July 5, 2024
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Geopolitics Indo-Pacific

जापान के परमाणु संकट पर चीन का False Flag

सीफूड किसे पसंद नहीं होता है. समंदर के किनारे रहने वाले लोगों के लिए सीफूड एक स्टेप्ल डाइट होती है. लेकिन क्या आप ये सोच सकते हैं कि इस सीफूड से दो देशों के बीच तनाव भी हो सकता है, डिप्लोमेटिक-युद्ध शुरु हो सकता है. लेकिन ये हकीकत है. चीन और जापान, जो वर्षों से एक-दूसरे के जानी-दुश्मन हैं, दोनों के बीच सीफूड को लेकर जबरदस्त विवाद खड़ा हो गया है. क्योंकि जापान अपना न्यूक्लियर-वेस्ट पैसिफिक ओशिएन में गिरा रहा है. ये वही जापान है जिसके नागासाकी और हिरोशिमा शहरों पर अमेरिका ने सेकंड वर्ल्ड वॉर के दौरान एटम बम गिराए थे।

पिछले दो हफ्ते से चीन में जापान की एंबेसी को लगातार धमकी भरे कॉल आ रहे हैं. जापान के दूतावास के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन हो रहे हैं, पत्थरबाजी की जा रही है. घबराए जापान ने चीन में रह रहे अपने नागरिकों को सार्वजनिक स्थानों पर जापानी बोलने पर रोक लगा दी ताकि उनकी आवाज से चीनी लोग उन्हें पहचान ना लें और नुकसान न पहुंचा दें. इतना ही नहीं जापान के शहर फुकुशिमा में भी चीन से गाली-गलौज वाले फोन आ रहे हैं. गुस्साए जापान ने टोक्यो स्थित चीन के राजदूत को तलब कर अपना विरोध जताया है. ऐसे में दोनों देशों में जबरदस्त टकराव पैदा हो गया है. दोनों देशों के बीच में ईस्ट चायना सी में सेन्काकू आइलैंड को लेकर पिछले 70 सालों से विवाद पहले से ही जारी है. लेकिन मौजूदा विवाद सीफूड और पर्यावरण को दूषित करने से जुड़ा है।

चीन और जापान के बीच टकराव का कारण बना है सीफूड. दरअसल, जापान का सीफूड बड़ी मात्रा में चीन और हांगकांग एक्सपोर्ट किया जाता है. लेकिन चीन ने अब जापान के सीफूड को अपने देश में पूरी तरह बैन कर दिया है. इसका कारण ये है कि जापान ने अपने फुकुशिमा न्यूक्लियर प्लांट का वेस्ट-वॉटर पैसिफिक ओशियन यानि प्रशांत महासागर में बहाना शुरु कर दिया है. जापान ऐसा क्यों कर रहा है. दरअसल, वर्ष 2011 में जापान में एक बड़ा भूकंप और सुनामी साइक्लोन आया था. इस प्राकृतिक आपदा से जापान में जबरदस्त तबाही आई थी. करीब 20 हजार लोगों की मौत हुई थी और हजारों की संख्या में लोग घायल और लापता हो गए थे. शहर के शहर बर्बाद हो गए थे. आर्थिक तौर से भी जापान को बड़ी क्षति हुई थी. उसी दौरान जापान के पूर्वी तट पर बने फुकुशिमा न्यूक्लियर प्लांट में भी तबाही आई थी जिसके कारण प्लांट के फ्यूल-रोड खराब होकर गरम हो गए थे. तभी से प्लांट को संचालित करने वाली कंपनी इन फ्यूल रोड्स को ठंडा करने के लिए सैकड़ों मीट्रिक टन पानी इन रोड्स पर डालती है. इससे जो पानी इन रोड्स पर डाला जाता है वो परमाणु-दूषित हो जाता है.

टोक्यो इलेक्ट्रिक पावर यानि टेपको नाम की ये कंपनी इस दूषित पानी को प्लांट में ही इकठ्ठा करता आ रही थी. कंपनी का दावा है कि इस दूषित पानी को साफ करने के लिए समंदर के पानी के जरिए इसे फिल्टर किया जाता है. लेकिन इससे प्लांट में 350 मिलियन गैलन यानि 134 मिलियन टन पानी इकठ्ठा हो गया है जो करीब एक हजार टैंक में स्टोर हो गया था. अब इस पानी को रिलीज करने का वक्त था. इस पानी को प्रशांत महासागर में रिलीज करने से पहले जापान की संबधित अथॉरिटी और आईएईए यानि इंटरनेशनल एटोमिक एनर्जी एजेंसी से जरूरी मंजूरी ली गई.

