यूक्रेन युद्ध खत्म करने के लिए अलास्का में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की साढ़े तीन घंटे की वार्ता पिछले तीन सालों में सबसे बड़ी घटना मानी जा रही है. मीटिंग के बाद यूक्रेन जंग समाप्त करने पर तो सहमति नहीं बन पाई लेकिन रूस (और पुतिन) एक बार फिर वर्ल्ड-स्टेज पर छा गए हैं. मीटिंग के बाद से सवाल खड़े हो रहे हैं कि क्या रूस एक बार फिर महाशक्ति बनने जा रहा है.
अलास्का के ज्वाइंट अल्मोंड-रिचर्डसन मिलिट्री बेस में हुई इस मीटिंग से ट्रंप को अपना नोबेल शांति पुरस्कार लगभग पक्का लग रहा है. यूक्रेन और यूरोप ने हालांकि, इस मीटिंग को लेकर अपनी-अपनी नाराजगी जरूर जताई है. यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की को ट्रंप और पुतिन की वार्ता में न बुलाया जाना खल रहा है, तो यूरोपीय यूनियन को पुतिन को सर आंखों पर बिठाने का रोष है. वर्ष 2022 में यूक्रेन पर आक्रमण करने के बाद से ही लगभग पूरे यूरोप (और पश्चिमी देशों) ने पुतिन और रूस का लगभग एक तरह से बॉयकॉट कर रखा था.
ट्रंप ने पुतिन से पुरानी दोस्ती के चलते रूस-यूक्रेन युद्ध को 24 घंटे में खत्म करने का दावा किया था. लेकिन एक हफ्ते से महीना और अब सात महीने बीत चुके हैं लेकिन जंग खत्म होने के बजाए बढ़ता ही जा रहा है. जेलेंस्की को इस बात का डर सता रहा है कि युद्ध अगर अधिक खींचता है तो पुतिन की आर्मी एक बार फिर कीव पहुंच सकती है. हाल ही में पुतिन ने ये कहकर जेलेंस्की को नींद उड़ा दी है. पुतिन ने कह दिया है कि जहां रूस के सैनिक पहुंचते हैं, वो क्षेत्र रशिया का हो जाता है.
यु्द्ध खत्म करने के लिए पुतिन ने 2022 के बाद यूक्रेन से कब्जा किए दोनेत्स्क, लुहांस्क, मारियुपोल, खेरसोन और जपोरिजिया (डोनबास क्षेत्र) पर कोई चर्चा न करने की शर्त रखी है. साथ ही डोनबास के जिन बचे-खुचे इलाकों में यूक्रेनी सेना का अधिकार है, वहां से भी पीछे हटने की मांग की है. यूक्रेन के नाटो (नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन) में शामिल न होने देना, पुतिन की दूसरी सबसे बड़ी शर्त है.
अमेरिकी की अगुवाई में पश्चिमी देशों के सबसे बड़े मिलिट्री गठजोड़, नाटो में यूक्रेन शामिल न होने की शर्त तो मान सकता है, लेकिन जेलेंस्की को डोनबास और क्रीमिया पर हक छोड़ना थोड़ा नागवार गुजर सकता है. इसी को लेकर जंग खत्म करने का सबसे बड़ा पेंच है. पुतिन ने वर्ष 2014 में यूक्रेन से क्रीमिया को एक बिना रक्त-रंजित के तख्तापलट कर रशियन फेडरेशन में शामिल कर लिया था. जेलेंस्की अब डोनबास के साथ-साथ क्रीमिया को भी वापस यूक्रेन में शामिल करने के लिए प्रयासरत है–हालांकि, ये महज एक सपना साबित हो सकता है.
भले ही मीटिंग के बाद ‘बॉडी-डबल’ की अफवाह जोरों पर हैं, लेकिन अलास्का पहुंचकर पुतिन ने एक बार फिर दिखा दिया है 25 सालों से रूस पर एक ‘ज़ार’ की तरह राज करना आसान नहीं है. अपने सबसे बड़े दुश्मन के घर में बिना किसी तनाव और भय के पहुंचना और फिर ट्रंप की बीस्ट में बैठकर मुस्कुराना, इस बात का सूचक है कि यूक्रेन जंग के बावजूद पुतिन ने परिस्थितियों को अपने नियंत्रण में कर रखा है.
ट्रंप ने पुतिन को अपनी मिलिट्री बादशाहत का नमूना दिखाकर थोड़ा विचलित करने की जरूर कोशिश की. अलास्का के मिलिट्री बेस पर ट्रंप ने पुतिन का स्वागत तो किया, लेकिन आसमान में बी-2 स्ट्रेटेजिक बॉम्बर की फ्लाइंग से अमेरिका ने रूस को इशारों में चेतावनी जरूर दे दी. लेकिन पुतिन ने अलास्का पहुंचने से पहले रुस के सुदूर-पूर्व शहर मगादान में द्वितीय विश्वयुद्ध के मेमोरियल पर पहुंचकर अमेरिका की जनता को अपने पक्ष में करने के लिए बड़ा नैरेटिव सेट किया.
पुतिन ने द्वितीय विश्वयुद्ध के मेमोरियल पहुंचकर यूएस और सोवियत काल के सैनिकों को श्रद्धांजलि अर्पित की. ये मेमोरियल, अमेरिका की मदद से बनाया गया था. इस मेमोरियल को 1942-45 के बीच रूस के साइबेरिया में अमेरिकी सैनिकों की तैनाती की याद में बनाया गया था. क्योंकि, द्वितीय द्वितीय विश्वयुद्ध में रूस और अमेरिका की सेनाएं एक साथ नाजी सेना के खिलाफ मोर्चा संभाला था.
मगादान के इस मेमोरियल जैसा दूसरा मेमोरियल, अलास्का में है. लेकिन वर्ष 2022 में यूक्रेन पर आक्रमण करने के से खफा, अमेरिका ने इस मेमोरियल से रूस का झंडा उतार दिया था. बावजूद इसके अलास्का के मेमोरियल में भी पुतिन ने श्रद्धा-सुमन अर्पित किए. पुतिन की दिली तमन्ना है कि अमेरिका इस मेमोरियल पर रूस का फ्लैग एक बार फिर से स्थापित कर दे.
पुतिन के साथ साढ़े तीन घंटे की वार्ता का असर ट्रंप पर ऐसा हुआ कि जेलेंस्की और यूरोपीय संघ के नेताओं को तुरंत फोन कर साफ कर दिया कि अब सीजफायर (युद्धविराम) की नहीं पूर्णकालिक शांति की जरूरत है. इसके लिए ट्रंप जल्द मॉस्को की यात्रा के लिए तैयार हैं.