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जेलेंस्की को लेकर भारत पर था दबाव, जी-20 में पश्चिमी देश चाहते थे बुलाना

भारत में हुई जी 20 की बैठक में जेलेंस्की को बुलाने और उनके संबोधन को लेकर भारत पर डाला गया था जबरदस्त दबाव. लेकिन भारत कैसे इस दुविधा से बाहर निकला, ये खुलासा किया है नीति आयोग के पूर्व सीईओ और जी-20 के शेरपा अमिताभ कांत ने अपनी पुस्तक में.

अमिताभ कांत ने अपनी बुक ‘हाउ इंडिया स्केल्ड माउंट जी- 20: द इनसाइड स्टोरी ऑफ जी-20 प्रेसीडेंसी’ में ऐसे किस्से बताए गए हैं जो रोमांचित कर देने वाले हैं. अमिताभ कांत ने अपनी पुस्तक में बताया है कि जी-7 देशों ने भारत पर यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की को आमंत्रित करने के लिए दबाव डाला था, जबकि रूस ने जेलेंस्की के लिए प्रतिबंध शब्द को शामिल करने पर जोर दिया था.

भारत दुविधा में पड़ गया कि जी-7 देशों का साथ दे या अपने परम मित्र रूस को नाराज करे. क्या तोड़ निकला, इस बात का खुलासा अमिताभ कांत ने किया है. कांत की पुस्तक की प्रस्तावना विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने लिखी है.

जी 20 में जेलेंस्की को आमंत्रित करने का दबाव बनाया गया था: अमिताभ कांत

अमिताभ कांत ने खुलासा किया कि घोषणा पत्र पर सभी देशों की सहमति बनाना सबसे मुश्किल काम था. यूक्रेन मुद्दे को लेकर दिल्ली घोषणा-पत्र पर आम सहमति का मामला अटका हुआ था. रूस प्रतिबंध शब्द शामिल करने पर जोर दे रहा था. इसे लेकर उन्होंने ढाई घंटे तक रूसी संघ के विदेश मामलों के उप मंत्री अलेक्जेंडर पैनकिन के साथ बातचीत की. इस दौरान उनको अपने प्रस्ताव पर दोबारा विचार करने के लिए राजी किया.

कांत के मुताबिक, रूस का दांव बहुत ऊंचा था, क्योंकि अगर प्रस्ताव मान लिया जाता तो अगल-थलग पड़ जाता और उसके खिलाफ वोट पड़ते. ऐसे में रूस के प्रतिनिधि को बताया कि यह संभव नहीं है और अन्य देश इसके लिए तैयार नहीं होंगे. 

जी-7 देशों के सामने नहीं झुका भारत, रूस को कैसे मनाया गया?

वार्ता के दौरान जी-7 देश (कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, ब्रिटेन और अमेरिका) भारत पर यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की को आमंत्रित करने के लिए दबाव डाल रहे थे, लेकिन भारत का मानना था कि अतिथि सूची केवल जी-20 नेताओं तक ही सीमित रहे. 

कांत ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि, “पिछले उदाहरण में बाली में, जब जेलेंस्की को इंडोनेशिया द्वारा आमंत्रित किया गया था, तो उन्होंने 25 मिनट के नॉन-स्टॉप वर्चुअल भाषण के साथ बैठक पर हावी होकर प्रभावी रूप से कार्यक्रम को अपने कब्जे में ले लिया था”

अमिताभ कांत ने बताया कि जब रूस अपने प्रस्ताव से हटने को तैयार नहीं था तो उन्होंने विदेश मंत्री एस जयशंकर से सलाह ली. इसके बाद उन्होंने रूसी वार्ताकार को बताया कि अगर रूस सहमत नहीं हुआ तो प्रधानमंत्री मोदी के भाषण के बाद पहले वक्ता जेलेंस्की होंगे. यह साहसिक और दृढ़ वार्ता रणनीति काम आई और रूस का रुख नरम हुआ.

अमेरिका और चीन के बीच टकराव थी बड़ी बाधा: अमिताभ कांत

अमिताभ कांत कहते हैं कि “एक और बाधा थी. चीनी टीम के प्रमुख ने अमेरिका के साथ द्विपक्षीय चुनौती की ओर इशारा किया, जो जी-20 घोषणा पत्र के हिस्से से उपजी थी, जिसमें कहा गया था कि 2026 जी-20 शिखर सम्मेलन अमेरिका में आयोजित किया जाएगा. चीनी शेरपा ने बताया कि अमेरिका उन्हें वीजा नहीं देगा, यहां तक कि हांगकांग में उनके गवर्नर के लिए भी नहीं. जब तक उन्हें लिखित गारंटी नहीं मिल जाती कि उन्हें वीजा जारी किया जाएगा, तब तक वे भू-राजनीतिक पैराग्राफ पर सहमत नहीं होंगे.”

जब पीएम मोदी ने कहा, बहुपक्षीय बैठक में द्विपक्षीय मुद्दे क्यों उठ रहे?

शेरपा अमिताभ कांत ने किताब में लिखा कि “नौ सितंबर को जी-20 शिखर सम्मेलन की बैठक शुरू होने से पहले पीएम मोदी भारत मंडपम आए थे. मुझे उनको घोषणा-पत्र की प्रगति के बारे में बताना था. जब मैंने उनको अमेरिका और चीन के मुद्दे के बारे में बताया तो वे थोड़ा रुक गए. पीएम ने कहा कि बहुपक्षीय बैठक में द्विपक्षीय मुद्दे क्यों उठाए जा रहे हैं? फिर उन्होंने कहा कि हम किसी प्रक्रिया में नहीं पड़ना चाहते बल्कि परिणाम के तौर पर आम सहमति चाहते हैं.”

कैसे माने अमेरिका और चीन, कैसे बनी सहमति, अमिताभ कांत ने बताई पूरी बात

कांत ने बताया कि “एक ओर नौ बजे सुबह जी-20 देशों के नेताओं की बैठक शुरू हुई तो वहीं दूसरी ओर हॉल से सटे कमरे में मैंने दोनों देशों (अमेरिका-चीन) के शेरपाओं से बात की. मैंने पाइल और ली के साथ मिलकर पत्र के विवरण तैयार किए. हमने गारंटी के बजाय सुनिश्चित शब्द का उपयोग करने का विकल्प चुना. दोपहर तक यह मामला सुलझ गया. चीन की सहमति और अमेरिका की दोनों शर्तें पूरी होने पर, रूस, अमेरिका, चीन, जी-7 तथा सभी देश घोषणा-पत्र के लिए सहमत हो गए.”

जी-20 के दौरान पहली बार ऐसा हुआ कि नई दिल्ली घोषणा-पत्र पर पहले ही दिन सहमति बन गई. जबकि 2022 के बाली शिखर सम्मेलन में ऐसा नहीं हुआ था, जहां घोषणा-पत्र पर बातचीत अंतिम घंटों तक चलती रही थी. यह कोई छोटी उपलब्धि नहीं थी. 

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