July 5, 2024
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भारत का पक्का दोस्त कौन, इजरायल या फिलिस्तीन ? ये सवाल इसलिए क्योंकि समय का पहिया अगर घूमेगा तो अब जहां मोदी सरकार की गहरी मित्रता इजरायल के साथ नजर आती है तो एक समय ऐसा भी था जब नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और एनडीए की अटल सरकार भी फिलिस्तीन के करीब थी. साल 1947 में भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएन) में फिलिस्तीन के विभाजन के खिलाफ मतदान किया था. तो 1988 में राजीव गांधी सरकार के दौरान भारत फिलिस्तीन को मान्यता देने वाले पहले देशों में से एक था. भारत ने फिलिस्तीन के वेस्ट बैंक में दो स्कूल भी बनाए हैं. गाजा पट्टी में नेहरू और गांधी के नाम पर दो पुस्तकालय भी स्थापित किए हैं.

भारत के लिए इजरायल अहम क्यों?
भारत और इजरायल के सैन्य और आर्थिक संबंध तेजी से बढ़े हैं, इजरायल इस समय भारत का महत्वपूर्ण व्यापारिक और रणनीतिक साझेदार है. रूस के बाद सबसे अधिक रक्षा संबंधित आयात इजरायल से ही हो रहा है. इजरायल भारत को सैन्य उपकरण दे रहा है. इजरायल और भारत में काफी समानताएं इसलिए भी हैं क्योंकि दोनों देश सीमा पार आतंक का सामना कर रहे हैं. भारत पाकिस्तान की तरफ से तो इजरायल फिलिस्तीन की तरफ से आतंकी हमलों को झेल रहा है. करगिल युद्ध के समय भी इजरायल ने भारत की मदद आगे बढ़कर की थी. कह सकते हैं कि वैश्विक नीति की बात की जाए तो जहां चीन, पाकिस्तान, तुर्की जैसे देशों के आगे इजरायल से दोस्ती भारत की आवश्यकता है. फिलिस्तीन से रिश्ता विदेश नीति का हिस्सा है.

कॉन्ग्रेस क्यों करती है फिलिस्तीन का समर्थन

इजरायल में हुए नरसंहार के बाद जहां हमास के खिलाफ आवाज उठने लगी है. तो वहीं भारत की प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने फिलिस्तीन का साथ देकर राजनीतिक पारा चढ़ा दिया है. हमास द्वारा किए गए इजराइल हमले की पहले कांग्रेस ने निंदा की पर एक दिन बाद ही अपने बयान से यूटर्न लेते हुए कांग्रेस ने खुलकर फिलिस्तीन का समर्थन किया है. कांग्रेस वर्किंग कमेटी में बकायदा इसके लिए एक प्रस्ताव पारित किया गया. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे की ओर से बुलाई गई कार्यसमिति की बैठक में कहा गया- जमीन, स्वशासन ओर आत्मसम्मान और जीवन के अधिकारों के लिए कांग्रेस फिलिस्तीन के प्रति अपने समर्थन को दोहराती है. ये कोई पहला मौका नहीं है कि कांग्रेस ने फिलिस्तीन के साथ सॉफ्ट है. कई मौकों पर कांग्रेस फिलिस्तीन के समर्थन में खड़ी दिखाई दे चुकी है. इजरायल-फिलिस्तीन में छिड़े युद्ध के बीच कांग्रेस का फिलिस्तीन के साथ आने से एक बात तो साफ है कि आने वाले चुनावों में ये मुद्दा गरम रहेगा. अलग अलग चुनावी रैलियों में उठता रहेगा. वहां सीमा पर जंग तो भारत में बीजेपी-कांग्रेस में जुबानी जंग जारी रहेगी. 

इंदिरा को बहन मानते थे यासिर अराफात
फिलिस्तीन के सबसे बड़े नेता यासिर अराफात इंदिरा गांधी को अपनी बड़ी बहन मानते थे. यासिर अराफात और इंदिरा गांधी के रिश्ते इतने प्रगाढ़ थे कि जब एक बार यासर अराफात दिल्ली आए तो खुद इंदिरा गांधी ने प्रोटोकॉल तोड़ते हुए एयरपोर्ट पर रिसीव किया था. साल 1974 में जब पूरी दुनिया यासिर अराफात को आतंकी कहकर संबोधित कर रहे थे. तब भारत ने यासिर अराफात का साथ दिया. कांग्रेस की सरकारों ने हमेशा से फिलिस्तीन की मांगों का समर्थन किया है. कांग्रेस की सरकारों और फिलिस्तीन से नजदीकी का ये सिलसिला जारी रहा. 10 अप्रैल 1999 में फिलिस्तीन के राष्ट्रपति यासर अराफात खुद अटल जी से मिलने उनके घर पहुंचे थे. तो सत्ता में काबिज होने के बाद पीएम मोदी ने फरवरी 2018 को पहली बार फिलिस्तीन की ऐतिहासिक यात्रा की.

2014 के बाद मोदी सरकार ने बदली नीति
कांग्रेस युग के समाप्ति और मोदी सरकार के सत्ता संभालने के बाद भारत की रणनीति डिफेंसिव नहीं आक्रामक रही है. 2014 के बाद नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद स्थित में बदलाव हुआ. भारत में पहली बार 2015 में इजरायल के रक्षा मंत्री की यात्रा हुई. 2017 में भारत से पहली बार कोई प्रधानमंत्री ने इजरायल की यात्रा की. सत्ता संभालने शुरुआत से ही मोदी सरकार ने साबित कर दिया है उनकी आतंकवाद के खिलाफ जोरी टॉलरेंस नीति है. आतंकवाद के खिलाफ मोदी सरकार का रुख हमेशा से स्पष्ट रहा है. भारत हमेशा आंतकवाद के विरोध में है. अंतर्राष्ट्रीय मंचों से भी पीएम मोदी दुनिया को आतंक के खिलाफ जोड़ने की अपील करते रहे हैं. और 7 अक्टूबर को हमास आतंकियों ने जो इजराइल में किया तो थोड़ी देर बाद ही प्रधानमंत्री मोदी ने एक्स (ट्वीटर) पोस्ट के जरिए हमले की कड़े शब्दों में उसकी निंदा की. इजरायल और फिलिस्तीन में छि़ड़ी जंग को लेकर जहां दुनिया के अधिकतर देश इजराइल के साथ खड़े हैं. अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस और इटली पांच देशों ने एक साझा बयान तक जारी करके इजरायल के प्रति सहानुभूति जताई है. भारत संकट के समय में अपने गहरे मित्र इजराइल के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा है. भारत और इजराइल की दोस्ती का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इजराइली पीएम नेतन्याहू ने मुश्किल वक्त में पीएम मोदी को कॉल किया और युद्ध को लेकर अपडेट दिया. तो इजराइली एक्शन के बाद फिलिस्तीन जब बर्बादी की कगार पर पहुंच गया है तो फिलिस्तीन ने भी ठीक उसी तरह पीएम मोदी से मध्यस्थता की गुहार लगाई है जैसे यूक्रेन ने रूस के साथ युद्ध के दौरान लगाई थी. हालांकि ऐसा बिलकुल नहीं है कि मोदी सरकार के फिलिस्तीन से अच्छे संबंध नहीं हैं. अलग अलग मौकों पर फिलिस्तीन के नेताओं से पीएम मोदी और मोदी सरकार के वरिष्ठ मंत्री मिलते रहे हैं. मई 2017 में फिलिस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास भारत की राजकीय यात्रा पर आए थे.