हमारी पौराणिक हिस्ट्री में जिस तरह ब्रह्मास्त्र का जिक्र होता है कि उस हथियार को कोई काट नहीं था, ठीक वैसे ही आज हमारी ‘ब्रह्मोस’ मिसाइल को रोकने वाले कोई पैदा नहीं हुआ है. लेकिन हाल के दिनों में कुछ ऐसी जानकारी सामने आई है जिससे ऐसा लगता है कि हमारे दुश्मन देश ब्रह्मोस का कोड अनलोक करना चाहते हैं, तोड़ना चाहते हैं. क्या चीन-पाकिस्तान कभी ऐसा कर पाएंगे।
मई के महीने में पुणे में डीआरडीओ के एक साइंटिस्ट को महाराष्ट्र पुलिस की एटीएस ने पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी को देश की सुरक्षा से जुड़े सीक्रेट लीक करने के आरोप में गिरफ्तार किया था. प्रदीप कुरूलकर नाम के इस सीनियर साइंटिस्ट पर आरोप है कि इसने इंग्लैंड में बैठी पाकिस्तान की एक जासूस को सोशल मीडिया पर दोस्ती करने के बाद हमारे देश की सुरक्षा में तैनात आकाश, निर्भय और प्रलय जैसी मिसाइलों से जुड़ी अहम जानकारी गुपचुप तरीके से ‘पास-ऑन’ की थी।
महाराष्ट्र एटीएस ने प्रदीप कुरूलकर की गिरफ्तारी के मामले में जो चार्जशीट कोर्ट में दायर की है उसके मुताबिक, पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी की महिला जासूस, जिसने अपना नाम ‘ज़ारा दासगुप्ता’ बताया था. ब्रह्मोस मिसाइल के बारे में डीआरडीओ के साइंटिस्ट से सारे राज उगलवाना चाहती थी. लेकिन उससे पहले ही एटीएस को भनक लग गई और प्रदीप कुरूलकर को गिरफ्तार कर लिया गया।
लेकिन प्रदीप कुरूलकर को जाल में फंसाने का कोई पहला मामला नहीं है. उससे पहले भी कई ऐसे मामले आ चुके हैं. वर्ष 2018 में भी ब्रह्मोस मिसाइल की यूनिट में काम करने वाले एक यंग इंजीनियर को पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ने अपने जाल में फंसाने की कोशिश की थी. दरअसल, इसका सबसे बड़ा कारण ये है कि ब्रह्मोस दुनिया की एकमात्र सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल है जिसको दुनिया की कोई भी रडार पकड़ने में सक्षम नहीं है. यानि जब उसे फायर किया जाता है या दागा जाता है तो उसे इंटरसेप्ट करना बेहद मुश्किल होता है या यूं कह सकते हैं कि लगभग नामुमकिन होता है. इसलिए चीन और पाकिस्तान दोनों ही ब्रह्मोस से खौफ खाते हैं।
गलवान घाटी की लड़ाई के बाद से ही भारत ने ब्रह्मोस को एलएसी पर तैनात किया हुआ है. इसलिए चीन को बेचैनी रहती हैं. लेकिन पाकिस्तान के घबराहट की वजह ये है कि एक बार जब ब्रह्मोस मिसाइल पाकिस्तान में जाकर गिरी तो पाकिस्तान के एयर-डिफेंस को कानो-कान खबर ही नहीं लगी कि भारत की मिसाइल पाकिस्तान में दाखिल हुई है. ये बात है मार्च 2022 की यानि पिछले साल की।
