भारत के पौराणिक इतिहास की शुरूआत भले ही रामायण और महाभारत जैसे ग्रंथों से होती है लेकिन उसमें वर्णित युद्ध-कला और कूटनीति को कभी संजीदगी से संकलित करने की कोशिश नहीं की गई. लेकिन अब भारतीय सेना प्रोजेक्ट उद्भव के तहत चाणक्य (कौटिल्य) के अर्थशास्त्र, कामंदक के नीतिसार और तिरुवल्लुवर की तिरूक्कुरल जैसे प्राचीन भारतीय दर्शन शास्त्र से युद्ध-कला, रणनीति, कूटनीति और राजतंत्र के गुर सीखने की तैयारी कर रही है.
भारतीय सेना के किसी भी ऑपरेशन-रूम में दाखिल हो जाइये वहां जनरल पैटन (अमेरिकी टॉप कमांडर) और महान योद्धा नेपोलियन के दमदार उद्धरण दीवारों पर दिख जाती हैं. यहां तक की चीन के बड़े दार्शनिक सून त्जू (‘ऑर्ट ऑफ वॉर’ के लेखक) की टिप्पणियां भी दिखाई पड़़ जाती हैं. लेकिन किसी भारतीय दार्शनिक, ग्रन्थ या फिर योद्धा के कथन शायद ही दिखाई पड़ते हैं. यही वजह है कि भारतीय सेना ने यूनाईटेड सर्विस इंस्टीट्यूट (यूएसआई) नाम के थिंक-टैंक से हाथ मिलाया है.
हाल ही में भारतीय सेना ने यूएसआई के साथ मिलकर मिलिट्री लिटरेचर फेस्टिवल (सैन्य विरासत महोत्सव) का आयोजन किया था. खुद रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने थल-सेना प्रमुख जनरल मनोज पांडे की मौजूदगी में महोत्सव का उदघाटन किया था. इसी दौरान प्रोजेक्ट उद्भव को लॉन्च किया गया. भारतीय सेना के मुताबिक, विश्व स्तर पर प्रचलित वर्तमान सैन्य अवधारणाओं को बड़े पैमाने पर पश्चिमी सेनाओं के अनुसंधान और सिद्धांतों द्वारा आकार दिया गया है, मगर वे स्थानीय आवश्यकताओं और देश की समृद्ध सांस्कृतिक-रणनीतिक विरासत के लिए पर्याप्त नहीं हैं.
गौरतलब है कि रामायण और महाभारत दोनों में ही युद्ध-नीति से लेकर कूटनीति तक के बड़े उदाहरण देखने को मिलते हैं. रावण से युद्ध से ठीक पहले भगवान राम द्वारा पहले हनुमान और फिर अंगद को दूत के तौर पर लंका भेजना आज की डिप्लोमेसी के तौर पर देखा जा सकता है. इसके अलावा रावण के मृत्यु-शैय्या पर पड़ने होने के दौरान भगवान राम द्वारा अपने छोटे भाई लक्ष्मण को उसके पास भेजना दिखाता है कि हारने वाले दुश्मन से भी सीख की जरूरत होती है. ठीक वैसे ही महाभारत में कौरव और पांडवों के बीच महायुद्ध शुरु होने से ऐन पहले खुद भगवान कृष्ण दूत बनकर दुर्योधन के पास शांति प्रस्ताव के लिए गए थे.
इंफो-वॉर की शुरुआत भी महाभारत में देखने को मिल जाती है. युद्ध के बीच किस तरह गुरु द्रोणाचार्य को अश्वत्थामा की मृत्यु का समाचार सुनाकर हथियार डलवाए जाते हैं वो कहीं न कहीं प्रोपेगेंडा वॉरफेयर या फिर आधुनिक साइकोलॉजिकल ऑपरेशन से जोड़कर देखा जा सकता है. यहां तक की जिस तरह सारथी संजय ने महाराज धृतराष्ट्र को युद्ध का आंखों देखा हाल सुनाया था उन्हें दुनिया का पहला वॉर-कोरेस्पोंडेंट माना जाता है.
भारतीय सेना का मानना है कि हमारा देश प्राचीन ग्रंथों और पांडुलिपियों का खजाना है जो राजतंत्र, युद्ध और कूटनीति में परिष्कृत, विविध और प्रासंगिक रूप से समृद्ध रणनीतियों को चित्रित करता है. ऐसे में प्रोजेक्ट उद्भव प्राचीन सैन्य कौशल के माध्यम से नई स्वदेशी सैन्य अवधारणाओं को विकसित करने तथा मौजूदा रण-नीतियों के निर्माण और सुधार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है.
कौटिल्य के ‘अर्थशास्त्र’ में राजतंत्र और शासन को लेकर साम, दाम, दंड, भेद की पैरवी की गई है. ईसा से चार सौ साल पहले मौर्य वंश के शासक चंद्रगुप्त के दरबार में चाणक्य नाम के महामंत्री थे जिन्हें राजतंत्र में पारंगत माना जाता था. चाणक्य ने ही कौटिल्य नाम से ‘अर्थशास्त्र’ लिखी थी. चाणक्य की मदद से चंद्रगुप्त मौर्य ने यूनान के सम्राट सिकंदर के सेनापति सेल्यूकस को हराकर अफगानिस्तान तक भारत की पताका फहराई थी. आपको बता दें कि दिल्ली स्थित नेशनल डिफेंस कॉलेज (एनडीसी) की बिल्डिंग में दाखिल होते ही चाणक्य की एक बड़ी मूर्ति लगी हुई है. भारत के एक दूसरे राजा पोरस ने भी हार के बावजूद सिकंदर (अलेक्जेंडर) का ये कहकर दिल जीत लिया था कि “एक राजा को हारे हुए राजा के साथ भी राजा जैसा सलूक ही करना चाहिए.” सिकंदर ने बाद में पोरस को रिहा कर दिया था.
मध्यकालीन इतिहास की बात करें तो महाराणा प्रताप और छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपनी गुरिल्ला-युद्ध-नीति से मुगल साम्राज्य की ईंट से ईंट बजाई थी, बावजूद इसके उनके युद्ध-कौशल को कभी गंभीरता से पढ़ने की कोशिश नहीं की गई.
ऐसे में ‘प्रोजेक्ट उद्भव’ मजबूत, प्रगतिशील और भविष्य के लिए तैयार भारतीय सेना के लिए एक मंच तैयार करता है, ताकि सेना न केवल देश की ऐतिहासिक सैन्य दूरदर्शिता के साथ मेल बना सके, बल्कि समकालीन युद्ध और कूटनीति की मांगों के अनुसार भी चल सके. यह परियोजना भारत के सामरिक विचार और सैन्य इतिहास के समृद्ध, विविध और अक्सर कम खोजे गए खजाने को समझने और प्रसारित करने के लिए गहन अनुसंधान, चर्चा, एवं अध्ययन को बढ़ावा देने में योगदान देगी.