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दुश्मन में साइकोलॉजिकल खौफ पैदा करते Sniper, मित्र-शक्ति एक्सरसाइज में दिखाया इंगेजमेंट

एलओसी हो या फिर काउंटर टेररिज्म ऑपरेशन या फिर जंगल वारफेयर, सभी तरह के मिशन में स्नाइपर किसी भी सेना के लिए ‘फोर्स मल्टीप्लायर’ की भूमिका अदा करते हैं. यही वजह है कि इनदिनों श्रीलंका के साथ चल रही साझा मिलिट्री एक्सरसाइज ‘मित्र-शक्ति’ में भारतीय सेना ने अपने स्नाइपर्स को भी वार-गेम में उतारा है.

भारतीय सेना के मुताबिक, मित्र-शक्ति में भारतीय सैनिकों की दो महत्वपूर्ण स्नाइपर राइफल इस्तेमाल की गई हैं. पहली है रूस की 7.62एमएम वाली ‘ड्रैगनोव’ और दूसरी है फिनलैंड की 8.68एमएम वाली ‘साको’. श्रीलंका की सेना इंग्लैंड की एआईएडब्लू यानी ‘एक्यूरेसी इंटरनेशनल आर्टिक वारफेयर’ राइफल इस्तेमाल कर रही है.

एक्सरसाइज के दौरा, दोनों देशों की सैन्य टुकड़ियों ने बिल्ट-अप एरिया मे हिस्सा लिया. इसके तहत दोनों देशों के स्नाइपर्स अपनी-अपनी स्नाइपर राइफल्स के साथ ऊंचाई वाले इलाकों पर जाकर कब्जा किया और फिर पूरे इलाके को स्कैन करने के बाद स्नाइपर ग्रिड तैयार किया. इसके बाद स्नाइपर ने अटैकिंग-कॉल्मस के लिए रास्ता तैयार किया.

मित्र-शक्ति एक्सरसाइज में हिस्सा लेने वाले भारतीय सेना के एक अधिकारी ने बताया कि स्नाइपर अपने आप में एक अहम ‘हथियार’ है. ऐसे में एक स्नाइपर अपनी (स्नाइपर) राइफल के साथ एक ‘पोटेंट-वेपन सिस्टम’ है.

ऑफिसर ने बताया कि अर्बन वारफेयर में तो स्नाइपर्स का खासा महत्व है और किसी भी कमांडर के लिए शहरी-क्षेत्र में ऑपरेशन करने में खासी मदद करते हैं. ऑफिसर के मुताबिक, एक स्नाइपर महज टारगेट को ही इंगेज नहीं करता है बल्कि “दुश्मन के जेहन में मनोवैज्ञानिक खौफ भी पैदा करता है.” (https://x.com/FinalAssault23/status/1825435936164893121)

ऑफिसर ने बताया कि स्नाइपर्स की भूमिका आज के बदले ही रणक्षेत्र में बेहद अहम है. ऐसे में एक्सरसाइज के दौरान स्नाइपर्स का खास तौर से इस्तेमाल किया गया.

भारतीय सेना, एक लंबे से रूसी  ड्रैगनोव  स्नाइपर राइफल (डीएसआर) इस्तेमाल कर रही है. डीएसआर के नाम से मशूहर, ड्रैगनोव राइफल को रूस (सोवियत संघ) ने 50 के दशक में तैयार किया था. 90 के दशक में भारतीय सेना ने इन रूसी स्नाइपर राइफल को इस्तेमाल करना शुरु किया था. लेकिन अब ये थोड़ी पुरानी हो चली है और रिफिट की जरूरत पड़ी थी. बेगलुरू की एसएसएस-डिफेंस कंपनी ने डैगुनोव को अपग्रेड किया है.

वर्ष 2021 में युद्धविराम समझौते से पहले नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर भारतीय सेना ने पाकिस्तानी स्नाइपर्स की करतूतों का मुंहतोड़ जवाब दिया था. उस दौरान भारतीय सेना रूसी ड्रैगनोव का ही इस्तेमाल करती थी.

वर्ष 2020 में चीन के साथ हुई गलवान घाटी की झड़प के बाद भारतीय सेना ने नई स्नाइपर राइफल की खोज शुरु की. ये खोज जाकर खत्म हुई फिनलैंड की साको स्नाइपर राइफल पर जाकर. दो साल बाद यानी वर्ष 2022 में साको-टीआरजी 42 राइफल को सेना में शामिल किया गया. इसकी रेंज 800 मीटर से दो किलोमीटर तक है.