दरअसल, रखरखाव के दौरान भारत की सुपरसोनिक मिसाइल तकनीकी खराबी के कारण अचानक फायर हो गई थी और पाकिस्तान के मियां चन्नू में जाकर गिरी गई थी. पाकिस्तान के मियां चन्नू में जहां ये सुपरसोनिक मिसाइल जाकर गिरी थी वो आतंकी संगठन जैश ए मोहम्मद के मुखिया मसूद अजहर के बहावलपुर स्थित घर से महज 160 किलोमीटर की दूरी पर है. जब ये मिसाइल पाकिस्तान में गिरी थी तो वहां हड़कंप मच गया. जैश ए मोहम्मद पर ही वर्ष 2019 में कश्मीर के पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर हमला करने का आरोप लगा था. इस हमले के बाद भारतीय वायुसेना ने जैश के पाकिस्तान स्थित बालाकोट ट्रेनिंग कैंप पर एयर-स्ट्राइक कर तबाह कर दिया था।
पाकिस्तान सेना की मीडिया विंग आईएसपीआर यानि इंटर-सर्विस पब्लिक रिलेशन ने हालांकि खुद साफ कर दिया था कि इस ‘फ्लाइंग-ऑब्जेक्ट’ में कोई वॉर-हेड यानि बारूद इत्यादि नहीं था और कोई ज्यादा नुकसान भी नहीं हुआ था. लेकिन इंटरनेशनल एयरोस्पेस सेफ्टी प्रोटोकॉल का हवाला देते हुए पाकिस्तानी सेना ने इसे लापरवाही का उदाहरण दिया. आईएसपीआर के मुताबिक, पाकिस्तानी एयर-डिफेंस एजेंसी ने भारत की इस सुपरसोनिक मिसाइल का रूट तक ट्रैक किया था जो सिरसा के करीब से राजस्थान के महाजन फील्ड फायरिंग रेंज की तरफ से होती हुई दोनों देशों की सीमा पार कर बहावलपुर के करीब मियां चुन्नू इलाके में जाकर गिरी थी. आईएसपीआर की प्रेस कांफ्रेंस में पाकिस्तानी वायुसेना का एक एयर वाइस मार्शल रैंक के अधिकारी ने स्क्रीन पर भारत के प्रोजेक्टाइल का रूट भी दिखाया. इस मिसाइल ने भारत की सीमा में करीब 200 किलोमीटर की दूरी तय की थी और फिर 124 किलोमीटर अंदर पाकिस्तान में जाकर गिरी थी. ये मिसाइल करीब 40 हजार फीट की ऊंचाई से नीचे आकर गिरी थी. लेकिन हकीकत ये थी कि पाकिस्तान की रडार ब्रह्मोस मिसाइल के रूट को ट्रैक नहीं कर पाई थी और तुक्के से मिसाइल का रूट बनाया था. बाद में भारत के रक्षा मंत्रालय ने खुद आधिकारिक बयान जारी कर इस बात को कबूल किया था और एक उच्च स्तरीय कोर्ट ऑफ इंक्वायरी (जांच) के आदेश दे दिए थे. रक्षा मंत्रालय ने इस घटना को बेहद खेदजनक बताया।
लेकिन इस घटना के बाद से ही पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई एक्टिव हो गई और ब्रह्मोस का कोड डिकोड करने के लिए तिकड़मबाजी में जुट गई. इसके लिए आईएसआई ने अपनी लेडी जासूसों को सोशल मीडिया पर अपना जाल फैलाने के लिए छोड़ दिया. बस इसी जाल में फंस गए डीआरडीओ के साइंटिस्ट प्रदीप कुरूलकर फंस गए. हालांकि उन्होनें अपने बचाव में कोर्ट में दलील दी है कि उन्होनें पाकिस्तानी जासूस ज़ारा दासगुप्ता वही जानकारी साझा की थी जो पहले से पब्लिक डोमेन में थी।
