की जाती है. इसमें दुश्मन देश के सैनिकों का कम्युनिकेशन, बातचीत और सैन्य ठिकानों की लोकेशन इत्यादि शामिल होता है. इस तरह की इंफॉर्मेशन को इल-इन्ट यानी इलेक्ट्रोनिक इंटेलिजेंस का नाम दिया जाता है. 

इस सीरीज की पहली स्टोरी में हमने आपको बताया था कि किस तरह आज की आधुनिक भारतीय सेना अपनी उत्पत्ति रामायण काल से मानती है (राम की सेना ही है Indian Army ! (TFA Special Part-1) आगे भी हम आपको बताते रहेंगे कि किस तरह रामायण की वॉर-टैक्टिक्स को भारतीय सेना सीख रही है. 

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