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चीन के हथियार, BeiDou से ईरान हुआ फेल ? (TFA Exclusive)

क्या चीन के चलते इजरायल के खिलाफ ईरान का ‘ऑपरेशन ट्रू प्रॉमिस’ फेल हुआ है. ये सवाल इसलिए क्योंकि ये जानकारी सामने आई है कि ईरान के ड्रोन और मिसाइल में चीनी उपकरण लगे थे. इसके अलावा चीन के ‘बेइदौ’ नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम का ईरान मिलिट्री इस्तेमाल करता है. 

अमेरिका और ब्रिटेन जैसे पश्चिमी देश पिछले कई दशक से चीन की तकनीक का गहनता से स्टडी कर रहे हैं. अमेरिका की इंटेलिजेंस एजेंसियां सालाना चीन की सैन्य क्षमताओं पर अपनी रिपोर्ट जारी करती हैं. ऐसे में इस बात की पूरी आशंका है कि 13 अप्रैल को जब ईरान ने 300 से भी ज्यादा कामकाजी ड्रोन और बैलिस्टिक मिसाइल से हमला किया तो 90 प्रतिशत से भी ज्यादा अटैक को इजरायल और अमेरिका ने मिलकर ‘न्यूट्रिलाइज’ कर दिया. 

इंस्टीट्यूट फॉर द स्टडी ऑफ वार के मुताबिक, ईरान के ऑपरेशन ट्रू प्रॉमिस के दौरान दागे गए सभी 170 शहीद ड्रोन को इजरायल और अमेरिका ने इंटरसेप्ट कर लिया था. इसके अलावा ईरान की तरफ से लॉन्च की गई 30 की 30 क्रूज मिसाइल को भी इजरायल ने आसमान में ही मार गिराया था. यहां तक की 120 में से 108 बैलिस्टिक मिसाइल भी इंटरसेप्ट कर ली गई थीं. इजरायल और अमेरिका के अलावा ब्रिटेन और जॉर्डन जैसे खाड़ी देशों ने भी ईरान के हमले को बेदम करने में अहम भूमिका निभाई थी. साथ ही सऊदी अरब ने भी ईरान के हमले को लेकर अमेरिका से इंटेलिजेंस साझा की थी. 

टीएफए को मिली जानकारी के मुताबिक, ईरान के ‘शहीद-136’ ड्रोन में चीन के इंजन और उपकरण लगे हुए हैं. चीन की ‘बीजिंग माइक्रोपायलट यूएवी फ्लाइंट’ कंपनी ईरान की ‘माडो इम्पोर्ट एंड एक्सपोर्ट’ को शहीद ड्रोन के लिए इंजन सप्लाई करती है. इसके अलावा चीन की ‘वुहान आईआरसीईएन टेक्निकल लिमिटेड’, रेयबीम और सनवे टेक्नोलॉजी नाम की कंपनियां ईरान की रायन परदाजेश पेज़वक, रायन लेजर और रायन इलेक्ट्रोनिक जैसे कंपनियों को शहीद ड्रोन में लगने वाले उपकरणों को निर्यात करती है. ऐसे में बहुत हद तक संभव है कि अमेरिका और सहयोगी देशों को शहीद ड्रोन की ट्रेजेक्टरी तक पहले से मालूम चल गई थी, जिसके चलते उन्हें आसमान में ही नेस्तनाबूत कर दिया गया. 

शहीद-136 ईरान का कामकाजी ड्रोन है जो 1000-1500 किलोमीटर तक उड़ान भर सकता है. इसमें कई किलो बारूद भरा होता है. अपने टारगेट पर जाकर जैसे ही ये टकराता है ड्रोन धमाके के साथ फट जाता है. ये दूसरे कॉम्बेट ड्रोन जैसा नहीं है जो बम या मिसाइल को दागने के बाद वापस अपने बेस पर लौट आते हैं.  यही वजह है कि इसका नाम ईरान ने ‘शहीद’ दिया है.  

जानकारी के मुताबिक, ईरान की बैलिस्टिक मिसाइल प्रोजेक्ट में चीन 90 के दशक के मध्य से मदद कर रहा है. 1994-95 में चीन ने ईरान की बैलिस्टिक मिसाइल कार्यक्रम के लिए सैकड़ों की संख्या में मिसाइल गाइडेंस सिस्टम और मशीन टूल्स सप्लाई किए थे. चीन ने ही ईरान की सबसे बड़ी मिसाइल फैक्ट्री ‘इसफहान’ को 80 के दशक के आखिरी वर्षों में लगाने में बड़ी मदद की थी. ‘तेहरान मिसाइल प्लांट एंड रेंज’ के निर्माण में भी चीन ने ही मदद की थी. चीन ने ही ईरान के स्कड मिसाइल की एक्युरेसी यानी सटीकता बढ़ाने में मदद की थी. 

चीन ने ईरान को हथियार, फाइटर जेट और मिसाइल तक सप्लाई की थी. चीन ने ईरान को जे6 (शेनयांग) और एफ-7 (चेंगदू) जैसे फाइटर जेट दिए तो टी-5 और टी-69 जैसे टैंक भी निर्यात किए. चीन ने ईरान को एम-7 और नस्र-1 जैसी एंटी शिप क्रूज मिसाइल तक मुहैया कराई थीं. 

लेकिन चीन के हथियारों और सैन्य उपकरणों की घटिया क्वालिटी के चलते ईरान ने अपनी निर्भरता बीजिंग पर धीरे-धीरे कर काफी कम कर दी है. ग्लोबल थिंक टैंक ‘सिपरी’ (स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट) के आंकड़ों की मानें तो जहां 80 और 90 के दशक में ईरान द्वारा चीन से हथियारों का आयात 300-500 मिलियन डॉलर था, वो 2019 तक आते आते महज 50 मिलियन डॉलर रह गया. 

शनिवार (13 अप्रैल) के हमलों के फेल होने का एक कारण चीन का नेविगेशन सिस्टम भी माना जा रहा है. वर्ष 2021 में चीन ने अपने स्वदेशी सैटेलाइट नेविगेशन सिस्टम ‘बेइदौ’ को ईरान को सैन्य इस्तेमाल के लिए पूरी तरह दे दिया था. लेकिन 90 प्रतिशत तक ईरान के हमलों को असफल कर देना चीन के नेविगेशन सिस्टम की नाकामी भी उजागर कर रही है. ईरान की 100 से भी ज्यादा बैलिस्टिक मिसाइल में से महज 10-12 ही सफल हो पाई जिन्होनें सीरिया बॉर्डर पर इजरायल के नवातिम एयरबेस के रनवे और एक खुफिया ठिकाने को नुकसान पहुंचाया है (फेल हुआ ईरान का पहला सीधा हमला ?).  

[नोट: टीएफए का ये लेख पूरी तरह OSINT पर आधारित है]

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