वर्ष 2020 में गलवान घाटी की लड़ाई के दौरान भारतीय वायुसेना ने कुल 90 टैंक, 330 बीएमपी व्हीकल्स और तोपों को पूर्वी लद्दाख पहुंचाया था. चीन से तनातनी के दौरान भारत के मिलिट्री ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट ने कुल 68 हजार सैनिकों को एयर-लिफ्ट किया था. इस वक्त पूर्वी लद्दाख से सटी एलएसी पर भारत के कुल 90 हजार सैनिक तैनात हैं. यही वजह है कि गलवान की झड़प के बाद चीन बातचीत की टेबल पर आ गया था. ये जानकारी आधिकारिक तो नहीं है लेकिन ऐसे सूत्रों के जरिए से आई है जिससे इस जानकारी को आप आधिकारिक मान सकते हैं।
जब गलवान घाटी की झड़प हुई थी उस वक्त पूरे लद्दाख में भारतीय सेना की एक मात्र कोर तैनात थी. ये कोर है 14वीं कोर जिसे फायर एंड फ्यूरी का नाम दिया गया है. ये कोर कारगिल-द्रास-बटालिक से सटी एलओसी, सियाचिन से सटी एजीपीएल यानि एक्चुअल ग्राउंड पोजिशनिंग लाइन और चीन से सटी पूर्वी लद्दाख की एलएसी संभालती थी। ऐसे में कोरोना महामारी के दौरान जब चीन की पीएलए सेना ने बेहद ही गुपचुप तरीके से करीब 800 किलोमीटर लंबी एलएसी पर युद्धाभ्यास के नाम पर अपने सैनिकों का जमावड़ा लगा लिया तो भारत के सामने रिइंफोर्समेंट की एक बड़ी चुनौती थी। यानि किसी तरह चीन के सेना की तरह मिरर-डिप्लॉयमेंट की जाए।
रिइंफोर्समेंट के लिए भारतीय वायुसेना को लगाया गया। दिल्ली और चंडीगढ़ से रातों-रात सैनिकों को लेह पहुंचाया गया। भारतीय वायुसेना के सी-17 ग्लोबमास्टर और आईएल-76 मिलिट्री ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट से करीब 68 हजार भारतीय सैनिकों को लेह- लद्दाख पहुंचाया गया। ये जानकारी फाइनल असॉल्ट को टॉप सूत्रों से मिली है। जी हां, 68 हजार अतिरिक्त सैनिकों को लेह-लद्दाख पहुंचाया था वायुसेना ने वर्ष 2020 में चीन से विवाद के दौरान। वर्ष 2020 तक पूर्वी लद्दाख में भारत की एकमात्र डिवीजन तैनात रहती थी। भारतीय सेना की एक डिवीजन में करीब करीब 20 हजार सैनिक होते हैं। ऐसे में मान सकते हैं कि विवाद के दौरान भारत के करीब करीब 90 हजार सैनिक पूर्वी लद्दाख में चीन से सटी एलएसी पर तैनात किए गए थे। अब आप समझ सकते हैं कि गलवान घाटी में मुंह की खाने के बाद चीनी सेना बातचीत के लिए इतनी जल्दी क्यों तैयार हो गई थी।
इन हेवी लिफ्ट मिलिट्री एयरक्राफ्ट ने 330 बीएमपी यानी इंफेंट्री कॉम्बेट व्हीकल को लद्दाखपहुंचाया। इन बीएमपी व्हीकल्स में सैनिकों की मूवमेंट बेहद तेजी से होती है। साथ ही एंटी टैंक गाइडेड मिसाइल से भी लैस होते हैं ताकि दुश्मन के टैंकों को मार गिराया जाए।
चीन से विवाद के दौरान 90 टैंकों को एलएसी पहुंचाने का काम किया वायुसेना नें। आपको यहां पर ये बताना जरूरी है कि पूर्वी लद्दाख में एक टैंक ब्रिगेड पहले से ही तैनात रहती थी। ये अतिरिक्त तैनातीथी। तोपों को भी प्लेन्स से लेह-लद्दाख ले जाया गया।
चीन की वायुसेना को जवाब देने के लिए भारत ने लेह-लद्दाख में मिग-29, रफाल और सुखोई विमानों को तैनात किया। विवाद से पहले लेह लद्दाख में भारतीय सेना की कोई फाइटर स्क्वाड्रन तैनात नहीं रहती थी।
इसके अलावा वायुसेना ने एयर बेस से फॉरवर्ड लोकेशन तक हथियारों, रडार और दूसरे सैन्य उपकरणों को लिफ्ट करने के लिए हैवी लिफ्ट चिनूक और मी-17 हेलीकॉप्टर का इस्तेमाल कियागया। बड़ी संख्या में सैनिकों की तैनाती और उनके रहने के लिए मेक-शिफ्ट पोर्टा केबिन को भी एलएसी पर इन्ही हेलीकॉप्टर के जरिए पहुंचाया गया। क्योंकि 14-15 हजार फीट की ऊंचाई पर पूर्वी लद्दाख में जबरदस्त ठंड पड़ती है और तापमान माइनस (-) 40 डिग्री तक गिर जाता है। ऐसे में सैनिकों के रहने का भी पुख्ता इंतजाम भारत के लिए एक बड़ी चुनौती थी। लेकिन भारतीय सेना यानि थलसेना और वायुसेना के आपसी तालमेल से ये सब संभव हो पाया और चीन की घुसपैठ और सलामी स्लाइसिंग को न केवल रोक दिया गया बल्कि ब्लडी-नॉज भी दी गई।
14 अगस्त को भारत और चीन के मिलिट्री कमांडर्स के बीच पूर्वी लद्दाख में एलएसी विवाद को सुलझाने को लेकर 19 वें दौर की बैठक हुई है. हालांकि, पूर्वी लद्दाख के पांच विवादित इलाकों को लेकर दोनों देशों में सहमति बन गई है और दोनों देशों के सैनिक पीछे हट गए हैं लेकिन डेपसांग प्लेन और डेमचोक जैसे कुछ पुराने ऐसे विवादित इलाके हैं जहां विवाद जारी है।
(नीरज राजपूत देश के जाने-माने डिफेंस-जर्नलिस्ट हैं और हाल ही में रूस-यूक्रेन युद्ध पर उनकी पुस्तक ‘ऑपरेशन Z लाइव’ (प्रभात प्रकाशन) प्रकाशित हुई है. लेखक ने गलवान घाटी की लड़ाई के दौरान पूर्वी लद्दाख में भारत-चीन विवाद को करीब से कवर किया था.)