दरअसल, चीन पाकिस्तान ब्रह्मोस से इसलिए भी सकते में है क्योंकि ब्रह्मोस भारत का प्राइम स्ट्राइक वैपेन है. जैसा हम जानते हैं कि भारत और रूस ने मिलकर ब्रह्मोस का डिजाइन तैयार किया है और अब भारत में ही इसका निर्माण किया जाता है. भारत की सबसे लंबी नदी ब्रह्मपुत्र और रूस की मोस्कवा नदी के नामों को मिलाकर ये नाम बना है ब्रह्मोस. यहां तक की रूस के पास भी ये सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल नहीं है. दुनिया की कोई रडार और हथियार, मिसाइल सिस्टम उसे इंटरसेप्ट नहीं कर सकता है यानि एक बार ब्रह्मोस को दाग दिया तो ब्रह्मास्त्र की तरह इसे कोई नहीं रोक सकता है और अपने लक्ष्य पर ही जाकर गिरती है और टारगेट को तबाह करके ही दम लेती है. ब्रह्मोस को बनाने वाली कंपनी, ब्रह्मोस एयरोस्पेस का दावा है कि ब्रह्मोस की रेंज 290 किलोमीटर है जबकि ऑपरेशनल रेंज ज्यादा ही मानी जाती है. इसकी स्पीड 2.8 मैके है यानि आवाज की गति से भी ढाई गुना ज्यादा की स्पीड।
ब्रह्मोस मिसाइल भारत के उन चुनिंदा हथियारों (मिसाइलों) में से एक है जिसे थलसेना, वायुसेना और नौसेना तीनों ही इस्तेमाल करती हैं। वायुसेना के फ्रंटलाइन एयरक्राफ्ट, सुखोई में भी ब्रह्मोस मिसाइल को इंटीग्रेट कर दिया गया है। थलसेना की आर्टलरी यानि तोपखाना भी ब्रह्मोस मिसाइल का इस्तेमाल करता है। नौसेना के युद्धपोतों को भी ब्रह्मोस से लैस कर दिया गया है. जिससे नौसेना के शिप और अधिक घातक बन गए हैं और समंदर से जमीन तक पर टारगेट करने में सक्षम बन गए हैं।
जैसा मैंने बताया कि भारत ने क्योंकि एलएसी पर ब्रह्मोस को तैनात कर रखा है इसलिए चीन के पेट में मरोड़ पैदा हो रही है. लेकिन अब चीन इसलिए भी ज्यादा भयभीत है क्योंकि भारत ने ये सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल फिलीपींस को भी दे दी है. फिलीपींस ने ब्रह्मोस मिसाइल को अपने समुद्री तटों पर तैनात करने के लिए भारत से ये मिसाइल ली है. आने वाले दिनों में माना जा रहा है कि वियतनाम और दूसरे आसियान देश भी ये मिसाइल भारत से ले सकते हैं. ये वे देश हैं जिनका चीन के साथ साउथ चायना सी में विवाद चल रहा है. जैसाकि चीन की फितरत है कि वो साउथ चायना सी में किसी दूसरे देश को नहीं आने देना चाहता है और यहां के विवादित आईलैंड पर अपना गैर कानूनी कब्जा जमाना चाहता है. लेकिन चीन ने अब चीन के पिछवाड़े में ही स्थिति बदल दी है और दुश्मन का दुश्मन, दोस्त वाली नीति पर चलना शुरू कर दिया है. ऐसे में चीन को ज्यादा डर सताने लगा है और आने वाले समय में पाकिस्तान में गिरी ब्रह्मोस मिसाइल की रिवर्स-इंजीनियरिंग करना शुरु कर भी सकता है. क्योंकि पाकिस्तान में तो इस सबका दम भी नहीं है और इस पर खर्चे के लिए पैसे भी नहीं है. लेकिन तब तक ब्रह्मोस की तकनीक बहुत आगे निकल चुकी होगी. क्योंकि ब्रह्मोस का एक और लेटेस्ट वर्जन आ चुका है, ब्रह्मोस-एनजी यानि नेक्स्ट जेनरेशन. यानि अगर चीन डाल डाल तो भारत पात-पात।
(नीरज राजपूत देश के जाने-माने डिफेंस-जर्नलिस्ट हैं और हाल ही में रूस-यूक्रेन युद्ध पर उनकी पुस्तक ‘ऑपरेशन Z लाइव’ (प्रभात प्रकाशन) प्रकाशित हुई है.)