आईएईए का कहना है कि प्लांट में फिल्टर करने के बाद भी जो पानी बचा है उसमे रेडियोएक्टिव ट्रिटियम और कार्बन-14 जैसे तत्व थोड़ी मात्रा में मिल रहा है लेकिन ये पानी अगर समंदर में मिल जाएगा तो इसके रेडियोएक्टिव तत्व खत्म हो जाएंगे. साथ ही फुकुशिमा प्लांट को जरूरी लाइसेंस देते हुए आईएईए ने ये भी कहा कि इस पानी से समंदर में रहने वाले जीव-जंतुओं पर कोई खासा असर नहीं पड़ेगा।

साथ ही ये पूरा पानी यानि 350 मिलियन गैलन एक बार में समंदर में नहीं छोड़ा जा रहा है. ये अगले 30-40 सालों तक धीरे-धीरे कर छोड़ा जाएगा. 26 अगस्त को इस रिलीज का पहला चरण था और महज 7800 क्यूबिक पानी छोड़ा गया था यानि करीब करीब 03 इंटरनेशनल स्वीमिंग पूल की बराबर पानी. ये पानी भी अगले 17 दिनों तक छोड़ा जाना है. लेकिन इसी से चीन तिलमिलाया हुआ है।

चीन ने ऐसे में जापान से एक्सपोर्ट होने वाले सीफूड पर रोक लगा दी है. क्योंकि चीन का आरोप है कि फुकुशिमा प्लांट से निकलने वाला वेस्ट-वॉटर जापान के करीब समंदर के सीफूड यानि फिश, प्रोन, क्रैब्स और दूसरे जीव-जंतुओं को दूषित कर देगा. ऐसे सीफूड खाने से रेडियोएक्टिव एलिमेंट ह्यूमन बॉडी में दाखिल हो सकते हैं जो इंसानों में बीमारी का कारण बन सकते हैं।

पिछले साल यानि 2022 में जापान ने 600 मिलियन डॉलर का सीफूड चीन को एक्सपोर्ट किया था. अगर इसमें हांगकांग को किए जाने वाला एक्सपोर्ट जोड़ दें तो ये फिगर पहुंच जाती है 1.1 बिलियन डॉलर. पर्यावरण संरक्षण के नाम पर चीन ने जापान के खिलाफ इंफो-वॉर छेड़ दी है. चीन का तो यहां तक दावा है कि ये न्युक्लियर वेस्ट पैसेफिक ओसियन में गिराने से चीन की समुद्री सीमाओं तक भी पहुंच सकता है.  चीन जहां इस विवाद को पर्यावरण से जोड़कर देख रहा है, जापान का आरोप है कि चीन इसे लेकर अपनी पुरानी रंजिश निकाल रहा है यानि सेकंड वर्ल्ड वॉर और सेन्काकू आइलैंड विवाद के चलते।

इस विवाद में फार-ईस्ट के दो और देश जुड़ गए हैं. नॉर्थ कोरिया जहां जापान के खिलाफ खड़ा हो गया है, दक्षिण कोरिया जापान के साथ है. हालांकि, दक्षिण कोरिया में जापान के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं लेकिन वहां की सरकार जापान के साथ खड़ी हुई है. दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति योन सुक योल और प्रधानमंत्री ने जापान के सीफूड को खाकर सभी तरह के परमाणु दूषित से जुड़ी चिंताओं को दूर करने की कोशिश की. दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति ने अपने सेक्रेटेरिएट की कैंटीन में हफ्ते में एक दिन सीफूड सर्व करने का आदेश दिया है. ये वही दक्षिण कोरिया है जिसकी जापान से ऐतिहासिक अनबन रही है. क्योंकि 20 वीं सदी के शुरूआत में पूरा कोरियाई प्रायद्वीप जापान की एक कालोनी थी और जापान ने कोरिया पर बेहद अत्याचार किए थे. लेकिन हाल के सालों में अमेरिका के बीच-बचाव के चलते जापान और दक्षिण कोरिया ने हाथ मिला लिया है. क्योंकि दोनों ही चीन और उत्तर कोरिया, किम जोंग उन के नॉर्थ कोरिया को एक बड़ा खतरा मानते हैं. चीन-जापान-दक्षिण कोरिया और अमेरिका के संबंधों और तकरार पर हाल ही में मैंने एक वीडियो अपलोड किया था. इस एपिसोड के आखिर में आपको उसका लिंक मिल जाएगा।

जापान के प्रधानमंत्री फूमियो किशिदा ने भी अपने कैबिनेट के मंत्रियों के साथ सीफूड खाकर सभी तरह की शंकाओं को दूर करने की कोशिश की है. लेकिन चीन मानने को तैयार नहीं है. क्योंकि उसे जापान से अपनी पुरानी अदावत निकालनी है. द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जापान ने चीन पर पूरी तरह से कब्जा कर लिया था. लेकिन अगस्त 1945 में अमेरिका द्वारा जापान के हिरोशिमा और नागासाकी पर गिराए एटम बम के चलते जापान ने युद्ध में अपनी हार मान ली थी और चीन से वापस लौट गया था. लेकिन चीन आज भी उस दौर को नहीं भूला है और जापान से दुश्मनी रखता है. इसी का नतीजा है ये सीफूड बैन और फुकुशिमा न्यूक्लियर प्लांट के वेस्ट-वाटर का प्रशांत महासागर में रिलीज करने का विरोध।

ये वही चीन है जिसने दशकों तक जलवायु परिवर्तन  से जुड़े नियम-कानून कभी नहीं माने थे. ये वही चीन है जहां से निकले कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया में तबाही मचाई थी।

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