दूसरे देशों की जमीन कब्जाने के मामले में सबसे आगे है दगाबाज चीन. भारत के आगे दाल नहीं गली तो अब दूसरे पड़ोसी देश पर बुरी नजर रख रहा है चीन. चीन की नई साजिश का शिकार बना है भूटान. भूटान के साथ सीमा विवाद पर बातचीत के बीच चीनी अतिक्रमण का पक्का सबूत हाथ लगा है. सैटेलाइट तस्वीरों से खुलासा हुआ है कि चीन ने भूटान की शाही परिवार के पैतृक क्षेत्रों तक पर कब्जा कर लिया है.
बातचीत की आड़ में चीन की सबसे बड़ी धोखेबाजी सामने आई है. भारत और चीन के बीच सीमा विवाद कोई नया नहीं है. पर भारत की शक्तिशाली नीति के चलते चीन की दाल नहीं गल रही. चाहे अरुणाचल प्रदेश हो या फिर लद्दाख और उत्तराखंड. भारत ने चीन तो एक इंच अंदर घुसने नहीं दिया है. उल्टा भारतीय सेना के जांबाज हर मौसम में चीनी सेना पर 20 ही पड़ रहे हैं.
भूटान की शाही जमीन पर चीन की कब्जा
एक सैटेलाइट तस्वीरों से भूटान की शाही जमीन पर चीनी कब्जे का खुलासा हुआ है. अमेरिका की एक प्राईवेट कंपनी द्वारा ली गई सैटेलाइट तस्वीरों में साफ दिखाया गया है कि चीन ने भूटान की जमीन पर निर्माण कर लिया है. इमारतें और सड़कें बना ली हैं. सैटेलाइट से ली गई तस्वीरें बेयुल खेनपाजोंग इलाके की हैं. यह इलाका भूटान के शाही परिवार से जुड़ा है. तस्वीरों में बेयुल खेनपाजोंग में पिछले 3 सालों में हुए चीनी कंस्ट्रक्शन को दिखाया गया है. दो मंजिला इमारतों समेत 200 से अधिक निर्माणाधीन इमारत और सड़कें बनाई गई है. जानकारों के मुताबिक, भूटान के कुछ स्थानों पर साल 2020 से निर्माण किया गया. साल 2021 से कंस्ट्रक्शन में तेजी लाई गई है.
बेयुल खेनपाजोंग पर ही चीनी टारगेट क्यों ?भूटान के लिए बेयुल खेनपाजोंग सांस्कृतिक महत्व रखता है. शाही परिवार के पुरखों की धरोहर पहाड़ी इलाके तक फैली है. शाही परिवार की पैतृक विरासत को पर्वतीय क्षेत्र से जुड़ा हुआ है और इन्हीं पर चीन कब्जा कर रहा है. 1998 तक तो चीन, भूटान को स्वतंत्र देश भी नहीं मानता था. वो भूटान को तिब्बत की पांच फिंगर्स में से एक मानता था. तिब्बत की चार फिंगर्स में चीन ने लद्दाख, नेपाल, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश को रखा था. भूटान की सरजमीं पर चीन का हालिया कब्जा पिछले 3 सालों से चल रहा है फिर भी भूटान सरकार चीनी बस्तियों को रोकने में असमर्थ है. चीन की ये हिमाकत इसलिए भी है, क्योंकि चीन जानता है, कि भूटान उसका जवाब नहीं दे सकता.
डोकलाम पर कब्जा करना चाहता है चीन ?
भूटान के कुछ हिस्सों पर चीन के कब्जे से भारत की सुरक्षा को भी खतरा हो सकता है. जिस जगह चीन के निर्माण की खबरें आई हैं, वो डोकलाम से महज 9 से 27 किलोमीटर दूर है. साल 2017 में सिक्किम से सटे ऊंचाई वाले डोकलाम में भारतीय और चीनी सैनिकों का आमना-सामना हुआ था. मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद ये पहला मौका था जब चीनी सैनिकों को भारतीय सैनिकों से मुंह की खानी पड़ी थी. भारतीय सैनिकों ने चीनी सैनिकों को उस क्षेत्र में बनाई गई सड़क का विस्तार करने से रोक दिया था.
