पाकिस्तान का काल बन रहा तालिबान जल्द ही आतंकी सूची से हटा सकता है. अगले महीने रूस के कजान में होने वाली वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम में तालिबान सरकार को आमंत्रित कर रूस ने इस बात के संकेत दे दिए हैं. हालांकि रूस ने कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया है पर अधिकारियों ने कहा है कि तालिबान को आतंकी सूची से हटाने पर विचार किया जा रहा है. अगस्त 2021 में काबुल में जब अशरफ गनी सरकार के पतन के बाद तालिबान ने पूरे अफगानिस्तान पर कब्जा जमा लिया था तब रूस ही वो देश था जिसने तालिबान को एक राजनयिक मान्यता दी थी.
आतंकी सूची से हटेगा तालिबान ?
रूस के राष्ट्रपति व्लामिदिर पुतिन के कार्यालय क्रेमलिन ने तालिबान के साथ चर्चा शुरू कर दी है. माना जा रहा है कि जल्द ही तालिबान को लेकर रूस बड़ा फैसला कर सकता है. अफगानिस्तान पर कब्जा करने के बाद से किसी भी देश ने तालिबान सरकार को मान्यता नहीं दी है. हालांकि पिछले कुछ महीनों में तालिबान ने भारत के साथ भी संबंध सुधारने की कोशिश की है. तालिबान चाहता है कि अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध वापस लिए जाएं और जब्त की गई संपत्तियों को मुक्त किया जाए ताकि अफगानिस्तान के आर्थिक विकास में मदद मिल सके.
दरअसल रूस के सुप्रीम कोर्ट ने करीब 21 साल पहले यानी साल 2003 में तालिबान को आतंकवादी संगठन घोषित किया था. तालिबान पर आरोप था कि उसने चेचन्या में अवैध सशस्त्र बलों के साथ संबंध रखे और उज्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान तथा किर्गिस्तान में सत्ता पर कब्जा करने की कोशिश की. रूस ने खुद साल 2017 में अफगानिस्तान सरकार और तालिबान के बीच मध्यस्थता के तौर पर पहल शुरू की थी. पर साल 2021 में अफगानिस्तान की सत्ता पर तालिबान का कब्जा हो गया. अब अगर रूस, तालिबान को अपनी आतंकवाद सूची से हटा देता है तो तालिबान शासित अफगानिस्तान सरकार के लिए अंतरराष्ट्रीय मान्यता की दिशा में पहला कदम माना जाएगा.
तालिबान से रूस को क्या होगा फायदा ?
तालिबान के साथ सहयोग से रूस को भी लाभ होगा. यूक्रेन के साथ चल रहे युद्ध के बीच रूस को क्षेत्र की स्थिरता के अलावा ड्रग्स तस्करी और इस्लामी आतंकवाद के खतरों को देखते हुए चिंता है. क्रॉकस सिटी हॉल पर किए गए हमले में जिस तरह से आईएसआईएस के (खुरासान) का नाम आया था, उसने भी रूस की चिंता बढ़ा दी है. आईएसआईएस का खुरासान मॉड्यूल अफगानिस्तान से ही संचालित हो रहा है. खुरासान में अफगानिस्तान के अलावा तुर्कमेनिस्तान, ताजिकिस्तान और इराक के लड़ाके शामिल हैं. ऐसे में खुरासान के खात्मे में भी रूस को तालिबान की मदद मिल सकती है. तालिबान की मदद से रूस में क्षेत्रीय सुरक्षा बढ़ेगी. साथ ही पश्चिमी देशों के खिलाफ रूस को तालिबान का समर्थन मिलेगा.
अब तक किसी देश ने नहीं दी है तालिबान को मान्यता
अफगानिस्तान में तख्ता पलट के 3 साल बाद अबतक किसी भी देश ने तालिबान को मान्यता नहीं दी है. रूस की पहल के बाद अगर तालिबान से अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध हट जाए तो अफगानिस्तान को महत्वपूर्ण लापीस-लाजुली व्यापार गलियारे के विकास से आर्थिक रूप से लाभ होगा जो अफगानिस्तान को इस्तांबुल और यूरोप और उज़्बेकिस्तान-अफगानिस्तान-पाकिस्तान रेलवे लाइन से जोड़ता है.
पाकिस्तान से दूरी, भारत से तालिबान की नजदीकी !
रूस के अलावा भारत से भी तालिबान अपने संबंध सुधारना चाहता है. भारत और अफगानिस्तान में बहुत पुरानी दोस्ती रही है. पर सत्ता परिवर्तन के बाद भारत में अफगानिस्तान दूतावास बंद कर दिया था. तालिबान को भले ही भारत ने अभी तक मान्यता नहीं दी है लेकिन जरूरत पड़ने पर भारत ने अफगानिस्तान में मदद पहुंचाई है. इसी साल ईरान के चाबहार बंदरगाह के माध्यम से अफगानिस्तान को 40,000 लीटर मेलाथियान कीटनाशक भेजा. इसके अलावा गेहूं, कोरोना वैक्सीन, आपदा सामग्री भी भारत अफगानिस्तान भेज चुका है. एससीओ की बैठक में एनएसए अजीत डोवल ने भी कहा था कि “हम अफगानिस्तान के हितों के साथ खड़े हैं. अफगानिस्तान की धरती का इस्तेमाल आतंकियों के लिए नहीं करने देंगे.” (तालिबान को मान्यता देने की तैयारी में भारत ?)
पिछले महीने मार्च 2024 में भी भारत और तालिबान के बीच कोई हाई लेवल मीटिंग हुई. 7 मार्च को विदेश मंत्रालय के संयुक्त सचिव (पाकिस्तान-अफगानिस्तान-ईरान) जेपी सिंह के नेतृत्व में प्रतिनिधिमंडल ने काबुल में तालिबान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी से मुलाकात की. इस दौरान मुत्ताकी ने भारत की मानवीय सहायता के लिए धन्यवाद दिया, तालिबान के विदेश मंत्री मुत्ताकी ने कहा, “हम भारत के साथ राजनीतिक और आर्थिक स्तर पर रिश्तों को मजबूत करना चाहते हैं.” (सिख सांसद की वापसी, क्या बदल गया तालिबान)
इसी साल जनवरी के महीने में अफगानिस्तान में तालिबान ने एक बैठक बुलाई थी. जिसमें भारत के अलावा रूस, चीन, ईरान, पाकिस्तान, उज्बेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, कजाकिस्तान, तुर्की और इंडोनेशिया के राजनयिकों ने भी भाग लिया था.
पाकिस्तानी आतंकियों से लड़ रहा तालिबान
तालिबान ने पिछले कुछ दिनों में अपनी छवि सुधारते हुए पाकिस्तान के खिलाफ सख्ती का रुख अपनाया है. अफगान तालिबान और पाकिस्तान सरकार के बीच संबंध लगातार तनावपूर्ण हुए हैं. दरअसल तालिबान का मानना है कि पाकिस्तान उसके बॉर्डर पर आतंकी गतिविधियों को बढ़ा रहा है (अफगान सीमा पर पाकिस्तानी चौकी पर आत्मघाती हमला, 13 ढेर).