रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के अलास्का में रेड कार्पेट वेलकम से यूक्रेन समेत पूरे यूरोप में खलबली मच गई है. अमेरिका के समक्ष अपना पक्ष रखने के इरादे से यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की का जल्द वाशिंगटन डीसी दौरा होने जा रहा है. साथ में नाटो और यूरोपीय यूनियन के अध्यक्षों समेत कई पश्चिमी देशों के राष्ट्राध्यक्ष भी डीसी में मौजूद रहेंगे.
जेलेंस्की के साथ फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों, इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी, इंग्लैंड के प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर, जर्मनी के चांसलर फ्रेडरिक मर्ज और फिनलैंड के राष्ट्रपति अलेक्जेंडर स्टब भी अमेरिका की राजधानी जाने की तैयारी कर रहे हैं. डीसी में जेलेंस्की और सभी यूरोपीय देशों के राष्ट्राध्यक्ष अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से मुलाकात करेंगे.
ट्रंप के शांति समझौते से यूरोप में हड़कंप
अलास्का में पुतिन से मीटिंग (15 अगस्त) के बाद ट्रंप ने रूस-यूक्रेन के बीच (अस्थायी) युद्धविराम की बजाए पूर्णकालिक शांति समझौते का प्रस्ताव दिया है. जेलेंस्की और पूरा यूरोप, पुतिन की इस मांग से भी सकते में है कि पूरे डोनबास क्षेत्र से यूक्रेन को अपना दावा समाप्त करना होगा. डोनबास के दोनेत्स्क, लुहांस्क (लुगांस्क), खेरसोन और जपोरेजिया को पुतिन ने रशियन फेडरेशन में शामिल करनी की पूरी तैयारी कर रखी है. बदले में पुतिन ने यूक्रेन के सुमी और खारकीव में कब्जा किए इलाकों को छोड़ने का प्रस्ताव दिया है. पुतिन की मांगों में क्रीमिया प्रायद्वीप पर भी रूसी अधिकार स्वीकार करना भी शामिल है.
पुतिन ने यूक्रेन के नाटो को शामिल न करने की मांग भी की है. ट्रंप ने पुतिन की ये मांग लगभग मान ली है. ऐसे में अमेरिका, यूक्रेन की सुरक्षा की गारंटी ले सकता है. यानी अगर निकट भविष्य में रूस या फिर कोई दूसरा देश यूक्रेन पर हमला करता है तो, रक्षा करने की जिम्मेदारी अमेरिका की सेना की होगी.
पुतिन की इन मांगों से जेलेंस्की और यूरोप में हड़कंप मच गया है. यूक्रेन किसी कीमत पर डोनबास पर अपना दावा नहीं छोड़ना चाहता. किसी भी शांति समझौते में जेलेंस्की की ये मांग बड़ा रोड़ा पैदा कर सकती है. (महाशक्ति की रेस में रूस, पुतिन ने Alaska में जीता दिल)
ट्रंप ने रोक दी है यूक्रेन को हथियार की सप्लाई, फंडिंग भी बंद
रूस के यूक्रेन पर आक्रमण (फरवरी 2022) के बाद से ही अमेरिका और यूरोपीय देश, यूक्रेन को हथियार, सैन्य साजो सामान और इंटेलिजेंस से मदद कर रहा है. यही वजह है कि मिलिट्री सुपर-पावर रूस से यूक्रेन लड़ रहा है. इस दौरान हालांकि, यूक्रेन को जबरदस्त नुकसान उठाना पड़ा है. हजारों-लाखों की संख्या में सैनिक और मासूम नागरिक मारे गए हैं और विस्थापित हो गए हैं. संयुक्त राष्ट्र (यूएन) के आंकड़ों की मानें तो पिछले तीन सालों में करीब 50 लाख यूक्रेनी नागरिक, अपना देश छोड़कर यूरोप में शरणार्थियों की तरह रहने के लिए मजबूर हो गए हैं.
रूस का आरोप है कि यूक्रेन जंग 2022 में ही खत्म हो सकती थी, लेकिन इंग्लैंड के तत्कालीन प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन के चलते युद्धविराम टल गया था. साथ ही उस वक्त अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति जो बाइडेन भी रूस के खिलाफ यूक्रेन का समर्थन कर रहे थे. बाइडेन ने जब तक युद्ध चलेगा, तब तक अमेरिकी हथियार यूक्रेन को सप्लाई करने का वादा किया था. लेकिन इस साल जनवरी में ट्रंप के अमेरिका की कमान संभालने से परिस्थितियां बदल गईं.
अमेरिका ने यूक्रेन को हथियार और फंडिंग पूरी तरह बंद कर दी. साथ ही ट्रंप और अमेरिकी उप-राष्ट्रपति जेडी वेंस ने जेलेंस्की की व्हाइट हाउस (फरवरी के महीने) में जबरदस्त बेइज्जती कर दी थी. उसके बाद से ही अमेरिका और यूक्रेन के संबंध काफी बिगड़ गए हैं. ऐसे में इस बार जेलेंस्की के साथ नाटो, ईयू और यूरोपीय देशों के राष्ट्राध्यक्ष भी डीसी पहुंचकर ट्रंप को अपने पक्ष में करने की लामबंदी कर रहे हैं.