क्या है ट्राई-जंक्शन
डोकलाम एक ट्राई-जंक्शन है, जो भारत, चीन और भूटान की सीमा पर है. डोकलाम में चीन की तरफ से कई बार घुसपैठ की कोशिश की गई है. चीन ने अमू छू (नदी) घाटी के किनारे तीन गांवों का निर्माण करने के लिए भी घुसपैठ की थी, जो कि डोकलाम से सटा हुआ है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर डोकलाम को भूटानी क्षेत्र के रूप में मान्यता मिली हुई है. भारत के लिए चिंता इसलिए है कि भूटान के करीब भारत सिलीगुड़ी कॉरिडोर बना रहा है और भूटान की जमीन हड़पने का मतलब ये है कि सिलीगुड़ी कॉरिडोर पर खतरा होना. सिलीगुड़ी कॉरिडोर के माध्यम से ही भारत पूर्वोत्तर भारत के राज्यों से जुड़ा हुआ है. सिलीगुड़ी कॉरिडोर भारत के नक्शे में चिकन-नेक जैसा दिखता है, इसलिए इसे चिकन नेक कहा जाता है. 22 किलोमीटर लंबा कॉरिडोर पूर्वोत्तर भारत को बाकी भारत से जोड़ता है. अक्टूबर 2023 में भूटान के विदेश मंत्री टांडी दोरजी और बीजिंग में चीन के विदेश मंत्री से मुलाकात की थी. भूटान के विदेश मंत्री दोरजी के साथ मुलाकात में चीनी विदेश मंत्री ने कहा था कि चीन सीमा विवाद सुलझाने को तैयार है. भूटान के प्रधानमंत्री लोताय शेरिंग ने भी पिछले दिनों एक इंटरव्यू में चीन के डोकलाम की जमीन की अदला-बदली करने के प्रस्ताव का जिक्र किया था.
सलामी स्लाइसिंग चीन की नीति?
भारत के पूर्व सेनाध्यक्ष (बाद में सीडीएस) जनरल बिपिन रावत ने कहा था कि चीन एलएसी में बदलाव के लिए सलामी स्लाइसिंग का सहारा ले रहा है. सलामी स्लाइसिंग मतलब चीन अपने पड़ोसी देशों के पर्वतीय इलाकों में
सैन्य ऑपरेशन करके छोटे छोटे इलाकों पर कब्जा करने की फिराक में रहता है. चीन छोटे छोटे ऑपरेशन करके घुसपैठ करता है और कब्जा कर लेता है. भारत में भी चीन ऐसे ही प्रोपेगेंडा करता है. हाल ही में अरुणाचल प्रदेश को सीमावर्ती इलाकों को चीन ने अपने नक्शे में दर्शाया था. जिसका भारत ने विरोध किया था. उत्तराखंड, लद्दाख, हिमाचल के कुछ इलाकों पर भी अपना दावा करता रहता है. कुछ ऐसी ही कब्जे की चीन फर्जी खबरें उड़ा देता है, जो भारत में सियासी मुद्दा बन जाते हैं.
कैसा है भारत-भूटान में रिश्ता ?
ऐतिहासिक तौर पर भूटान हमेशा भारत के करीब रहा है, हालांकि भूटान के विदेश नीति में भारत ने कभी दखल नहीं दिया है. भूटान में गुट निरपेक्ष नीति है, और उसके अमेरिका, चीन, ब्रिटेन, फ्रांस और रूस से राजनयिक संबंध नहीं हैं. भारत, भूटान का सबसे बड़ा राजनयिक और आर्थिक पड़ोसी देश है. पर पिछले एक साल में भूटान की ओर से आए कई बयानों के बाद पीएम मोदी और भूटान नरेश मुलाकात कर चुके हैं. डोकलाम विवाद पर भूटान के प्रधानमंत्री लोते शेरिंग ने पिछले साल मार्च के महीने में ये कहकर सरगर्मी बढ़ा दी थी कि चीन ने भूटान की जमीन पर कब्जा नहीं किया है. भूटान के पीएम ने चीन को डोकलाम में बराबर का हिस्सेदार बताया था. भूटान पीएम का ये बयान चीन की ओर झुकाव वाला था. जबकि भारत हमेशा से ये कहता रहा है कि डोकलाम में चीन का कब्जा है. हालांकि पीएम लोते शेरिंग के बयान के अगले महीने ही अप्रैल में भूटान नरेश जिग्मे खेसर नामग्याल वांगचुक ने प्रधानमंत्री मोदी से दिल्ली में मुलाकात की थी. ये दौरा ठीक उस वक्त हुआ था जब भूटान और चीन की घनिष्ठता की बात सामने आई थी. विदेश मंत्री एस जयशंकर ने एयरपोर्ट पर रिसीव किया. और पीएम मोदी ने नरेश के स्वागत के दौरान यहां तक कह दिया था कि ‘भारत भूटान नरेश के नजरिए को बहुत अहमियत देता है.’ मुलाकात के बाद भूटान नरेश ने भी कहा कि सीमा विवाद पर भूटान के रुख में कोई बदलाव नहीं आया है.
अमेरिका की सैटेलाइट तस्वीरों ने भूटान में हड़कंप मचा दिया है. चीनी कब्जे के बाद भूटान के विदेश मंत्रालय ने बयान में कहा है कि भूटान की नीति है कि वह सीमा मुद्दों के बारे में जनता के बीच बात न करे. भूटान ने तो चुप्पी साध ली है पर भारत की सरकार और विदेश मंत्रालय की पूरे मामले पर पैनी नजर है, क्योंकि चीनी कब्जा भारत के लिए अलर्ट करने जैसा है.
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