चीन की घेराबंदी के लिए भारत और अमेरिका ने हाथ मिला लिया है. लेकिन चीन एक उभरती सुपर पावर है और एक मिलिट्री पावर के तौर पर सीधे अमेरिका को टक्कर दे रहा है. अपनी विस्तारवादी नीतियों के चलते भारत की नाक में दम कर रखा है. ऐसे में चीन की घेराबंदी बेहद जरूरी है. इसके लिए भारत के साथ साथ अमेरिका के दो और दूसरे देशों का साथ लिया है. हालांकि, ये दोनों देश कभी एक दूसरे के जानी-दुश्मन थे लेकिन चीन को बांधने के लिए अमेरिका के साथ आ गए हैं. ये दोनों देश भारत के भी मित्र हैं. ऐसे में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने हाल ही में कैंप डेविड में एक खास मुलाकात की, जिससे चीन को मिर्ची लगनी लाजमी थी।
चीन की घेराबंदी के लिए अमेरिका ने भारत के साथ साथ जापान और दक्षिण कोरिया को भी साथ लिया है. 18 अगस्त को अमेरिका के कैंप डेविड में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने जापान के प्रधानमंत्री फूमियो किशिदा और दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति यून सुक योल से भी खास मुलाकात की. कैंप डेविड अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन डीसी से करीब 100 किलोमीटर की दूरी पर है और अमेरिका के राष्ट्रपति के रिट्रीट के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है. पूर्व में कई बड़ी ऐतिहासिक मीटिंग इस कैंप डेविड में हो चुकी हैं. यहीं पर बाइडेन ने किशिदा और योल से बैठक की।
इंडो-पैसिफिक रीजन में शांति और स्थिरता बनाए रखने के लिए आयोजित की गई इस मीटिंग के बाद व्हाइट हाउस ने एक डिक्लेरेशन जारी किया, जिसे कैंप डेविड प्रिंसिपल्स का नाम दिया गया. इस डिक्लेरेशन में चीन का नाम लिए बगैर कहा गया कि ताइवान स्ट्रेट में यथास्थिति और शांति बनाए रखी जाए। साथ ही कहा कि अगर यहां किसी भी तरह का कोई विवाद है तो उसे शांतिपूर्वक सुलझाया जाना चाहिए।
आपको ये जानकर हैरानी होगी कि पिछले 100 सालों से जापान और दक्षिण कोरिया की आपसी दुश्मनी थी. द्वितीय विश्वयुद्ध के समय दक्षिण कोरिया जापान की एक कालोनी थी. ठीक वैसे ही जैसे भारत इंग्लैंड के कब्जे में था. जापान ने दक्षिण कोरिया में बेहद अत्याचार किया था. जापान की सेना कोरिया की महिलाओं को कम्फर्ट-वूमेन बनाती थी यानि सेक्स-गुलाम बनाकर रखती थी. कोरिया के लोगों को गुलाम बनाकर जापान की खदानों और फैक्ट्रियों में काम कराया जाता था. उस वक्त दक्षिण कोरिया और उत्तर कोरिया एक ही देश थे. द्वितीय विश्वयुद्ध में मिली हार के बाद जापान ने कोरिया को आजाद कर दिया और 1948 में कोरिया का बंटवारा हो गया था. लेकिन तभी से दक्षिण कोरिया और जापान के तल्ख संबंध रहे हैं. कम्फर्ट वूमेन के मामले को लेकर दक्षिण कोरिया आज तक भी चाहता है कि जापान सार्वजनिक तौर से माफी मांगे।
लेकिन इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन की विस्तारवादी नीतियों को रोकने के लिए अमेरिका ने बीच-बचाव किया और दक्षिण कोरिया और जापान ने अब ऐतिहासिक तल्खी को भुला कर हाथ मिला लिया है. इसका एक बड़ा कारण ये भी है कि चीन दक्षिण कोरिया और जापान के धुर-विरोधी उत्तर कोरिया का समर्थन करता है. उत्तर कोरिया के सनकी तानाशाह किम जोंग उन को तो पूरी दुनिया जानती है कि वो कैसे बैलेस्टिक मिसाइलों के टेस्ट कर पूरी दुनिया की नाक में दम रखता है. ऐसे में अगर चीन और उत्तर कोरिया मिल जाते हैं तो इन दोनों देशों को रोकना थोड़ा मुश्किल हो सकता है. यही वजह है कि कैंप डेविड डिक्लेरेशन में उत्तर कोरिया को लेकर पर अमेरिका, दक्षिण कोरिया और जापान ने खास बातचीत की है. डिक्लेरेशन में उत्तर कोरिया के डि-न्युक्लिराइजेशन और कोरिया प्रायद्वीप के यूनिफिकेशन का भी जिक्र किया गया है।
यहां पर ये भी बताना जरूरी है कि दक्षिण कोरिया और जापान से भारत के भी बेहद ही मजबूत संबंध हैं. भारत ने दक्षिण कोरिया से के-9 वज्र तोप ली हैं जिन्हें पूर्वी लद्दाख में चीन के खिलाफ एलएसी पर तैनात किया गया है. भारतीय नौसेना के लिए सबमरीन बनाने में भी दक्षिण कोरिया मदद करना चाहता है. जापान से तो भारत के बेहद ही मजबूत आर्थिक संबंध हैं. जापान क्वाड देशों के ग्रुप में भी शामिल हैं और साथ ही भारत अमेरिका और आस्ट्रेलिया के साथ मिलकर मालाबार एक्सरसाइज करता है।
जापान की चीन से भी पुरानी दुश्मनी है. ईस्ट चायनी सी में द्वितीय विश्वयुद्ध के सेनकाकू आईलैंड्स को लेकर दोनों देशों में तलवारें खिची रहती हैं. ऐसे में जापान भी भारत और अमेरिका के साथ मिलकर चीन की आक्रामक नीतियों के खिलाफ मोर्चाबंदी करने के लिए तैयार है।